DSP ने भिखारी समझ दान में दिए जूते-जैकेट, वो निकला उनका पुलिस अफसर दोस्त..पढ़िए रुला देने वाली कहानी

 मनीष मिश्रा का परिवार आर्थिक स्थिति के हिसाब से काफी मजबूत है। जहां उनके भाई टीआई हैं, पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं। जब मनीष आखिर वक्त में दतिया में तैनात थे तो उस दौरान वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठे।

Asianet News Hindi | Published : Nov 13, 2020 7:39 AM IST / Updated: Nov 13 2020, 01:13 PM IST

ग्वालियर (मध्य प्रदेश). अक्सर लोगों के सुना है कि कभी-कभी भिखारी के रुप में भगवान भी सामने आ जाता है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर से ऐसा ही एक अनोखा मामला सामने आया, जहां भिखारी भगवान तो नहीं था, लेकिन वह एक पुलिस इंस्पेक्टर था, जो भिखारी बनकर कचरे में खाना ढूंढकर खा रहा था। इसी दौरान वहां से गुजर रहे एक डीएसपी ने जब उसको सड़क किनारे ठंड से ठिठुरते देखा तो उन्होंने भिखारी समझ उसे अपनी जैकेट और जूते उतारकर दे दिए। 

डीएसपी ने नाम सुनते ही उसे लगा लिया गले
दरअसल, 10 नवंबर चुनाव की काउंटिंग वाली रात करीब डेढ़ बजे डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और अपने साथी विजय भदोरिया के साथ ड्यूटी के दौरान वहां से गुजर रहे थे। तो उनको रास्ते में एक भिखारी मिला जो कड़ाके की ठंड में सड़क पर पड़े कचरे से खाना निकालकर खा रहा थ। अफसर को उस पर दया आई और अपनी जैकेट-जूते उतारकर उसको दे दिए। इसके बाद वह उसे एक मकान के नीचे बिठाकर जाने लगे। तो भिखारी ने डीएसपी को नाम से पुकाराने लगा। अपना नाम भिखारी के नाम से सुनकर वह हैरान थे, कि एक भिखारी उनका नाम कैसे जानता है। जब वह पलट कर पास पहुंचे तो कहने लगा रत्नेश जी मैं आपका दोस्त और पुलिस इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा हूं। फिर क्या था डीएसपी ने अपने दोस्त को गले लगा लिया और उससे इस हालत की काहनी पूछी।

10 साल से भीख मांग रहा है इंस्पेक्टर
बता दें कि मनीष मिश्रा पिछले 10 साल से  सड़कों पर लावारिस घूम रहा था। ड्यूटी के दौरान वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे,जिसके कारण उन्होंने नौकरी पर जाना बंद कर दिया था। वह शुरुआत में 5 साल तक घर पर रहे, इसके बाद घरवालों ने उनको दिमागी सेंटर या आश्रम में दाखिल करा दिया। लेकिन वह कुछ दिनों बाद वहां से भाग निकले। तभी से वह सड़कों पर भीख मांग कर अपनी गुजर बसर कर रहे हैं।

निशानेबाजी में जीत चुके हैं कई मेडल
मनीष मिश्रा मूलरुप से ग्वालियर के रहने वाले हैं, वह कई सालों से झांसी रोड इलाके की सड़कों पर लावारिस भटकते रहते हैं। मनीष और डीएसपी दोनों एक साथ 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर में भर्ती हुए थे। मनीष इंस्पेक्टर के अलावा एक अचूक निशानेबाज़ थे। जिसके लिए उन्हें कई मेडल तक मिल चुके हैं। डीएसपी रत्नेश सिंह और मनीष मिश्रा ने काफी देर तक पुराने दिनों को याद करके बातचीत की। इस दौरान डीएसपी ने मनीष को अपने साथ ले जान के लिए  के लिए कहा, लेकिन वह इस बात पर राजी नहीं हुए। फिर अधिकारी ने अपने दोस्त को एक सामाजिक संस्था में भेज दिया है और उनकी देखरेख करने को कहा है।

भाई है टीआई तो पिता रह चुके हैं एसपी
बता दें कि मनीष मिश्रा का परिवार आर्थिक स्थिति के हिसाब से काफी मजबूत है। जहां उनके भाई टीआई हैं, पिता व चाचा एडिशनल एसपी से रिटायर हुए हैं। जब मनीष आखिर वक्त में दतिया में तैनात थे तो उस दौरान वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। उनका पत्नी से तलाक हो चुका है। वह एक जिला अदालत में नौकरी करती हैं। जो भी उनकी यह दर्दभरी कहानी सुनता है वह हैरान रह जाता है। फिलहाल डीएसपी दोस्त उनका इलाज करा रहा है।
 

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