विजय के जज्बे को देखते हुए सैनिटाइजेशन बनाने वाली कंपनी डिटॉल ने उन्हें मध्य प्रदेश का ब्रांड एंबेसडर बनाया है। जिसे अवर प्रोटेक्टर का टाइटल दिया गया है। विजय ने बताया कि शहर को पहले मैंने 6 जोन कोलार, बीएचईएल, बैरागढ़, ओल्ड भोपाल, करोंद और फिर जोन के हिसाब से हर दिन एक अलग जोन में सैनिटाइजेशन के लिए निकल जाता था।
भोपाल (मध्य प्रदेश). कोरोना महामारी की दूसरी लहर में कई परिवार तबाह हो गए। किसी के पिता की मौत हो गईं तो किसी मां अलविदा कह गईं। लेकिन इस इस मुश्किल घड़ी में कई लोग मानवता का धर्म निभाते हुए जरुरतमंदों की मदद करने के लिए आगे आए। संकट के वक्त मानवता की ऐसी ही मिसाल पेश करने वालों में राजधानी भोपाल के विजय अय्यर का नाम भी शामिल है। कोरोना ने उनके पिता को छीन लिया, लेकिन वह मायूस होकर घर नहीं बैठे। बल्कि वह मदद करने के लिए आगे आए और शहर के करीब हजार से अधिक कोविड मरीजों के घरों का सैनिटाइजेशन कर दिया। इसलिए तो लोग उनको आज सैनिटाइजेशन मैन के नाम से पुकारते हैं। आइए जानते हैं इस मसीहा की पूरा कहानी...
400 से ज्यादा कॉलोनियों का अपने खर्चे से किया सैनिटाइजेशन
दरअसल, विजय अय्यर भोपाल में पंक्चर सुधारने का काम करते हैं। लेकिन कोरोना ने उनके पूरे परिवार को पिछले साल 2020 में संक्रमित कर दिया था। जिसमें उनके रिटायर्ड फौजी पिता लक्ष्मी नारायण की मौत हो गई थी। वह पिता को अस्पताल में एक बेड दिलाने के लिए इधर से उधर भटकते रहे, लेकिन उन्हें बेड नहीं मिल सका। इसके बाद उन्होंने ठान लिया कि अब वह ऐसा काम करेंगे ताकि दूसरे परिवारों तक संक्रमण नहीं पहुंच सके। विजय पूरे जज्बे के साथ कोरोना मुक्त भारत अभियान के तहत भोपाल में सैनिटाइजेशन करने के काम में जुट गए। वह अब तक करीब 400 से ज्यादा कॉलोनियों को सैनिटाइज कर चुके हैं। इसके लिए वह अपनी जेब से तीन लाख रुपए तक खर्च कर चुके हैं।
डिटॉल कंपनी ने बनाया विजय को ब्रांड एंबेसडर
विजय के जज्बे को देखते हुए सैनिटाइजेशन बनाने वाली कंपनी डिटॉल ने उन्हें मध्य प्रदेश का ब्रांड एंबेसडर बनाया है। जिसे अवर प्रोटेक्टर का टाइटल दिया गया है। विजय ने बताया कि शहर को पहले मैंने 6 जोन कोलार, बीएचईएल, बैरागढ़, ओल्ड भोपाल, करोंद और फिर जोन के हिसाब से हर दिन एक अलग जोन में सैनिटाइजेशन के लिए निकल जाता था। मैंने सोशल मीडिया पर भी अपना नाम और नंबर शेयर कर दिया, ताकि लोग मुझे कॉल करकें बुलाएं। इतना ही नहीं विजय ने कई घरों में मैंने कोविड मरीजों के पास खाना तक पहुंचाया।
'डर के मरने से अच्छा है लड़कर मरो'
विजय ने बताया कि मेरे पिता सेना में थे, इसलिए वह दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे। मेरा भी बचपन से मन सेना में जाने का था। लेकिन जा नहीं पाया। वह मुझसे अक्सर कहते थे कि जरुरी नहीं देश की सेवा आर्मी में भर्ती होकर ही करो। वक्त आने पर आप बाहर से भी सेना की तरह काम कर सकते हो। वह कहते थे कि डर के मरने से अच्छा है लड़कर मरो। इसलिए मैंने भी उनकी यह बात ठान ली और दूसरों की मदद करने के लिए निकल जाता था। सोचाता था कि कोरोना से घर में भी संक्रमित होकर मर सकता हूं। इससे अच्छा है कि दूसरों की मदद करते करते ही चला जाऊं।