आज 1 जुलाई से देशभर में लागू होंगे नए क्रिमिनल लॉ, जानें इससे जुड़ी 10 जरूरी बातें एक क्लिक में
आज सोमवार (1 जुलाई) से देश भर में 3 नए क्रिमिनल लॉ लागू होने जा रहे हैं। ये भारत की क्रिमिनल लॉ सिस्टम में जरूरी बदलाव लाएंगे और औपनिवेशिक युग के कानूनों की जगह लेंगे।
sourav kumar | Published : Jul 1, 2024 12:55 AM IST / Updated: Jul 01 2024, 09:27 AM IST
India New Criminal Laws: कहते हैं बदलाव ही जिंदगी का नियम है। इसलिए इस दुनिया में समय-समय पर कई तरह की चीजों में बदलाव देखने को मिलते है, जो वक्त की मांग के अनुसार किए जाते हैं। चाहे वो देश का कानून ही क्यों न हो। इसी तरह से आज सोमवार (1 जुलाई) से देश भर में 3 नए क्रिमिनल लॉ लागू होने जा रहे हैं। ये भारत की क्रिमिनल लॉ सिस्टम में जरूरी बदलाव लाएंगे और औपनिवेशिक युग के कानूनों की जगह लेंगे। इसमें भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम पुराने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे।
नए क्रिमिनल लॉ के लागू होते के साथ ही किसी भी केस में प्रोसेस को तेज करने पर खासा ध्यान जोर दिया गया है। इसके तहत आपराधिक मामले का फैसला मुकदमा खत्म होने के 45 दिनों के भीतर सुनाए जाने का आदेश है। पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए, गवाहों की सुरक्षा और सहयोग सुनिश्चित करने के लिए सभी राज्य सरकारों को गवाह सुरक्षा योजनाएं लागू करनी चाहिए।
बलात्कार पीड़ितों के बयान एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा पीड़िता के अभिभावक या रिश्तेदार की उपस्थिति में दर्ज किए जाएंगे। इसे जुड़ी मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी।
क्रिमिनल लॉ के नए संस्करण में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को एक श्रेणी में लाने की कोशिश की गई है। इसके तहत बच्चे को खरीदना या बेचना एक जघन्य अपराध की श्रेणी में आएगा, जिसके लिए गंभीर दंड दिए जाएंगे। नाबालिग से गैंग रेप के लिए मौत की सजा या आजीवन कारावास हो सकता है।
कानून में अब उन मामलों के लिए दंड शामिल है, जहां शादी के झूठे वादों से गुमराह होने के बाद महिलाओं को छोड़ दिया जाता है।
महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध में शामिल पीड़ित 90 दिनों के भीतर अपने मामलों पर नियमित अपडेट प्राप्त करने के हकदार हैं। देश के सभी अस्पतालों को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के पीड़ितों को मुफ्त प्राथमिक चिकित्सा या चिकित्सा उपचार प्रदान करना जरूरी है।
आरोपी और पीड़ित दोनों 14 दिनों के भीतर FIR, पुलिस रिपोर्ट, आरोप पत्र, बयान, कबूलनामे और अन्य दस्तावेजों की कॉपी हासिल करने के हकदार हैं। मामले की सुनवाई में बेवजह की देरी से बचने के लिए कोर्ट को एक्ट दो की तहत रोकने की अनुमति है।
घटनाओं की रिपोर्ट अब इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से की जा सकती है, जिससे पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। जीरो FIR की शुरुआत व्यक्तियों को क्षेत्राधिकार की परवाह किए बिना किसी भी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करने की अनुमति देती है।
गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है, ताकि उसे तत्काल सहायता मिल सके। परिवारों और दोस्तों की आसान पहुंच के लिए गिरफ्तारी से जुड़ी जानकारी पुलिस स्टेशनों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से दिखाया जाएगा।
अब फोरेंसिक विशेषज्ञों के लिए गंभीर अपराधों के लिए अपराध स्थलों का दौरा करना और सबूत इकट्ठा करना जरूरी है।
लिंग की परिभाषा में अब ट्रांसजेंडर लोग भी शामिल हैं। महिलाओं के खिलाफ कुछ अपराधों के लिए, जब संभव हो तो पीड़िता के बयान महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए जाने चाहिए।