7 फेरे लिए बिना शादी से पहले दुल्हन लाल जोड़ में पहुंची दूल्हे के घर, नजारा देख थम गई लोगों की नजरें

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले से अनोखा मामला देखने को मिला। जब एक दुल्हन सजधज कर लाल जोड़े में शादी से पहले दूल्हे के घर पहुंची। इस दौरान बाजे गाजे के साथ निकली और दुल्हन की सहेलियों ने भी खूब ठुमके लगाए।

 

 

बुरहानपुर (मध्य प्रदेश). सात फेरे लेने और विधि विधान से शादी करने के बाद दुल्हन अपने पिया यानि दूल्हे के घर जाती है। लेकिन मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले से अनोखा मामला देखने को मिला। जब एक दुल्हन सजधज कर लाल जोड़ा पहनकर घोड़े पर सवार होकर शादी से पहले दूल्हे के घर पहुंच गई। जिसने भी यह नजारा देखा वह देखता ही रह गया। हर कोई यही बोल, भैया इस दु्ल्हन ने तो कमाल ही कर दिया।

शादी से एक दिन पहले इसलिए दूल्हे के घर जाती है दुल्हन
दरअसल, यह मामला बुरहानपुर के सीलमपुर का है, जब दुल्हन शादी से पहले दूल्हे के पहुंची हुई थी। लोगों ने बताया कि गाडरी परंपरा के अनुसार गुजराती समाज की दुल्हन घोड़े पर बैठकर बाजे गाजे के साथ अपने होने वाले दूल्हे को न्यौता देने के लिए जाती है। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है, इस दौरान लड़की दुल्हन की तरह सजती-संवरती है, फिर गाजे-बाजे के साथ दूल्हे को न्यौता देने पहुंचती है। वहां जाकर दूल्हे से कहती है कि आप कल मुझे ब्याहने के लिए आ जाना, मैं मंडप में आपका इंतजार करूंगी।

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इंजीनियर दूल्हे के पहुंची दुल्हन का अंदाज सबसे निराला था
बता दें कि शादी से पहले दुल्हन रक्षा शाह शुक्रवार को घोड़े पर सवार होकर गाजे-बाजे के साथ होने वाले दूल्हे सनी शाह को निमंत्रण देने के लिए  गुजराती समाज की धर्मशाला में पहुंची थी। इस दौरान दुल्हन ने अपनी सेहलियों के साथ जमकर डांस किया। यह नजारा देख हर कोई थम सा गया और इस नजारे के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। जिसके बाद  दुल्हन के नाचने का वीडियो सोशल मीडिय पर भी वायरल हो रहा है। जहां एक तरफ दूल्हा सनी कंप्यूटर इंजीनियर हो तो वहीं दूल्हन रक्षा पोस्ट ग्रेजुएट है

मुगलों के आंतक से बंद हो गई थी यह परंपर
 वहीं रक्षा शाह के चाचा धर्मेंद्र सुगंध ने बतया कि गुजराती मोड़ वाणिकी समाज की यह प्राचीन परंपरा है जिसमें लड़की दूल्हे के घर जाती है। हमें गर्व है कि आधुनिकता में भी हमारे युवा बच्चे इस परंपरा को निभा रहे हैं। वैसे हमारी प्राचीन संस्कृति और परंपरा से परिचित कराने की जरुरत नहीं है। जब मुगलों का राज था तो मुगलों ने यह परंपरा बंद करवा दी गई थी। लेकिन लोकतंत्र आने के बाद मुगलों का आतंक खत्म हुआ तो यह प्राचीन परंपरा फिर से शुरू हो हुई, जिसे युवा आगे ले जा रहे हैं।

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