Happy Lohri 2022: संक्रांति से एक दिन पहले क्यों मनाई जाती है लोहड़ी, जानें इसके पीछे की वजह

Lohri 2022: लोहड़ी के मौके पर पंजाब में नई फसल काटी जाती है। पंजाबियों के लिए ये त्योहार बहुत ही महत्व रखता है। आइए आपको बताते हैं, इसके पीछे की वजह।

Asianet News Hindi | Published : Jan 13, 2022 3:38 AM IST

लाइफस्टाइल डेस्क : हर साल 13 जनवरी को लोहड़ी (Lohri 2022) को त्योहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति से एक दिन पहले पंजाबियों का खास त्योहार लोहड़ी पंजाब समेत हरियाणा, दिल्ली और अन्य उत्तर भारतीय  राज्यों में मनाया जाता है। मुगल काल से जम्मू में भी लोहड़ी मनाई जाती है। लोहड़ी सर्दियों के अंत का प्रतीक है। इस दिन लोग अलाव जलाकर उसके आसपास घूमते है और मक्का, मूंगफली और रेवड़ी उसमें डालते हैं। साथ ही सर्द भरी रात में लोहड़ी की आग सेंकते हैं। लेकिन लोहड़ी हर साल 13 जनवरी को ही मनाई जाती है। इसके पीछे क्या कारण है आइए आपको बताते हैं...

फसल उत्सव के नाम से जानी जाती है लोहड़ी
लोहड़ी पर लोग रबी की फसल की फसल का जश्न मनाते है और यह अग्नि देवता या लोहड़ी की देवी के लिए भी एक लोक श्रद्धा है। लोहड़ी के बाद अगले दिन नई साल की पहली सुबह होती है। इस दिन फसलों की पूजा की जाती है और गन्ने की फसल की कटाई होती है। लोहड़ी पर अग्नि व महादेवी की पूजा का विधान भी है। कहा जाता है कि ऐसा करने से सूर्य और अग्नि देव खुश होते हैं और उनके आशीर्वाद से आने वाली फसल अच्छी होती है।

इन नामों से जानी जाती है लोहड़ी
हर जगह लोहड़ी को अलग-अलग नाम से बुलाया जाता है। पंजाब के कुछ इलाकों में इसे लोई भी कहते हैं, तो कुछ जगहों पर इसको लोह और तिलोड़ी भी कहा जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, लोहड़ी शब्द 'लोह' से आया है, जिसका अर्थ है प्रकाश और आग की गर्मी। लोहड़ी को अलाव के साथ मनाया जाता है, जो इसकी परंपरा का एक हिस्सा है।

दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की लोककथा बहुत मशहूर है। लोहड़ी की आग के पास लोकगीत गाते हुए लोग दुल्ला भट्टी को याद करते हैं। दुल्ला भट्टी मुगल शासकों के समय का एक बहादुर योद्धा था। मुगल शासक एक गरीब ब्राह्मण की दो लड़कियों सुंदरी और मुंदरी के साथ विवाह करना चाहता था, जबकि उनका विवाह पहले से कहीं और तय था। दुल्ला भट्टी ने लड़कियों को मुगल शासक के चंगुल से छुड़वाकर उनकी शादी करवाई। उस समय उसके पास और कुछ नहीं था, इसलिए एक शेर शक्कर उनकी झोली में डाल कर उन्हें विदा किया। दुल्ला भट्टी की कहानी को आज भी पंजाब के लोक-गीतों में सुना जा सकता है।

नाच-गाने का विशेष महत्व
संगीत और नृत्य इस त्योहार का एक अभिन्न अंग हैं, जिसमें लोग अलाव के चारों ओर भांगड़ा और गिद्दा में रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं और डांस करते हैं।

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