अगर संक्रमित हो जाए तो जिंदगी को जीने का जज्बा और आत्मविश्वास बनाए रखिए, क्योंकि आपके पास यह दो चीजें हैं तो आपको कोई नहीं हरा सकता। आज की कहानी ऐसे ही एक कोरोना विनर की है, जिन्होंने अपनी सोच को सकारात्मक किया और कोरोना को मात देने की ठानी। उसने हिम्मत और हौसले से वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू की और इस वायरस को हराकर ही दम लिया।
भोपाल (मध्य प्रदेश). पिछले तीन सप्ताह से लगातार कोरोना के मामलों में गिरावट आ रही है। देश के लिए यह सुखद खबर है, अब आम जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी है। लेकिन अभी भी लोग इस महामारी की चपेट में आ रहे हैं, घर के किसी भी एक सदस्य की जरा सी लापरवाही पूरे परिवार को खतरे में डाल सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि बिना डरे सावधान रहें और अभी भी संक्रमण तबाही मचा रहा है, ऐसा समझकर अपने घर से बाहर निकलें। क्योंकि इस महामारी ने कई परिवारों को उजाड़ दिया, वहीं कइयों को ऐसा जख्म दिया है जो शायद कभी भी नहीं भरेगा। हालांकि, कई लोग ऐसे भी थे, जो इस वायरस की चपेट में आकर गंभीर स्थिति तक पहुंच गए। जिन्होंने कई दिनों तक अस्पताल के ICU में बिताए, लेकिन अपनी हिम्मत नहीं हारी। हौसले और सकारात्मक सोच की दम पर इस खतरनाक वायरस को हराकर कोरोना वीर बने।
Asianet News के अरविंद रघुवंशी ने कोरोना विनर 35 साल के मनोज विश्वकर्मा से बात की। जो कि मध्य प्रदेश में रायसेन जिले के बरेली शहर के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना की जंग जीतने के लिए बिना घबराए कोरोना का सामना डटकर करें। बस पॉजिटिव सोच बनाए रखिए और कभी भी अपने आप को अकेला महसूस नहीं होनें दें और समय-समय पर दोस्तों या परिवार से बातचीत करते रहें। अगर यह करते रहेंगे तो इस वायरस को हराना कोई बड़ी बात नहीं है।
अखबारों और टीवी चैनलों की हेडलाइन से और डर गया
मनोज ने बताया कि अप्रेल-मई के महीने में जिस तरह से कोरोना ने कहर बरपाना शुरू किया था उससे सीधा मतलब था कि मौत के मुंह में जाना। इस दौर में लोग जरा-जार सी बातों पर डर जाते थे। अगर गलती से उन्हें सर्दी-जुकाम या बुखार आ जाए तो लगता था कि वह संक्रमित हो गए। क्योंकि अखबारों और टीवी चैनलों पर जिस तरह की खबरें-हेडलाइन चल रहीं थी उन्हें देखकर लगता था कि पता नहीं क्या होगा। इस कोरोनाकाल में मुझे अंदर से थोड़ा सुकून था कि मैं और मेरा परिवार इसकी चपेट में नहीं आए। लेकिन किसे पता था कि यह वायरस जाते-जाते भी मुझे संक्रमित कर मौत के दरवाजे तक ले जाएगा।
घर में किसी को बिना बताए खुद को कर लिया कमरे में कैद
बात मई के आखिरी सप्ताह की है, जब मुझे हल्का सा बुखार और थकावट महसूस हुई। तो मैंने मेडिकल से दवा लेकर खा ली, लेकिन बुखार कम होने की बजाए बढ़ता चला गया। बुखार के साथ हाथ-पैरों में दर्द और कमजोरी बढ़ती जा रही थी। अगले दिन मैंने दूसरी मंजिल पर बने गेस्ट रूम में सोना शुरू कर दिया। जब पत्नी और पापा ने अलग सोने का कारण पूछा तो मैं उन्हें डर के चलते कुछ नहीं बताया। क्योंकि कुछ दिन पहले पड़ोस में एक घटना ऐसी हुई थी कि जिससे पूरा परिवार दहशत में था।
मौतों की खबरें और चीखों से मैं हिल गया, फिर मन में ठाना कि मुझे जीना है
देखते ही देखते एक-दो दिन के अंदर मुझे कुछ ज्यादा ही वीकनेस आ गई। आलम यह हो गया था कि चलने में चक्कर जैसा महसूस होने लगा था। फिर मैंने यह बात अपने बचपन के दोस्तों 'बड्डी-चड्डी यार' ग्रुप में शेयर की। उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया और तत्काल कोरोना जांच कराने की सलाह दी। हालांकि इस बीच मैं आना-कानी करता रहा कि मुझे कोरोना नहीं होगा। लेकिन वह जिद पर अड़े रहे और मेरी जांच करा दी। अब रिपोर्ट आने में एक से दो दिन का समय था, ऐसे में उन्होंने कहा कि तुम अपने आप को एक कमरे में बंद कर लो और परिवार से फोन पर वीडियो कॉल के माध्यम से बात करो, बाकी तुम चिंता मत करो, ये कोरोना तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। तुम शेर दिल इंसान हो यार जब कई बुजुर्ग इसको हराकर घर लौट आए तो तुम तो यूं ही सही हो जाओगे।
मेरी जिम्मेदारियों ने दी ताकत और कोरोना से लड़ने का जज्बा आ गया
अब बात अस्पताल में भर्ती होने की थी, क्योंकि मैं एडमिट होने से डर रहा था। कुछ लोगों को देखा था जो अस्पताल जाने के बाद भी ठीक नहीं हुए थे और पैसा जबरन में लग गया। बस यही सोचता कि हम मीडियम फैमिली में आते हैं और हॉस्पिटल में गए तो कम से कम दो से तीन लाख रुपए लग जाएंगे। वैसे भी कुछ दिन पहले छोटे भाई की शादी भी की थी, इसलिए मैं और भी हिम्मत नहीं कर पाया। फिर 'बड्डी-चड्डी यार' ग्रुप के दोस्तों ने मेरी काफी देर तक काऊंसिलिंग की और समझाया कि तुम घर के बड़े बेटे हो, अगर कल को कुछ हो जाता है तो परिवार का क्या होगा। फिर परिवार की जिम्मेदारियों ने मुझे कोरोना से लड़ना सिखा दिया और घर के लोगों को बताकर भोपाल एम्स में भर्ती हो गया। सचमुच अगर दोस्त नहीं समझाते तो मैं अस्पताल नहीं जाता और घर में रहते-रहते पता नहीं क्या हो जाता। इसलिए सभी से निवेदन है कि कोरोना का पता चलने पर डॉक्टर या हॉस्पिटल जरूर जाएं।
50% फेफड़े खराब और ऑक्सीजन 60 पर आ गया, शुगर भी 500 पार
भोपाल एम्स में भर्ती होते ही मेरी सभी जांचे हुईं। इस दौरान लगातार मेरा ऑक्सिजन लेवल गिरता जा रहा था। आलम यह था कि यह गिरते-गिरते 60 तक पहुंच गया। इतना ही नहीं लंग्स भी 50 प्रतिशत तक खराब हो चुके थे। इसके बाद मुझे आईसीयू में एडमिट करा दिया गया। लेकिन इसी बीच पहली बार मुझमें शुगर की प्रॉब्लम शुरू हुई। डॉक्टरों ने चेकअप किया तो शुगर 500 पार हो चुकी थी। क्योंकि मेरा वजन 105 किलो था, इसलिए यह समस्या तो आनी ही थी। लेकिन यह नहीं पता था कि संक्रमण के समय इसका जन्म होगा। अब इससे रिकवर होने में और ज्यादा समस्या हो गई। मुझे पता चला कि अब से मैं डायबिटीज का भी मरीज बन चुका हूं। साथ में छोटा भाई और पापा थे, जब उनको यह बात पता चली तो वह काफी घबरा गए। लेकिन दोस्तों ने इस मौके पर काफी हिम्मत दी। उन्होंने मुझे ही नहीं मेरे परिवार को जो हौसला दिया वह मैं पूरी जिंदगी नहीं भूल सकता हूं। वह सही मायने में वह मेरी जिंदगी के डॉक्टर बन चुके थे।
7 दिन तक एक रोटी भी नहीं खाई..लगने लगा अब नहीं बचूंगा
मनोज ने बताया कि करीब 7 दिन तक आईसीयू में रहा, इस बीच एक रोटी तक नहीं खाई थी। शरीर अंदर से पूरी तरह से हिल चुका था। वजन भी 105 से घटकर 85 पर आ गया। एक वक्त तो मुझे ऐसा लगा कि शायद अब नहीं बचूंगा। लेकिन फिर ठान लिया था कि अब कोरोना को हराकर ही दम लूंगा फिर मैंने 8वें दिन से एक-एक रोटी खाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे मेरी हालत में सुधार होने लगा। ऑक्सीजन लेवल भी 91 पर आ गया और शुगर भी कंट्रोल हो गई। फेफड़ों में भी सुधार होने लगा। अब मैं बेड से उठने की हिम्मत कर पा रहा था। फोन पर भी दोस्तों से बात करना शुरू कर दी। वहीं पत्नी और 5 साल के बेटे से वीडियो कॉल पर बात करने लगा। जिसके बाद और जिंदगी जीने का जज्बा आ गया। देखते ही देखते करीब 15 दिन अस्पताल में भर्ती होने के बाद में पूरी तरह से ठीक हो गया और मैं कोरोना से जंग जीत गया।
कोरोना विनर का समाज को संदेश
कोरोना से पूरी तरह से ठीक हो चुके मनोज विश्वकर्मा का कहना है कि अभी कोरोना खत्म नहीं हुआ है। इसलिए सावधानी पहले की तरह रखिए। अगर संक्रमित हो जाए तो जिंदगी को जीने का जज्बा और आत्मविश्वास बनाए रखिए, क्योंकि आपके पास यह दो चीजें हैं तो आपको कोई नहीं हरा नहीं सकता। कोरोना से डरें नहीं, अपनी पॉजिटिव सोच और जिंदादिल बने रहें। हिम्मत और मजबूती के साथ कोरोना का सामना करें, जीत जरूर होगी।
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोड़ेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona