'किस स्थिति में पति को पत्नी का त्याग कर देना चाहिए', जानें प्रेमानंद जी महाराज ने क्या कहा?

Published : Dec 23, 2025, 03:17 PM IST
Premanand Ji Maharaj On Relationship

सार

Premanand Ji Maharaj On Relationship: प्रेमानंद जी महाराज रिश्तों को लेकर लोगों को सही मार्ग दिखाते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने पति-पत्नी के रिश्ते को लेकर एक बड़ी बात बताई। जिसे गृहस्थ जीवन में रहने वाले हर इंसान को जानना चाहिए। 

Premanand Ji Maharaj On Husband Wife Relationship: पति-पत्नी का रिश्ता ईमानदारी, प्यार और भरोसे की नींव पर टिका होता है। छोटे-मोटे झगड़े होना आम बात है और ऐसी परिस्थितियों में कपल को एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। लेकिन कई बार लोग छोटी-छोटी बातों को लेकर शादी जैसा पवित्र रिश्ता तोड़ने का फैसला कर लेते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह सही है और किन हालात में पति-पत्नी को अलग होने का निर्णय लेना चाहिए-इसी सवाल का जवाब प्रेमानंद जी महाराज ने दिया है।

सवाल-पति पत्नी को कब अलग हो जाना चाहिए?

प्रेमानंद जी महाराज का जवाब- पत्नी चाहे कितनी भी झगड़ालू क्यों न हो, पति को उसका त्याग नहीं करना चाहिए। लेकिन यदि वह व्यभिचारी हो, तो ऐसी स्थिति में उसका त्याग करना उचित माना गया है। चाहे वो कितना भी धनी और सुंदर हो, छोड़ देना चाहिए। लेकिन और कमियों पर कभी उसका हाथ ना छोड़ें। उसी तरह, यदि पति पराई स्त्रियों के साथ संबंध रखता है और व्यभिचारी है, तो पत्नी को भी उसे त्याग देने का अधिकार है। ऐसा शास्त्र आज्ञा है।

 

 

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सवाल- पत्नी को कैसे खुश रखें?

जवाब- प्रेमानंद जी महाराज ने हंसते हुए कहा कि वैसे तो मैं इसका विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन शास्त्रों के अनुसार यदि आप अपनी पत्नी की कामनाओं की पूर्ति करते हैं और उसके मन के प्रतिकूल कभी आचरण नहीं करते, तो वह स्वभावत आपके अधीन हो जाती है। साथ ही, अन्य स्त्रियों से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए। यदि आप पत्नी की इच्छाएं तो पूरी करते हैं, लेकिन पराई स्त्री से संबंध रखते हैं, तो पत्नी कभी आपको पसंद नहीं करेगी। इसलिए अपनी पत्नी में भगवान का दर्शन करते हुए उससे प्रेम करें। अगर वह कभी प्रतिकूल व्यवहार करे, तो आप मुस्कुराकर शांत हो जाएं। इसी तरीके से पत्नी को खुश रखा जा सकता है, और इसका कोई दूसरा उपाय नहीं है।

 

 

सवाल-महाराज जी आपको सब विषय का ज्ञान कैसे है?

जवाब- जब आप भगवान की शरण में जाते हैं, तो समस्त ज्ञान स्वतः प्राप्त हो जाता है। आप किसी भी विषय पर प्रश्न करते हैं, भगवान तुरंत उसका उत्तर देते हैं, क्योंकि वे स्वयं ज्ञानस्वरूप हैं। भगवान हमारे हृदय में विराजमान हैं, इसलिए कई बार प्रश्न पूरा होने से पहले ही उसका उत्तर हमारे मन में आ जाता है। हमें कोई पहले से यह नहीं बताता कि आज कौन-सा प्रश्न पूछा जाएगा, प्रश्न उठते ही सटीक उत्तर प्राप्त हो जाता है। ये उत्तर मनमाने नहीं होते, बल्कि शास्त्रसम्मत होते हैं। इसमें कोई कल्पना या मनगढ़ंत बात नहीं होती, सब कुछ शास्त्रों पर आधारित होता है।

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