Rules for dads to help children grow:बच्चों को सभ्य और समाज के हित में काम कराना सिखाना पिता की जिम्मेदारी होती है। सही नियमों के साथ बच्चों को पालना और आत्मनिर्भर बनाना उनकी जिम्मेदारी होती है।
रिलेशनशिप डेस्क. मां और पिता दोनों मिलकर बच्चे की परवरिश करते हैं। मां जहां बच्चों के अंदर ममता और प्यार की भावना भरने का काम करती हैं। वहीं पिता की जिम्मेदारी बच्चों के अंदर वो खूबियां पैदा करनी होती है, जिससे वो आत्मनिर्भर बन सकें और समाज के हित को देखते हुए काम करें। सबको सम्मान दें किसी का अनादर ना करें ऐसी परवरिश उनके अंदर भरने का काम पिता का होता है। मां जहां बच्चों के लिए सॉफ्ट होती है। वहीं पति को उनके हित के लिए थोड़ा हार्ड होना पड़ता है। हम यहां पर कुछ ऐसे नियम बताने जा रहे हैं जिसे हर पिता को अपने घर में बच्चों के लिए लागू करना चाहिए। ताकि वो एक जिम्मेदार इंसान बन सकें।
बचपन कच्चे मिट्टी के घड़े की तरह होता है, जिस तरह से उसे ढालेंगे वो ढल जाता है। इसलिए बचपन से ही बच्चों की परवरिश ठीक से करनी चाहिए। उन्हें सिखाएं कि वे अपने बड़ों का सम्मान करें। उनकी बातों को काटे नहीं। वो जो बताते हैं उसे सुनें। इसके साथ ही छोटे के प्रति वो प्यार और दुलार वाली भावना रखें। पिता को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि बड़े और छोटे के सामने कैसे पेश आना चाहिए।
बच्चे अक्सर अपने बचपने में झूठ बोलते हैं। लेकिन उनके अंदर ईमानदारी और सच्चाई की अहमियत जगाने का काम पिता का होतो है। बच्चे जब झूठ बोलें तो उन्हें प्यार से बताए कि झूठ बोलने के क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं। इसके साथ ही उन्हों हमेशा सच बोलने का पाठ पढ़ाएं। उन्हें बताएं कि किसी भी परिस्थिति में सच्चाई और ईमानदारी का साथ न छोड़ें। सच बोलना ही जीवन में सबसे बड़ा गुण है।
बच्चे को ज्यादा छूट भी नहीं देनी चाहिए। 5 साल के बाद बच्चों पर थोड़ी सख्ती रख सकते हैं। अगर वो गलत करते हैं तो उन्हें डांटे। उन्हें समझाएं कि हर चीज की एक सीमा होती है और अनुशासन में रहना जरूरी है। इससे वे नियंत्रण में रहते हैं और बेहतर निर्णय ले सकते हैं।
बच्चों को उठने-पढ़ने और खेलने का वक्त निर्धारित करें। उन्हें बताते रहें कि समय पर हर काम करना क्यों जरूरी हैं। धीरे-धीरे वो टाइम की अहमियत जान जाएंगे और पढ़ाई और खेल-कूद में संतुलन बना पाएंगे। बड़े होने के बाद भी उन्हें किसी चीज को मैनेज करने में दिक्कत नहीं होगी।
अक्सर माता-पिता दुलार में बच्चों को कोई काम करने से रोकते हैं। लेकिन ये गलत हैं, इन्हें आत्मनिर्भर बनाएं। उन्हें बचपन से ही छोटे-छोटे काम सौंपे और जब वो पूरा करें तो उसकी सराहना करें। उन्हें कुछ गिफ्ट दें। इससे वो प्रोत्साहित होंगे और आत्मनिर्भर बनेंगे।
बच्चों को बताएं कि जीवन में हमेशा सफलता ही नहीं मिलती, बल्कि असफलता भी आती है। असफलताओं से सीखना और आगे बढ़ना सबसे बड़ा गुण होता है। इसके साथ ही उन्हें मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर फोकस करने के लिए नियम तय करें। उन्हें फिजिकल एक्टिविटी में हिस्सा लेना सिखाएं।
बच्चे को बचपन से अगर थैक्यू बोलना सिखाते हैं तो फिर हर कोई उसकी तारीफ करेगा। छोटे-छोटे कामों के लिए भी आभार व्यक्त करना एक अच्छी आदत होती है। बच्चे के अच्छे संस्कार होने की यह भी एक निशानी होती है। जैसे ही बच्चा किसी को थैक्यू बोलता है तो सामने वाला यही कहता है कितने अच्छे संस्कार हैं। इन नियमों से बच्चों के पर्सनालिटी और सोच में पॉजिटिव बदलाव आते हैं। जो ताउम्र उनके साथ रहते हैं। वो एक जिम्मेदार इंसान बनते हैं।
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