केंद्र का बड़ा फैसला : असम, नगालैंड और मणिपुर में अब सीमित क्षेत्रों पर ही लागू होगा AFSPA

Published : Mar 31, 2022, 02:59 PM ISTUpdated : Mar 31, 2022, 04:44 PM IST
केंद्र का बड़ा फैसला : असम, नगालैंड और मणिपुर में अब सीमित क्षेत्रों पर ही लागू होगा AFSPA

सार

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA ) उग्रवाद प्रभावित पूर्वोत्तर के राज्यों में लागू किए गए थे। इन राज्यों में सेना को कार्रवाई में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को इससे जुड़ा कानून पारित किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इस कानून को वहां भी लगा दिया गया। 

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने गुरुवार को पूर्वोत्तर के राज्यों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) का दायरा कम कर दिया है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अमित शाह ने यह जानकारी दी। उन्होंने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के इस निर्णायक कदम से दशकों से उपेक्षित महसूस कर रहे उत्तर पूर्वी राज्यों में शांति व समृद्धि के नए युग की शुरुआत होगी।  

इस कदम से असम, नगालैंड और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) का क्षेत्र सीमित हो गया है। क्षेत्र सीमित करने का मतलब यह है कि यह विशेष कानून अब इन राज्यों के कुछ इलाकों तक ही सीमित रहेगा। गौरतलब है कि अफस्पा हटाने की मांग दशकों से चली आ रही है। लेकिन उग्रवाद से जूझ रहे इन इलाकों में सेना रखना केंद्र सरकार की मजबूरी है। इन प्रदेशों में सेना को विशेष अधिकार दिए गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को ट्विटर पर अफस्पा के क्षेत्र कम करने की जानकरी दी, जिसके बाद लोग मोदी सरकार के इस फैसले की तारीफ कर रहे हैं। मिजोरम के सीएम जोरामथांगा (Zoranmthanga) ने भी पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह का धन्यवाद दिया। उन्होंने #Northeastindia is one साथ ट्वीट करते हुए लिखा- दिल की गहराइयों से श्री नरेंद्र मोदीजी और श्री अमित शाह का बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

क्या है AFSPA कानून, क्यों होता रहा है इसका विरोध 
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट को अफस्पा (AFSPA) कहा जाता है।  मूलत: यह कानून अंग्रेजों के जमाने का है। उस दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने वालों को कुचलने के लिए सेना को विशेष अधिकार दिए थे। देश से अंग्रेजी हुकूमत खत्म हो गई, लेकिन पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया और 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA लागू कर दिया गया। तीन महीने बाद ही अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिल गई और 11 सितंबर 1958 को AFSPA एक कानून के रूप में लागू हो गया। सबसे पहले यह उग्रवाद प्रभावित पूर्वोत्तर और पंजाब के आतंकवाद प्रभावित इलाकों में लागू किया गया। वर्तमान में यह कानून असम, नगालैंड, मणिपुर, जम्मू कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के तमाम इलाकों में लागू है।  

इस कानून के तहत गोली भी मार सकते हैं सशस्त्र बल 
यह एक्ट सेना को शांति बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार देता है। इसके जरिये वे कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद उस पर गोली भी चला सकते हैं। कानून के तहत सैन्य बल बिना गिरफ्तारी वारंट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं। यही नहीं, वे कहीं भी प्रवेश कर सकते हैं और बिना सर्च वारंट के तलाशी ले सकते हैं। इस एक्ट में प्रावधान है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना सुरक्षा बलों के खिलाफ राज्य सरकारें किसी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकती हैं।

यह भी पढ़ें AFSPA हटाने के लिए 16 साल भूख हड़ताल करने वाली इरोम शर्मिला बोलीं-मानव जीवन सस्ता नहीं, अब तो खुले आंखें सबकी

नगालैंड की घटना के बाद फिर उठा था अफस्पा का विरोध
4 दिसंबर 2021 को नगालैंड (Nagaland) के मोन जिले में सेना की फायरिंग में 14 लोगों की मौत के बाद एक बार फिर इस कानून को हटाने की मांग तेज हुई थी। इस घटना को लेकर असम राइफल्स ने बताया था कि उग्रवादियों के मूवमेंट की खुफिया जानकारी के आधार पर वे सर्चिंग कर रहे थे। एक ट्रक में आ रहे लोगों ने गाड़ी नहीं रोकी और विद्रोहियों की आशंका में हुई फायरिंग में उनकी मौत हो गई। घटना के बाद गांव वालों ने सुरक्षाबलों की गाड़ियों को आग लगा दिया था। जिसमें एक जवान की मौत हो गई थी। 

यह भी पढ़ें नागालैंड से AFSPA की वापसी के लिए कमेटी गठित, 45 दिनों में सौंपगी रिपोर्ट



 

PREV
Read more Articles on

Recommended Stories

वंदे मातरम पर संसद में चर्चा आज: पीएम मोदी दोपहर 12 बजे करेंगे शुरुआत, जानें क्यों हो रही ये बहस
Weather Alert: अगले 5 दिन कोहरा, ठंड का डबल अटैक, दिल्ली से केरल तक का हाल जानिए