'द लीजेंड्स ऑफ खासक' से मिली ओवी विजयन को पहचान, एक कार्टूनिस्ट जिन्होंने बदल दी मलयालम साहित्य की दिशा

एक कार्टूनिस्ट के साथ-साथ विजयन लेख और उपन्यासकार भी थे। उन्होंने कई विषयों पर लिखा। उनकी सबसे प्रसिद्ध लेखनी काम खसकिनते इतिहसम थी। इसके बाद उन्होंने 1985 में धर्मपुरी की गाथा धर्मपुरम, मधुरम गायत्री, गुरुसागरम और प्रवाचंते वाझी लिखी।

Best of Bharat : 15 अगस्त, 2022 को भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस अवसर पर आजादी के अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) का आयोजन चल रहा है। देश में जगह-जगह देशभक्ति का जज्जा, हर घर तिरंगा कैंपेन भी चल रहा है। हर कोई देशभक्ति से सराबोर है। ऐसे मौके पर हम आपको बता रहे हैं देश के उन मशहूर कार्टूनिस्ट के बारें में, जिनकी कागजों पर खींची लकीरों ने ऐसी क्रांति की, जिसका गवाह आज पूरा हिंदुस्तान है। उनके बनाए कार्टून आज भी दिलों में जीवंत हैं। 'Best of Bharat'सीरीज में बात आधुनिक मलयालम भाषा के साहित्य में एक अलग महत्व रखने वाले लेखक और कार्टूनिस्ट ओवी विजयन (OV Vijayan) की...

ऐसा रहा ओवी विजयन का बचपन
ओवी विजयन का जन्म 2 जुलाई, 1930 को केरल के पलक्कड़ जिले के विलायनचाथनूर गांव में हुआ था। कहा जाता है कि उनका जन्म 7वें महीने में ही हो गया था। इस कारण वे अक्सर बीमार रहा करते थे और ज्यादातर वक्त अपने कमरे में ही बिताते थे। उनकी फैमिली में एजुकेशन का माहौल शुरू से ही रहा। पिता ओ वेलुकुट्टी ब्रिटिश भारत में मद्रास प्रांत के मालाबार में एक पुलिस ऑफिसर थे। सबसे छोटी बहन ओवी उषा मलयालम की कवयित्री हैं। 30 मार्च, 2005 को 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

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12 साल की उम्र में शुरू हुई स्कूली शिक्षा
ओवी विजयन की औपचारिक स्कूली शिक्षा तब शुरू हुई जब वे 12 साल के थे। उस वक्त राजा के हाईस्कूल, कोट्टक्कल में मालाबार में उनका सीधे ही 6वीं क्लास में एडमिशन हुआ। इसके एक साल बाद पिता का ट्रांसफर हो गया और विजयन का एडमिशन पलक्कड़ के कोडुवयूर के एक स्कूल में हुआ। यहीं के विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन किया और प्रेसीडेंसी कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य (English literature) में पोस्ट ग्रेजुएशन। लेखक और कार्टूनिस्ट के तौर पर पत्रकारिता में आने से पहले विजयन मालाबार क्रिश्चियन कॉलेज, कोझीकोड और विक्टोरिया कॉलेज में बतौर शिक्षक काम किया था।

कार्टून से खास लगाव
कॉलेज में कुछ दिन पढ़ाने के बाद 1958 में कार्टूनों में उनकी दुनिया बसने लगी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रुख किया. यहां वे कार्टून आर्ट के पितामह के शंकर पिल्लई (K Shankar Pillai) की पत्रिका शंकर वीकली में काम करने लगे। इसके बाद विजयन द पैट्रियट में एक स्टाफ कार्टूनिस्ट बन गए और कई बड़े अखबारों के साथ पत्रकार के रुप में काम किया।

द लीजेंड्स ऑफ खासक ने दी पहचान
विजयन ने तो वैसे 6 उपन्यास, नौ लघु-कथा संग्रह, निबंधों, संस्मरण और प्रतिबिंब का को लिखा लेकिन उन्हें पहचान अपने पहले ही उपन्यास द लीजेंड्स ऑफ खासक (खासकिंते इतिहासम) से मिली। यह विजयन का पहला उपन्यास था, जिसे लिखने में उन्हें 12 साल का लंबा वक्त लगा। 1969 में जब यह उपन्यास प्रकाशित हुआ तो कहा जाता है कि यहां से एक महान साहित्यिक क्रांति की शुरुआत हुई। इस उपन्यास ने मलयालम कथा साहित्य के इतिहास को खसाक पूर्व और खसाक के बाद के युगों में विभाजित किया। इस उपन्यास ने गद्य की एक नई काव्य शैली पेश की, जिसमें तमिल, पलक्कड़ और संस्कृतकृत मलयालम भाषा को शामिल किया गया। 

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