Analysis: अपने ही गर्म किए दूध से जल गया शिवसेना का मुंह, भारी पड़ीं ये 3 गलतियां

Published : Nov 12, 2019, 08:21 AM ISTUpdated : Nov 12, 2019, 10:35 AM IST
Analysis: अपने ही गर्म किए दूध से जल गया शिवसेना का मुंह, भारी पड़ीं ये 3 गलतियां

सार

एनसीपी-कांग्रेस के साथ बन रहे नए गठबंधन को लेकर शिवसेना, मौजूदा गठबंधन (एनडीए) से अलग होकर सरकार बनाने का ख्वाब पाल बैठी। शिवसेना के पास सहयोग करने वाले किसी भी दल का समर्थन नहीं था। सेना को वक्त चाहिए था, जो नतीजों के बाद निकल चुका था और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी देने को राजी नहीं हुए।

मुंबई. पिछले 48 घंटों में महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ हुआ, शिवसेना और उसके "चीफ" ने इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं की होगी। कहां तो राज्यपाल से न्योता मिलने से पहले तक पार्टी की ओर से 175 विधायकों के समर्थन दावा था, और जब उस दावे को हकीकत में बदलने का वक्त आया तो गवर्नर हाउस में "शिवसैनिकों" के हाथ पूरी तरह से खाली थे। शिवसेना के पास सहयोग करने वाले किसी भी दल का समर्थन नहीं था। सेना को वक्त चाहिए था, जो नतीजों के बाद निकल चुका था और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी देने को राजी नहीं हुए।

एनसीपी-कांग्रेस के साथ बन रहे नए गठबंधन को लेकर शिवसेना, मौजूदा गठबंधन (एनडीए) से अलग होकर सरकार बनाने का ख्वाब पाल बैठी। जिसके जरिए ये हसीन सपने बुने गए उसने ऐन वक्त वो पैंतरा दिखाया, जिसके लिए उद्धव सोमवार की रात निश्चित ही शब्दकोश में उचित "पर्यायवाची" ढूंढ रहे होंगे। 56 विधायकों वाली शिवसेना की ओर से हवा हवाई चीजों के अलावा अबतक जो दिखा वो अनुभवहीनता, बड़बोलापन ही नजर आया। और इसका नतीजा यह हुआ कि शिवसेना अब एक बार फिर वहीं पर खड़ी है, जहां 24 अक्टूबर को नतीजों के बाद से है।

जबरदस्त ड्रामे के बीच जो सबसे बड़ा सवाल है वो ये कि क्या सच में शिवसेना को समर्थन जुटाने के लिए और वक्त चाहिए था, क्या सच में कांग्रेस-एनसीपी, शिवसेना का समर्थन करने के लिए तैयार थीं। या सब वैसा ही हुआ जैसा महाराष्ट्र में राजनीति के कुछ माहिर चाहते थे। सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर शिवसेना से गलती हुई कहां? पूरे मामले में तीन चीजें शिवसेना के खिलाफ जाती नजर आईं।

#1. शिवसेना के प्लान बी में होमवर्क नहीं धमकी ज्यादा

ये सच है कि शिवसेना के पास समर्थन जुटाने के लिए बहुत कम समय था। मगर सत्ता के नजदीक आकर फंसी बीजेपी से निपटने के लिए पार्टी के पास ठोस रणनीति की कमी थी। नतीजों के बाद से ही पार्टी ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग करती रही, पर उसने दूसरे विकल्प पर बिल्कुल भी काम नहीं किया। संजय राऊत समेत पार्टी के तमाम नेता बयानबाजी में उलझे रहे। उन्होंने नतीजों के बाद से लगातार दूसरे विकल्प के संकेत दिए, मगर समय रहते इस पर ठोस कुछ भी नहीं हुआ। जबकि नतीजों के दिन से ही विपक्ष से शिवसेना को लगातार संकेत मिल रहे थे। बड़बोले बयान बीजेपी से अपनी मांगें मनवाने की धमकी भर नजर आईं। अगर शिवसेना ने 18 दिनों में अपने दूसरे विकल्प पर ध्यान दिया होता तो शायद उसके आखिरी 24 घंटे पर्याप्त होते। ऐसा इसलिए हुआ कि डर दिखाकर पार्टी सिर्फ बीजेपी के साथ ही अपनी शर्तों पर सरकार चाहती थी।

#2. नेता के नाम का खुलासा नहीं कर पाई सेना

शिवसेना ने एक और बड़ी गलती की। मुख्यमंत्री का राग वो चुनाव के पहले से आलाप रही है, मगर आखिरी वक्त तक ऐलान नहीं किया। कम से कम नतीजों के बाद नाम ऐलान करना था। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व "एक शिवसैनिक ही मुख्यमंत्री बनेगा" का राग गाता रहा। संदेश यह गया कि आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की कवायद है। यह संदेश पार्टी के अंदर और बाहर नकारात्मक स्थिति की ओर लेकर बढ़ी। अब सामने भी आ रहा है कि आदित्य के नाम की वजह से तमाम दिग्गज शिवसेना के साथ चुनाव बाद गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। नए बन रहे गठबंधन में तमाम नेता आदित्य जैसे "जूनियर" के अंडर में काम करने को राजी नहीं थे। यही वजह रही कि सहमति बनाने के लिए बाद में मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव का नाम भी चर्चा में आया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

#3. कांग्रेस में आंतरिक विरोध

दूसरे विकल्प पर शिवसेना की ओर से चीजें इतनी लेट हुईं कि पार्टी कांग्रेस-एनसीपी की ओर से शुरुआती भरोसा खो चुकी थी। बिल्कुल आखिरी वक्त में शिवसेना ने अपने दूसरे विकल्प पर सक्रियता दिखाई। हालांकि समय इतना कम बचा था कि आखिरी 10 घंटों में सबकुछ बिगड़ गया। सोमवार को मुंबई से दिल्ली तक बातचीत के मैराथन दौर चले। उद्धव ने खुद शरद पवार और फोन पर सोनिया गांधी से बात भी की। संजय राऊत और पार्टी के दूसरे दिग्गजों ने भी मोर्चा संभाला। मगर शिवसेना को समर्थन देने की बात पर कांग्रेस और एनसीपी में दो धड़े बन गए। एक गुट समर्थन देने की बात कर रहा था, दूसरा खारिज। कांग्रेस में तो शिवसेना का विरोध करने वाले धड़े ने सोनिया और राहुल से तीखी नाराजगी भी जताई।

...और शाम तक खत्म हो गई ठाकरे की फिल्म

इसका नतीजा यह रहा कि शाम तक एनसीपी और कांग्रेस एक-दूसरे के पाले में गेंद फेंकते नजर आए। एनसीपी ने कहा, "हमारा फैसला कांग्रेस के स्टैंड के बाद होगा।" कांग्रेस ने संशय बरकरार रखा, शिवसेना के पास कम वक्त होने पर दुख भी जाहिर किया। लेकिन यह भी कहा कि अभी शरद पवार के साथ एक दौर की और बातचीत होगी जिसके बाद फैसला लिया जाएगा। शाम 8.30 तक पहले आदित्य ठाकरे और बाद में अजीत पवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस से शिवसेना की फिल्म का एंड हो चुका था।

वैसे अभी भी यह कहना मुश्किल है कि सरकार किसकी बनेगी? मगर नई सरकार बनने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं। बीजेपी के अलावा तीनों बड़े दल साथ आएं। या फिर तीनों बड़े दलों में से कोई बीजेपी के साथ जाए।

PREV

Recommended Stories

गजब का पागलपन! Lionel Messi की एक झलक पाने कपल ने कैंसल कर दिया हनीमून प्लान
'सपना सच हो गया' Lionel Messi को देखने के लिए क्रेजी फैंस में TMC विधायक भी शामिल