‘अनाथों की मां’ पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन, 1400 से ज्यादा बच्चों को पाला, जानिए उनके बारे में सब कुछ

सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीने उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में जारी था। पिछले साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मंगलवार शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली। आज पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

पुणे। अनाथ बच्चों की मां कही जाने वाली और सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार विजेता सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) का निधन हो गया। उन्होंने मंगलवार को 73 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। सिंधु सपकाल को अक्सर सिंधुताई या मां कहकर पुकारा जाता था। उन्होंने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों की जिंदगी संवारने में लगा दिया। 1400 से ज्यादा अनाथ बच्चों का पालन-पोषण किया। उत्कृष्ठ समाज सेवा के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री (Padma Shri) से सम्मानित किया था। सिंधुताई सपकाल को लोग प्यार से 'अनाथों की मां कहते थे।

सिंधुताई सेप्टीसीमिया से पीड़ित थीं और पिछले डेढ़ महीने उनका इलाज पुणे के गैलेक्सी हॉस्पिटल में जारी था। पिछले साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मंगलवार शाम 8.30 बजे अंतिम सांस ली। आज पुणे में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

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राष्ट्रपति बोले-  सिंधुताई का जीवन सेवा की प्रेरक गाथा
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने डॉ. सिंधुताई सपकाल के निधन पर दुख जताया और कहा कि सिंधुताई का जीवन साहस, समर्पण और सेवा की प्रेरक गाथा था। वह अनाथों, आदिवासियों और हाशिए के लोगों से प्यार करती थीं और उनकी सेवा करती थीं। उनके परिवार और अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं।

 

मोदी बोले- सिंधुताई के जाने से मैं आहत हूं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. सिंधुताई सपकाल के निधन पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंधुताई सपकाल को समाज के लिए उनकी नेक सेवा के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने हाशिए के समुदायों के बीच भी बहुत काम किया। उनके निधन से आहत हूं। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना। शांति।

ऐसा था सिंधुताई का जीवन...
महाराष्ट्र के वर्धा में एक गरीब परिवार में सिंधुताई का जन्म हुआ और बेटी होने के कारण लंबे समय तक भेदभाव झेलना पड़ा। सिंधुताई की जिंदगी एक ऐसे बच्चे के तौर पर शुरू हुई थी, जिसकी किसी को जरूरत नहीं थी। सिंधुताई की मां उनके स्कूल जाने के विरोध में थीं। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि बेटी पढ़े और आगे बढ़े। लिहाजा, जब वह 12 साल की थीं, तब उनकी शादी करा दी गई थी। उनका पति करीब 20 साल बड़ा था। सिंधुताई को पति गालियां देता था और मारपीट भी करता था। जब वह 9 महीने की गर्भवती थीं तो उसने उन्हें छोड़ दिया। उन्हें गौशाला में अपनी बच्ची को जन्म देना पड़ा। वो बताती हैं कि उन्होंने अपने हाथ से अपनी नाल काटी थी।

फिर जो भी बच्चा अनाथ मिला, उसे अपना लेती थीं सिंधुताई
सिंधुताई को प्रताड़ना ने अंदर तक हिला दिया था। उन्होंने आत्महत्या करने की भी बात सोची, लेकिन बाद में अपनी बेटी के साथ रेलवे प्लेटफॉर्म पर भीख मांगकर गुजर-बसर करने लगीं। इस दौरान वो ऐसे कई बच्चों के संपर्क में आईं जिनका कोई नहीं था। उन बच्चों में उन्हें अपना दुख नजर आया और उन्होंने उन सभी को गोद ले लिया। उन्होंने अपने साथ इन बच्चों के लिए भी भीख मांगना शुरू कर दिया। इसके बाद तो सिलसिला चल निकला और जो भी बच्चा उन्हें अनाथ मिलता, वो उसे अपना लेतीं और उसकी देखभाल से लेकर पढ़ाई तक करवाती थीं। सिंधु ताई ने अनाथ बच्चों का पेट भरने के लिए ट्रेनों और सड़कों पर भीख मांगी।

सिंधुताई का अब ये है पूरा परिवार
सिंधुताई का अब परिवार बहुत बड़ा हो गया है। उन्होंने अपने जीवन में 1400 से ज्यादा बच्चों को अपनाया। उनके 307 जमाई हैं, 150 बहुएं हैं और 1000 से ज्यादा पोते-पोतियां हैं। उनके नाम पर 6 संस्थाएं चलती हैं जो अनाथ बच्चों की मदद करती हैं। उनके इस काम के लिए उन्हें पद्मश्री समेत 500 से ज्यादा सम्मानों से नवाजा गया। पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर सिंधुताई ने कहा कि ये पुरस्कार मेरे सहयोगियों और मेरे बच्चों का है। उन्होंने लोगों से अनाथ बच्चों को अपनाने की अपील की है। ताई ने आगे कहा था- मेरी प्रेरणा, मेरी भूख और मेरी रोटी है। मैं इस रोटी का धन्यवाद करती हूं क्योंकि इसी के लिए लोगों ने मेरा उस समय साथ दिया, जब मेरी जेब में खाने के भी पैसे नहीं थे। यह पुरस्कार मेरे उन बच्चों के लिए हैं जिन्होंने मुझे जीने की ताकत दी।

 

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