सुप्रीम फैसले के बाद केजरीवाल का पहला एक्शनः दिल्ली सरकार के सेवा सचिव को हटाया- अब मिल चुका है ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार

Published : May 11, 2023, 10:23 AM ISTUpdated : May 11, 2023, 07:13 PM IST
Arvind Kejriwal

सार

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है कि दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। उपराज्यपाल चुनी गई सरकार के सलाह पर प्रशासन चलाएंगे।

नई दिल्ली। दिल्ली के अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार राज्य सरकार के पास है या केंद्र सरकार के पास, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ ने गुरुवार को फैसला सुनाया। इस मुद्दे पर लंबे समय में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच टकराव था। पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार की सलाह पर प्रशासन चलाएंगे।

सीजेआई ने कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों पर केंद्र की दलीलों से निपटना जरूरी है। 2019 में जस्टिस भूषण द्वारा दिए गए फैसले पर सहमत नहीं हैं। दिल्ली में चुनी हुई सरकार है, लेकिन उसके पास शक्तियां कम हैं। चुनी गई सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है। दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम हैं।

बता दें कि डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने इस मामले में सुनवाई की थी। अरविंद केजरीवाल सरकार 2018 में इस मामले में कोर्ट गई थी। राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि उपराज्यपाल उसके द्वारा लिए गए फैसलों को रद्द कर रहे हैं। दरअसल, दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। यहां उपराज्यपाल केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं।

अरविंद केजरीवाल ने लिया पहला एक्शन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। इस निर्णय के बाद केजरीवाल सरकार ने गुरूवार शाम दिल्ली सरकार के सेवा विभाग के सचिव आशीष मोरे को हटा दिया। यह स्थानांतरण कई में से पहला है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़े प्रशासनिक फेरबदल की चेतावनी दी है।

पिछले साल कोर्ट ने कहा था बॉस है दिल्ली सरकार

दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया था कि उपराज्यपाल द्वारा अधिकारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया। फाइलों को मंजूरी नहीं दी गई। वे सरकार द्वारा लिए जा रहे बुनियादी फैसलों में भी बाधा डाल रहे हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा था कि चुनी हुई दिल्ली की सरकार बॉस है। कोर्ट ने कहा था कि भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े मुद्दों को छोड़कर, उपराज्यपाल के पास संविधान के तहत "कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्तियां नहीं हैं"।

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कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल को चुनी हुई सरकार की सहायता और सलाह से काम करना है। वह सरकार के कामकाज में बाधा नहीं डाल सकते। जजों ने कहा था, "निरंकुशता और अराजकतावाद के लिए कोई जगह नहीं है।" बाद में एक नियमित पीठ ने सेवाओं सहित व्यक्तिगत पहलुओं से संबंधित अपीलों पर विचार किया। दिल्ली सरकार ने खंडपीठ के खंडित फैसले का हवाला देते हुए अपील की। इसके बाद तीन जजों की बेंच ने केंद्र के अनुरोध पर इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था।

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