इंटर रिलीजन मैरिज को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। एक मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी के माता-पिता द्वारा दायर याचिका को कोर्ट ने रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा, किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार है। कानून दो बालिग व्यक्तियों को एक साथ रहने की इजाजत देता है, चाहे वे समान या विपरीत सेक्स के ही क्यों न हों।
नई दिल्ली. इंटर रिलीजन मैरिज को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। एक मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी के माता-पिता द्वारा दायर याचिका को कोर्ट ने रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा, किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार है। कानून दो बालिग व्यक्तियों को एक साथ रहने की इजाजत देता है, चाहे वे समान या विपरीत सेक्स के ही क्यों न हों।
हम हिंदू और मुस्लिम के रूप में नहीं देखते हैं: कोर्ट
जिस व्यक्ति से शादी की गई, उसका नाम सलामत अंसारी है। शादी करने के बाद लड़की ने इस्लाम धर्म अपना लिया था। अदालत ने कहा, हम प्रियंका खरवार और सलामत अंसारी को हिंदू और मुस्लिम के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि दो बालिग व्यक्ति हैं, जो अपनी मर्जी और पसंद से शादी कर रहे हैं।
विशेष रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए कहा जाता है।
वह केस जिसपर कोर्ट ने इतनी बड़ी टिप्पणी की
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले सलामत ने अगस्त 2019 में अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ प्रियंका खरवार से शादी की। शादी से पहले प्रियंका ने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम बदलकर आलिया रख लिया।
पोक्सो एक्ट के तहत सलामत के खिलाफ केस था
प्रियंका के माता-पिता ने तब सलामत के खिलाफ अपहरण और शादी के लिए मजबूर करने के लिए अपहरण जैसे अपराधों का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की थी। प्रियंका के माता-पिता ने अपनी शिकायत में कड़े POCSO एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट) को भी शामिल किया, जिसमें दावा किया गया कि प्रियंका जब शादी कर रही थी तब वह नाबालिग थी।
कोर्ट ने हा, राज्य भी आपत्ति नहीं कर सकता है
अदालत ने कहा कि यहां तक कि राज्य भी दो बालिग लोगों के संबंध को लेकर आपत्ति नहीं कर सकता है। इस मामले में पोक्सो एक्ट नहीं लागू होता है।