
Malegaon Blast Case: महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को धमाका हुआ था, जिसके चलते 6 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए। घटना के 17 साल बाद गुरुवार को एनआईए कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया। सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया है। इस मामले की जांच 10 साल चली। 7 साल कोर्ट में सुनवाई हुई। 2018 में शुरू हुआ यह मुकदमा 19 अप्रैल 2025 को पूरा हुआ। 2011 में NIA को ट्रांसफर होने से पहले इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी। इस मामले में भाजपा नेता और पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी आरोपी थे।
29 सितंबर, 2008: महाराष्ट्र के मालेगांव में भीकू चौक पर मस्जिद के पास बाइक पर रखा बम फटा, जिसमें 6 लोग मारे गए, 100 से ज्यादा घायल हुए। घटना रमजान के पवित्र महीने में हुई।
2008-2009: हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र एटीएस ने जांच का जिम्मा संभाला। भारत में पहली बार हिंदू दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े लोगों पर बम विस्फोट का आरोप लगा।
अक्टूबर 2008: भाजपा नेता साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार किया गया। दोनों पर हिंदू दक्षिणपंथी समूह अभिनव भारत से जुड़े होने के आरोप लगे।
नवंबर 2008: विस्फोट में इस्तेमाल की गई बाइक समेत सबूत बरामद हुए। आरोप लगा कि बाइक ठाकुर की थी। मामले के मुख्य जांचकर्ता और विशेष पुलिस महानिरीक्षक हेमंत करकरे 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले में मारे गए।
2009-2011: एटीएस ने दयानंद पांडे, समीर कुलकर्णी और अजय राहिरकर जैसे दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। इस पर भारी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई। हिंदुत्ववादी संगठनों ने जांच को राजनीति से प्रेरित बताया।
जनवरी 2009: एटीएस ने अपना पहला आरोपपत्र दाखिल किया। 11 अभियुक्तों और 3 वांछित लोगों के नाम शामिल थे। ठाकुर और पुरोहित को मुख्य षड्यंत्रकारी बताया गया। यूएपीए, आईपीसी और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) लगाया गया।
31 जुलाई, 2009: स्पेशल कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ अन्य मामलों से संबंधित साक्ष्यों के अभाव का हवाला देते हुए मकोका के आरोप हटा दिए।
19 जुलाई, 2010: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मकोका के आरोप बहाल किए।
13 अप्रैल, 2011: मामला की जांच की जिम्मेदारी NIA (National Investigation Agency) को ट्रांसफर की गई।
13 मई, 2016: NIA ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट कोर्ट में पेश की। मकोका के आरोप हटा दिए। एटीएस पर सबूत गढ़ने और जबरदस्ती गुनाह कबूल कराने का आरोप लगाया।
25 अप्रैल, 2017: बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य आधार पर प्रज्ञा ठाकुर को जमानत दी।
21 अगस्त, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने 9 साल जेल में रहने के बाद लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को जमानत दी।
27 दिसंबर, 2017: मकोका के आरोप हटा दिए गए, लेकिन एक स्पेशल कोर्ट ने ठाकुर और छह अन्य आरोपियों को बरी करने से इनकार कर दिया। उन्हें यूएपीए, आईपीसी और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करने का आदेश दिया।
30 अक्टूबर 2018: ठाकुर और कर्नल पुरोहित समेत सात आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए।
दिसंबर 2018: औपचारिक रूप से मुकदमा शुरू हुआ।
सितंबर 2023: अभियोजन पक्ष ने अपना साक्ष्य बंद कर दिया, जिसमें 323 गवाहों से पूछताछ की गई, जिनमें से 37 अपने बयान से मुकर गए।
19 अप्रैल, 2025: अंतिम बहस पूरी हुई। कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
31 जुलाई, 2025: फैसला आया। सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया गया।