एक ऐसा गांव जहां नहीं होती श्रीगणेश की स्थापना, गणपति विराजे तो आ जाती है बड़ी विपदा

 गणेश चतुर्थी के मौके पर हर घर और गांव से लेकर शहर तक में लोग गणपति को लाकर विधि-विधान से स्थापित करते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में एक गांव ऐसा भी है, जहां भगवान गणेश की स्थापना नहीं होती है। गांव वालों का मानना है कि अगर किसी ने उनको विराजमान कर लिया तो पूरे गांव में कुछ ना कुछ अनिष्ट हो जाता है। 

पिपारिया (मध्य प्रदेश). पूरे देशभर में गणपति उत्सव बुधवार से शुरू हो गया है। चतुर्थी की इस पावन तिथि पर देश-दुनिया में बसे बप्पा के भक्त गणपति को अपने घर में लाकर विधि-विधान से उनको स्थापित करते हैं। दु:खहर्ता और सुखकर्ता कहलाने वाले गणपति हर गांव-शहर और घर-घर में विराजे जा रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में एक गांव ऐसा भी है, जहां भगवान गणेश की स्थापना नहीं होती है। गांव वालों का मानना है कि अगर किसी ने उनको विराजमान कर लिया तो पूरे गांव में कुछ ना कुछ अनिष्ट हो जाता है। आइए जानते हैं आखिर क्या है इसके पीछे की मान्यता और वजह

ना ही गांव की सीमा से लगे किसी चौराहे या पंडाल में रखे जाते गणेशजी
दरअसल, हम जिस गांव की बात कर रहे हैं वो नर्मदापुरम जिले से 90 किमी और पिपरिया से 18 किलोमीटर दूर बनखेड़ी रोड पर बसा गांव बाचावानी है। जहां ना तो घरों में भगवान गणेश की स्थापना की जाती है और ना ही गांव की सीमा से लगे किसी चौराहे या पंडाल में गणेश की मूर्ति की स्थापना नहीं होती है। बल्कि गांव में एक अत्यंत प्राचीन तिल गणेश मंदिर है, जहां पर आकर लोग पूजा-अर्चना करते हैं। 

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बाहर से आए लोगों ने की स्थापना तो लग गई थी भयानक आग
ग्राम बाचावानी के रहवासियों ने बताया कि एक बार गांव के बाहर से आए लोगों ने मना करने के बाद भी अपने घर में भगवान गणेश की स्थापना कर ली थी। जिसका परिणाम यह हुआ था कि घर में आग लग गई थी। आग इतनी विकाराल हो चुकी थी कि फायर ब्रिगेड से घर में लगी आग बुझाना पड़ा। अगर आग बुझाने में देरी हो जाती तो पूरा गांव जलकर खाक हो जाता। तब से कोई भी गणेश स्थापित करने का साहस नहीं कर पाता है। वहीं उन्होंने यह भी बताया कि यह कोई पहली घटना नहीं थी, ऐसे पूर्व भी ऐसी कई घनटाएं हो चुकी हैं।

गांव में बना है 400 साल प्राचीन गणएश मंदिर...ऐसी सूंड वाली प्रतिमा जो कहीं नहीं
बाचापानी गांव में एक ऐतिहासिक और प्रचीन तिल गणेश मंदिर है, जहां पर ही लोग सुबह-शाम आकर पूजा-अर्चना करते हैं। इस प्रतिमा की खासियत यह है कि यहां बप्पा की सूंड दाहिनी ओर है जो शायद की किसी गणेश मूर्ति में देखी होगी। इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है। जिस पर  ऋद्धि, सिद्धि, मूषक व शुभ लाभ भी बने हुए हैं। वहीं मंदिर के पुजारी मनोहरदास बैरागी  का कहना है कि ऐसी सूंड वाली प्रतिमाएं बहुत बिरली हैं। ऐसी प्रतिमा मप्र में कहीं भी नहीं हैं। हर जगह बायीं ओर सूंड वाली प्रतिमाएं  मिलती हैं।

हर साल एक तिल-तिल बढ़ती है मंदिर की प्रतिमा 
मंदिर के पुजारी और ग्रामीणों का कहना है कि तिल गणेश की प्रतिमा हर साल चतुर्थी पर तिल बराबर बढ़ती है। गांव के 71 साल के बुजुर्ग बाबूलाल बड़कुर ने बताया कि मेरा जन्म इसी गांव में हुआ है। मैंने बचपन में प्रतिमा को छोटा स्वरुप में देखा था। लेकिन अब यह प्रतिमा बढ़ी हो गई है। वहीं मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह सच है कि ये प्रतिमा हर साल बढ़ती है, हमारे परिवार की ये 6 वीं पीढ़ी के हैं, जो कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना करा रहे हैं। तब से ही हम ऐसा चमत्कार देखते आए हैं। उन्होंने बताया कि 400 साल पहले बाचावानी फतेहपुर रियासत का हिस्सा था। जहां राजगौंड राजा का शासन था। उस समय यह प्रतिमा यहां खेत में मिली थी। तभी से यहां मदिंर बनवाकर इस मूर्ति की स्थापना कराई गई। तब से लेकर अब तक माघ महीने की तिल गणेश चतुर्थी को गणेश धाम में लेना लगता है। जहां हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं।

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