
Swara Bhaskar Parentings: एक बच्चा तभी बड़ा होकर बेहतर इंसान बनेगा जब सारे धर्मों के बारे में उसे शिक्षा दी जाए। सबका सम्मान करना सिखाया जाए। एक्ट्रेस स्वरा भास्कर अपने बेटी राबिया रामा की परवरिश कुछ ऐसे ही कर रही हैं। वो सभी धर्मों और संस्कृतियों के रीति-रिवाजों के साथ उसे पाल रही हैं।
स्वरा भास्कर चाहती है कि उनकी बेटी एक समावेशी (interfaith)और खुले विचारों वाले माहौल में पले-बढ़े। बता दें कि स्वरा ने जनवरी 2023 में राजनेता फहाद अहमद से शादी की थी और सितंबर 2023 में दोनों के घर बेटी राबिया का जन्म हुआ।
स्वरा भास्कर ने एक इंटरव्यू में बताया कि वो राबिया के लिए हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सहित सभी धर्मों के रिवाज निभा रही हैं। उन्होंने कहा,'मैं किसी भी चीज को नकारती नहीं हूं। जब राबिया का जन्म हुआ, तो मैंने फहाद से कहा कि चलो हर धर्म और संस्कृति के रिवाज करते हैं ताकि वो हर तरफ से सुरक्षित रहे। हमने हर तरह के संस्कार किए, फिर मैंने पूछा कोई ईसाई रिवाज भी होता है क्या?'
स्वरा ने अपने बचपन की भी एक दिलचस्प बात शेयर की। उन्होंने कहा,'जब मैं छोटी थी और खाना नहीं खाती थी, तो पापा मुझे रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाते थे। वो क्लाइमैक्स से पहले कहते थे पहले प्लेट खत्म करो, फिर बाकी कहानी बताऊंगा। इस तरह से बहुत खूबसूरती से संस्कृति से जुड़ाव होता था।'
फहाद अहमद भी इंटरव्यू में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि स्वरा ने हर धर्म और परंपरा को अपनाकर एक मिसाल कायम की है। इस पर स्वरा ने हंसते हुए कहा, 'जब राबिया को खांसी होती है या वो बीमार होती है, तो मैं फहाद से कहती हूं दुआ पढ़ो।'
इंटरफेथ पेरेंटिंग का मतलब है बच्चे की परवरिश ऐसे माहौल में करना, जहां उसे केवल एक धर्म या संस्कृति की नहीं, बल्कि सभी धर्मों, परंपराओं और विचारों की समझ और सम्मान मिले। यह सोच एक समावेशी, सहिष्णु और व्यापक दृष्टिकोण को जन्म देती है।
1. सांस्कृतिक समझ बढ़ती है
बच्चा अलग-अलग परंपराओं, त्योहारों और विचारों को जानता और अपनाता है।
2. सहिष्णुता की भावना विकसित होती है
एक से ज्यादा विचारों में पला-बढ़ा बच्चा दूसरों की मान्यताओं का सम्मान करना सीखता है।
3. सामाजिक रूप से ज़्यादा जुड़ा हुआ महसूस करता है
वह खुद को केवल एक धर्म तक सीमित नहीं करता, बल्कि विविधता को अपनाता है।
यह हर माता-पिता की निजी पसंद है, लेकिन बदलते समाज में यह सोच बच्चों को अधिक समझदार, खुले विचारों वाला और भावनात्मक रूप से मजबूत बना सकती है। ऐसे समय में जब बच्चों को सोशल मीडिया और बाहरी दुनिया से तरह-तरह की सूचनाएं मिलती हैं, उन्हें घर से ही एक बैलेंस, इंटरफेथ नजरिया देना जरूरी है।