कभी कोणार्क सूर्य मंदिर में लगा था 51 टन का चुंबक, यहां से गुजरते ही भटक जाते थे बड़े-बड़े समुद्री जहाज !

कोणार्क सूर्य मंदिर को अंग्रेजी में 'ब्लैक पैगोडा' भी कहते हैं। प्रवेश द्वार के पास एक नट मंदिर है। जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को खुश करने नृत्य करती थीं। मंदिर में भगवान सूर्य की प्रतिमा इस तरह रखी गई है कि सूर्य की पहली किरण उस पर ही आकर गिरती थी। जिसकी रोशनी से पूरा मंदिर चमक उठता है।

Dil Se Desi : भारत में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) चल रहा है। 15 अगस्त, 2022  को आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। ऐसे में हम आपको उन मशहूर और यादगार स्मारक, मंदिर व म्यूजियम के बारें में बता रहे हैं, जो हिंदुस्तान की आन-बान और शान हैं। ये स्मारक खुद में कई रहस्य भी समेटे हुए हैं। 'Dil Se Desi' सीरीज में बात कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Surya Mandir) के उन रहस्यों के बारें में जो आपको हैरानी में डाल देंगे...

13वीं शताब्दी का कोणार्क सूर्य मंदिर
ओडिशा (Odisha) का कोणार्क सूर्य मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित है। कोण और अर्क से मिलकर इस मंदिर का नाम रखा गया है। कोण का अर्थ कोना और अर्क का मतलब सूर्य होता है। यानी सूर्य देव का कोना। इसकी पहचान कोणार्क के सूर्य मंदिर के नाम से है। 13वीं शताब्दी 1236 से 1264 ई. के मध्यकाल में गंगवंश के पहले शासक नरसिंह देव ने इसका निर्माण कराया था। मंदिर निर्माण में बलुआ, ग्रेनाइट पत्थरों और कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है। 1984 में यूनेस्कों के वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में इस टेंपल को शामिल किया गया।

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1200 मजदूर, 12 साल में सूर्य मंदिर तैयार
यह मंदिर ओडिशा के पुरी शहर से करीब 37 किलोमीटर दूर चंद्रभागा नदी के तट पर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर 26 एकड़ में फैला है। जब इसका निर्माण कराया जा रहा था, तब 1200 मजदूरों ने करीब 12 साल तक दिन-रात एकजुट होकर इस मंदिर को बनाया। मंदिर की ऊंचाई 229 फीट है। इस मंदिर में एक ही पत्थर से बनी सूर्यदेव की तीन-तीन मूर्तियां स्थापित हैं। इस मंदिर में सूर्योदय, सूर्यास्त जैसे भावो को दिखाया गया है।

रथ के रूप में कोणार्क मंदिर का निर्माण
कोणार्क मंदिर की शिल्पकला अद्भुत है। इसका निर्माण रथ के रुप में किया गया है। इस रथ को 7 घोड़े खींच रहे हैं। जिसमें 12 जोड़ी पहिया लगा है। हर पहिया 10 फीट चौड़ा है। मंदिर के ये 12 पहिए यानी चक्र साल के 12 महीनों को दर्शाते हैं। हर चक्र में आठ अर हैं, जो एक दिन के आठ पहर को बताता है। वहीं, 7 घोड़े सप्ताह के सात दिन को परिभाषित करते हैं। मंदिर की सबसे गजब की जो बात है वह यह कि मंदिर के चक्रों पर सूर्य की जो छाया पड़ती है, उससे समय का एकदम सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। मंदिर के ऊपरी हिस्से से सूर्योदय और सूर्यास्त का जो नजारा होता है, वह अद्भुत होता है। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की तरफ है।  

हैरान कर देगा सूर्य मंदिर का रहस्य
सूर्य मंदिर का रहस्य जान आप भी हैरान रह जाएंगे। कथाओं के अनुसार कभी इस मंदिर के ऊपरी भाग पर 51 टन का चुंबक लगा हुआ था। यह इतना प्रभावशाली था कि इसकी जद से गुजरने वाला बड़े से बड़ा समुद्री जहाज रास्ते से भटक जाता था। जहाज चुंबक की ओर खींचे आते थे। चुंबक का ही प्रभाव रहता था कि जहाजों में जो कंपास लगाए गए होते थे, वे गलत दिशा बताने लगते थे। कहा जाता है कि इसी के चलते नाविकों ने मिलकर इस चुंबर को यहां से हटा दिया। हालांकि इसको लेकर कोई प्रमाणित बात सामने नहीं आती है। मंदिर का निर्माण ऐसा हुआ है कि इन रहस्यों और कहानियों पर लोगों का विश्वास बना हुआ है।

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