संत रामदास समर्थ की जन्मभूमि जालना में वारदात, 480 साल पुराने मंदिर से 11 मूर्तियों की चोरी मामले में 2 पकड़ाए

महाराष्ट्र के जालना जिले के जाबं गांव जो कि महान संत रामदास समर्थ की जन्मस्थली से 480 साल प्राचीन मंदिर से 22 अक्टूंबर के दिन 11 पंचधातुओं की मूर्तियों की चोरी करने के मामले में दो लोगों को अरेस्ट किया है एक की तलाश जारी है। जानकारी पुलिस शुक्रवार को दी।

जालना. महाराष्ट्र के जालना स्थित प्राचीन मंदिर से चोरी की वारदात सामने आई थी। जहां मामले में कार्यवाही करते हुए पुलिस ने दो आरोपियों को अरेस्ट करने में सफलता पाई है। वहीं एक आरोपी की तलाश की जा रही है। यह वहीं प्रसिद्ध जगह है जहां महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत समर्थ रामदास की जन्मस्थली है। यहां से ही एक मंदिर से 480 साल पुरानी संरक्षित मूर्तियों को चोरी करने की वारदात की थी। 

11 मूर्तियों  की हुई थी चोरी, 5 हुई बरामद
मामले की जांच कर रही पुलिस अधीक्षक अक्षय शिंदे ने जानकारी देते हुए बताया कि गुरुवार देर रात सोलापुर से सीक्रेट इंटेल मिली की यहां देवताओं की मूर्तियों की अवैध खरीद बिक्री की जा रही है। सूचना  मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने दो लोगों को अरेस्ट किया जबकि उनका एक साथी फरार हो गया है। वहीं पुलिस को उनके पास से मंदिर से चोरी  हुई 11 मूर्तियों में 5 की बरामद हुई है। वहीं आरोपियों में एक कनार्टक और दूसरा सोलापुर के निवासी होने की जानकारी है। 

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महान संत जो की महाराज शिवाजी के भी गुरु थे, उनकी जन्मस्थली में हुई वारदात
महाराष्ट्र के जालना जिले के जांब गांव जो कि महाराष्ट्र के महान संत और श्री शिवाजी महाराज के गुरू संत समर्स्थ  की जन्मस्थली में स्थित एक प्राचीन मंदिर  से 480 साल पुरानी पंच धातुओं से निर्मित 11 भगवान की मूर्तियों को चोरी करने की घटना हुई थी। तीन चोरों ने इस वारदात  को अंजाम दिया था। ये वहीं महान संत थे जिनको कभी मराठा वंश के महान शासक शिवाजी राव अपना गुरू मानते थे। 

स्वराज्य स्थापना के सपने पूरा होते देखा
महाराष्ट्र के महान संत समर्थ रामदास ने स्वराज्य स्थापना को सपना देखा था, जिसमें उनके इस सपने को साकार करने में प्रबल भूमिका छत्रसाल महाराज शिवाजीराव ने पूरा किया। इनके सिद्धांतों को मानने वालों में लोकमान्य तिलक, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार आदि महान नेताओं का नाम आता है। 

इनकी रचना को श्री रामचरित मानस जैसा सम्मान
समर्थ संत रामदास की रचना दासबोध को महाराष्ट्र में बहुत अधिक सम्मान दिया जाता है। जितना सम्मान हिंदी जानने वाले श्री रामचरित मानस को देते है उतना ही सम्मान मराठी जानने वाले इनकी रचना दासबोध को देते है। महाराष्ट्र का व्यक्तित्व गढ़ने में इस ग्रंथ का महत्त्व सर्वाधिक है।

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