अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मां-बाप को भी जिंदगी में कई एग्जाम देने पड़ते हैं। यह मामला भी इसी से जुड़ा है। अपने बेटे को एग्जाम सेंटर तक पहुंचाने एक मजदूर पिता ने उसे बैठाकर 105 किमी साइकिल चलाई। यह मजदूर मनावर तहसील के एक गांव में रहता है। बेटे को 10वीं में तीन विषयों की परीक्षा देनी थी। जब जाने का कोई साधन नहीं मिला, तो पिता उसे साइकिल पर बैठाकर सेंटर लेकर पहुंचा।
भोपाल, मध्य प्रदेश. अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मां-बाप को भी जिंदगी में कई एग्जाम देने पड़ते हैं। यह मामला भी इसी से जुड़ा है। अपने बेटे को एग्जाम सेंटर तक पहुंचाने एक मजदूर पिता ने उसे बैठाकर 105 किमी साइकिल चलाई। यह मजदूर मनावर तहसील के एक गांव में रहता है। बेटे को 10वीं में तीन विषयों की परीक्षा देनी थी। जब जाने का कोई साधन नहीं मिला, तो पिता उसे साइकिल पर बैठाकर सेंटर लेकर पहुंचा। पिता-पुत्र रात सोमवार रात 12 बजे घर से निकले और मंगलवार सुबह करीब 7.30 बजे धार स्थित एग्जाम सेंटर पहुंचे। 7.45 बजे से बच्चे का पेपर था।
बेटे को उदास नहीं देख सका..
शोभाराम अपने बेटे आशीष को खूब पढ़ाना चाहता है। शोभाराम मजदूरी करती है। जब आशीष को लगा कि वो साधन नहीं मिल पाने से एग्जाम नहीं दे पाएगा, तो उसकी उदासी पिता से देखी नहीं गई। शोभाराम ने हिम्मत की और तीन दिनों का खाने-पीने का सामान पोटली में बांधा और बच्चे को साइकिल पर बैठाकर धार के लिए निकल पड़े। चूंकि इनका धार में कोई परिचित नहीं है, इसलिए खाने-पीने का पर्याप्त इंतजाम करके निकले। बुधवार को आशीष का सामाजिक विज्ञान और गुरुवार को अंग्रेजी का पेपर है। यानी गुरुवार को एग्जाम देने तक दोनों धार में कहीं फुटपाथ पर रहेंगे। इसके बाद साइकिल से ही घर लौटेंगे।
शोभाराम ने कहा कि उनका बेटा पढ़ने में होशियार है। कोरोना के चलते बच्चे की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई, इससे वो तीन पेपर में पिछड़ गया। बता दें कि रुक जाना नहीं योजना के तहत शिक्षा विभाग छात्रों को दुबारा मौका दे रहा है। शोभाराम ने बताया कि वो अपने परिचित से 500 रुपए उधार लेकर आया निकला।