1996 में फ्लाइट में हुई थी अमर सिंह और मुलायम की पहली मुलाकात, सिर्फ 4 साल में ऐसे बन गए थे चाणक्य

राज्यसभा सांसद अमर सिंह का निधन हो गया। वे 64 साल के थे। अमर सिंह को 2000 के दशक में उत्तर प्रदेश की राजनीति का चाणक्य माना जाता था। हालत ये थी कि उनके एक इशारे पर ही लोग सांसद बन जाते थे। समाजवादी पार्टी से यहां उसके समर्थन से अमर सिंह 4 बार राज्यसभा सांसद रहे।

Asianet News Hindi | Published : Aug 1, 2020 12:28 PM IST

नई दिल्ली. राज्यसभा सांसद अमर सिंह का निधन हो गया। वे 64 साल के थे। अमर सिंह को 2000 के दशक में उत्तर प्रदेश की राजनीति का चाणक्य माना जाता था। हालत ये थी कि उनके एक इशारे पर ही लोग सांसद बन जाते थे। समाजवादी पार्टी से यहां उसके समर्थन से अमर सिंह 4 बार राज्यसभा सांसद रहे। अमर सिंह को मुलायम सिंह यादव का काफी करीबी माना जाता था। आईए जानते हैं कि कैसे दोनों की मुलाकात हुई...

फ्लाइट में हुई थी पहली मुलाकात
मुलायम सिंह और अमर सिंह की पहली मुलाकात 1996 में एक फ्लाइट में हुई थी। उस वक्त मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री थे। वे फ्लाइट से सफर कर रहे थे, उसी में अमर सिंह भी बैठे थे। दोनों लोगों की यहां अनौपचारिक मुलाकात हुई। लेकिन यहीं से दोनों की दोस्ती की नींव पड़ी। 

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अमर सिंह का बढ़ा सपा में दबदबा 
इस मुलाकात के बाद दोनों नेताओं के बीच मुलाकात का दौर शुरू हो गया। जल्द ही मुलायम सिंह ने अमर सिंह को राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। चार साल की दोस्ती का नतीजा ये रहा कि 2000 में अमर सिंह का सपा में दबदबा काफी बढ़ गया। यहां तक की पार्टी के टिकट के बंटवारे से मंत्रीमंडल के निर्णय तक मुलायम सिंह अहम फैसलों में अमर सिंह की बात मानने लगे। जल्द ही अमर सिंह का नाम राज्य के ताकतवर नेताओं में शुमार हो गया। 

6 सितंबर 2011 को अमर सिंह भाजपा के दो सांसदों के साथ तिहाड़ जेल भेजे गए। कैश फॉर वोट कांड में अमर सिंह को जेल हुई थी।
अमर सिंह चार बार राज्यसभा सांसद रहे।

अमर सिंह ने भी अपनी दोस्ती निभाई। उन्होंने मुलायम सिंह को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाने में अहम रोल निभाया। यह ऐसा वक्त था कि जब अमर सिंह पार्टी में  नंबर 2 की भूमिका में आ गए। 

केंद्र में पर्दे के पीछे से निभाई अहम भूमिका
बताया जाता है कि जब 2004 में यूपीए को सपा ने समर्थन दिया तो कई बार बैकफुट पर कांग्रेस का सपा ने साथ दिया। ऐसा माना जाता है कि अमर सिंह ही इन सबके पीछे की बड़ी वजह थे। यहां तक कि सिविल न्यूक्लियर डील फैसले के दौरान  'कैश फॉर वोट' जैसे बड़े मामलों में भी अमर सिंह का नाम सामने आया।




खुद पार्टी खड़ी नहीं कर पाए अमर सिंह
अमर सिंह को 2010 में सपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद अमर सिंह ने राष्ट्रीय लोकमंच पार्टी का गठन किया। 2012 चुनाव में अमर सिंह की पार्टी 300 से ज्यादा सीटों पर लड़ी। लेकिन एक पर भी जीत हासिल नहीं कर पाई। इतना ही नहीं 2014 में अमर सिंह राष्ट्रीय लोकदल के टिकट से फतेहपुर सीकरी सीट से लोकसभा चुनाव लड़े। लेकिन वे यहां भी हार गए।

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