
White Collar Terror Module: अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों से जुड़ा यह व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल जितना शांत नजर आता था, अंदर से उतना ही खतरनाक निकला। जांच में खुलासा हुआ है कि इस मॉड्यूल के तीन चेहरे-डॉ. मुजम्मिल, डॉ. शाहीन सईद और ब्लास्ट में मारा गया डॉ. उमर नबी-अपना-अपना तय रोल निभा रहे थे। हैरानी की बात यह है कि लोग जिन डॉक्टरों पर इलाज का भरोसा करते थे, वही डॉक्टर आतंक की जड़ें फैलाने में लगे थे। पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह नेटवर्क अस्पताल, कॉलेज और स्थानीय लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी के बीच ही चल रहा था, बिना किसी को शक हुए। डॉ. मुजम्मिल लोगों से मदद के बहाने मिलता था, डॉ. शाहीन उन्हें ब्रेनवॉश करती थी, और डॉ. उमर साजिशों की प्लानिंग संभालता था। साधारण दिखने वाले इन डॉक्टरों की असल दुनिया पूरी तरह अलग और खतरनाक थी।
इस मॉड्यूल का ऑपरेशन तरीका सीधा था, लेकिन बेहद चालाकी भरा। हर सदस्य को पहले से ही उसकी भूमिका समझा दी गई थी, ताकि किसी को पता भी न चले और नेटवर्क लगातार चलता रहे।
वह अस्पताल में मरीजों और उनके परिजनों के साथ ‘हमदर्दी’ दिखाता था, जरूरत पड़ने पर छोटी-मोटी आर्थिक मदद और भरोसे की बात करता था। इसी बहाने वह लोगों से नजदीकी बढ़ाता और फिर उन्हें धीरे-धीरे अपने जाल में फंसा लेता। जांच में पता चला कि उसका पहला टारगेट शोएब था, जो धौज की अफसाना का जीजा है। मुजम्मिल ने उसकी कमजोरियों को समझा, सहानुभूति दिखाई और फिर उसे अपने कामों में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
शाहीन का तरीका बेहद शांत लेकिन असरदार था। वह धार्मिक तर्क, भावनाएं और ‘न्याय’ जैसी बातों के जरिए लोगों के दिमाग में धीरे-धीरे ज़हर घोलती थी। कई युवाओं को उसने यह यकीन दिला दिया था कि वे किसी ‘बड़े काम’ का हिस्सा बन रहे हैं।
मॉड्यूल का तीसरा और सबसे खतरनाक सदस्य था आतंकी डॉ. उमर नबी।
उसकी भूमिका थी -
उमर को प्लानिंग का मास्टर माना जाता था। ब्लास्ट में उसकी मौत के बाद कई राज सामने आए, जिनसे पता चलता है कि वही इस पूरे नेटवर्क का असली ऑपरेटर था।