शराब बेचने वाला लड़का ऐसे बना एमपी का सीएम, 43 साल तक नहीं मिली सियासी हार

बाबूलाल गौर ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में शामिल रहे थे। 1956 में उन्होंने निगम पार्षद का चुनाव लड़ा और हार गए। 1972 में उन्हें जनसंघ की ओर से भोपाल की गोविन्दपुरा विधानसभा सीट से टिकट मिला, जो कि बाद में बाबूलाल गौर का गढ़ बना।

भोपाल. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का 89 साल की उम्र में बुधवार सुबह भोपाल के एक अस्पताल में निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। मंगलवार को उनकी हालात और ज्यादा बिगड़ गई थी। उनका ब्लड प्रेशर कम होने के चलते पल्स रेट कम हो गई थी। 14 दिन से उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था। 7 अगस्त को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। उनके निधन से प्रदेश की राजनीति में शोक की लहर है। बीजेपी समेत विपक्ष ने भी उनके निधन पर शोक जताया है। बाबूलाल गौर का जीवन काफी संघर्षों से भरा रहा। उत्तर प्रदेश में जन्मे बाबूलाल गौर का नाम बाबूराम यादव है। उन्होंने शुरुआती दिनों में शराब बेचने तक का काम किया था।

ऐसे मिला था शराब बेचने का काम 

Latest Videos

बाबूलाल गौर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के नौगीर गांव से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म 2 जून, 1930 को हुआ था। जब बाबूलाल का जन्म हुआ तो उस वक्त अंग्रेजों का शासन था। गावों में दंगल हुआ करते थे। ऐसे ही एक दंगल में बाबूलाल के पिता राम प्रसाद की जीत हुई, जिसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें एक पारसी शराब कंपनी में नौकरी दे दी। लेकिन एस नौकरी के चलते गांव और राज्य दोनों ही छूट गया था और सामने नया शहर भोपाल था। नौकरी में कुछ दिन बीते तो कंपनी ने खुद की दुकान दे दी। उसी दुकान में बाबूलाल काम करने लगे और शराब बेचनी शुरू कर दी।

शराब की दुकान बंदकर की मजदूरी 

बाबूलाल जब 16 साल के हुए तो उन्होंने संघ में जाना शुरू कर दिया और वहां उनसे कहा गया कि वे शराब बेचना छोड़ दें। बाद में उनके पिता की मौत हो गई और वो दुकान उनके नाम हो गई, लेकिन उन्होंने शराब बेचने से मना कर दिया और गांव वापस लौट गए। वहां उन्होंने खेती की कोशिश की लेकिन खेती का काम करना उनके बस की बात नहीं थी तो वे वापस भोपाल लौट आए। कपड़ा मिल में मजदूरी की। उसमें उन्हें 1 रुपए रोज की दिहाड़ी दी जाती थी। हालांकि, बाबूलाल गौर की सामाजिक आंदोलनों में भागीदारी रही। नतीज़ा ये रहा कि मजदूरों की बात रखने के लिए भारतीय मजदूर संघ बना और बाबूलाल गौर का नाम संस्थापक सदस्यों में शामिल था। साथ ही उस समय उनकी पढ़ाई चल रही थी और बाद में वे बीए-एलएलबी हो गए। 

1974 में पहली बार पहुंचे विधानसभा 

बाबूलाल गौर ट्रेड यूनियन की गतिविधियों में शामिल रहे थे। 1956 में उन्होंने निगम पार्षद का चुनाव लड़ा और हार गए। 1972 में उन्हें जनसंघ की ओर से भोपाल की गोविन्दपुरा विधानसभा सीट से टिकट मिला, जो कि बाद में बाबूलाल गौर का गढ़ बना। आमतौर पर पार्टियों के गढ़ होते हैं। हालांकि, पहले विधानसभा चुनाव का मुकाबला आसान नहीं था और उन्हें एक बार फिर से हार का सामना करना पड़ा था। कोर्ट में पिटीशन डाली और पिटीशन जीता फिर 1974 में उपचुनाव हुए बाबूलाल जीते और पहली बार विधानसभा पहुंचे।

जेपी ने दिया आशीर्वाद

1975 इमरजेंसी में बाबूलाल गौर एक्टिव थे। देश में इमरजेंसी और जयप्रकाश नारायण का आंदोलन साथ में चल रहे थे। इन आंदोलनों से बाबूलाल जेपी की नजरों में आ चुके थे। इसके बाद उनके पास जेपी ने जनता पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर रखा। नतीजा ये रहा कि उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। जेपी भोपाल आए तो गौर के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया कि वे जिंदगी भर जनप्रतिनिधि बने रहें और गौर 43 साल तक सियासत में रहे उन्हें हार का मुंह नहीं ताकना पड़ा।

Share this article
click me!

Latest Videos

Yogi Adityanath: 'लगता है कांग्रेस के अंदर अंग्रेजों का DNA आ गया है' #Shorts
BJP प्रत्याशी पर उमड़ा लोगों का प्यार, मंच पर नोटों से गया तौला #Shorts
झांसी अग्निकांड: 75 मिनट तक हुई जांच और साढ़े 5 घंटे चली पूछताछ, क्या कुछ आया सामने?
बीजेपी की सोच और आदिवासी... राहुल गांधी ने किया बहुत बड़ा दावा #Shorts
बेटे ने मारा था SDM को थप्पड़, लोगों के सामने रो पड़े नरेश मीणा के पिता । Naresh Meena Thappad Kand