माहौल डर का था । घर में हर कोई डर रहा था सी टी स्कैन की रिपोर्ट में इन्फेक्शन का मॉडरेट आना। घर के सभी लोगों के लिए डर और मेरे लिए मानसिक और शारीरिक रूप से कितना भयावह होने वाला था ये समय ने पहले से निर्धारित करके रख दिया था।
भोपाल. भारत कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है। यह महामारी हम में कई के जीवन के लिए एक बुरे सपने की तरह आई और सब कुछ उजाड़ ले गई। लेकिन इन्हीं में कई ऐसे भी हैं, जो कोरोना से संक्रमित हुए। अदृश्य दुश्मन उन्हें मौत के मुहाने पर ले गया, लेकिन उनकी सकारात्मकता, हिम्मत और जज्बे के चलते खुद ही हार मान गया। कोरोना विनर की इस कड़ी में हम एक ऐसी ही महिला की कहानी बता रहे हैं, जिसने कोरोना को लड़कर और हर मुसीबत का सामना करके मात दी। भोपाल की प्रियंका खरे से Asianet news के लिए प्रभंजन भदौरिया ने बात की और उनकी कोरोना की कहानी को आप लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। पढ़िए प्रियंका की कहानी उन्हीं की जुबानी....
19 अप्रैल की रात को लगभग 9 बजे अचानक से मुझे ठंड लगने लगी। एक तो उस वक्त मौसम ने भी एक अलग रुख अपना रखा था तो लगा मौसम में ठंडक है शायद इसलिए ठंड लग रही होगी फिर घर वालों के कहने पर थर्मामीटर से चेक किया तापमान 99 डिग्री था। तब सौरभ (पति ) ने पेरासिटामोल की टेबलेट दी और सब सो गए। सुबह तक ठीक ,बस हल्की कमजोरी जो बुखार की वजह से थी ।
20 की रात भी वही ठंड, सोचा कूलर की हवा नुकसान कर रही है बाहर के रूम में सोने आई, तबियत बिगड़ने लगी तापमान 99 से बढ़कर 101 तक हो गया। पति को उठाया उन्होंने पानी दिया और फिर पैरासिटामोल लेकर सोने की कोशिश की, हालांकि वे पहले से कोरोना के माइल्ड इन्फेक्शन में थे तो उन्हें यह समझने में वक्त नही लगा कि कोरोना हो सकता है ऐसा इसलिये क्योंकि उस वक्त मौसम के अजीबो गरीब व्यवहार से वायरल काफी फैला हुआ था।
रात में ही होम आइसोलेट हो गई
रात को ही मुझे दूसरे रूम में शिफ्ट किया गया और सुबह ही हम दोनों हमारे क्षेत्र के पास के क्लिनिक में गए। डॉ को अपने सारे लक्षण बताए हालांकि उस वक्त सिर्फ बुखार था बाकी सुगन्ध और स्वाद नही गया था। डॉ ने कोरोना टेस्ट का बोला और मेरे डाईबिटिक होने के कारण मुझे कुछ टेस्ट करने की सलाह दी और 5 दिन की दवाएं।
4 दिन तक बुखार आता रहा और उनकी दवाएं लेती रही उसके साथ भाप लेना, गारगल करना सब चल रहा था। पर हालात अंदर से बिगड़ रहे हैं, ये नही पता था। तभी मेरी बहन (प्रियम) जो पास में रहती है घर आई, क्योंकि उसके घर में कोरोना की परिस्थितियों से वो गुजर चुकी थी तो मुझे देख कर तुरंत दूसरे डॉ. से मिलने की सलाह दी। इस परिस्थिति में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात थी वो किस डॉ. को दिखाए इस संबंध में कौन सा डॉ. सही इलाज देगा। और यही सोच के साथ 2 डॉ. को दिखाया जिनके दवाई के पर्चे में कुछ अंतर पाया और उन्होंने कई सी टी स्कैन कराने को कहा।
चार दिन बाद ही हार मानने के करीब थी
तब तक बुखार के कारण मैं बहुत कमजोर और सच कहूं तो खुद से हार मानने वाली स्थिति में आ चुकी थी कारण सिर्फ सही डॉ. का न मिल पाना और जिस तरह आस पास ,सोशल मीडिया और टीवी पर कोरोना का कहर दिख रहा था मेरा डरना और घर वालों का डरना स्वाभाविक था। इस सब मे सबसे मजेदार और सच का आईना दिखाने वाली बात ये थी कि मेरे साथ जो लोग डॉ, मेडिकल स्टोर, पैथोलॉजी लैब हर जगह जा रहे थे वो भी। कोरोना पॉजिटिव । और ये कोई घूमने का उद्देश्य नही बल्कि इस बात को जानने समझने की बात है कि माहौल कितना खराब था हर कोई पॉजिटिव था।
मुझे सबसे ज्यादा डराने का काम सी टी स्कैन करने वाली पैथोलॉजी के बाहर की भीड़ और डर और बीमारी से भरे चेहरों ने और किया जिसमें जब वहां एम्बुलेंस में मरीज आते और दर्द और डर से कराहते हुए।
अगले दिन जब रिपोर्ट आई तब पता चला मेरा सी टी स्कोर( इन्फेक्शन का स्कोर )14 था यानी मॉडरेट रूप से में इन्फेक्टेड हो चुकी थी। ऊपर से मधुमेह की बीमारी वो भी अनियंत्रित। डॉ ने कह दिया हॉस्पिटल में बेड देखो और इन्हें भर्ती कराओ। उस वक्त तक मनोबल आधा हो गया। लगा अब मर जाऊंगी। पर इस डर को घर वालों से कैसे कहती सब पहले ही मेरे लिए डरे हुए थे और खुद भी कोरोना से लड़ रहे थे।
थोड़ी अतिशयोक्ति जरूर लगेगी पर ये सच में हुआ
हॉस्पिटल का नाम सुनते ही मैं यही सोच रही थी कि हॉस्पिटल में एक तो ऑक्सीजन और बेड नही मिल रहे ऊपर से जिन भी लोगों को मैं जानती थी उन सब की मौत हॉस्पिटल में ही हुई थी। यहां तक पत्रकार रोहित सरदाना, जिनसे मैं 2019 में आज तक के कार्यक्रम के दौरान मध्यप्रदेश में मिली थी। उनकी मौत ने एक डर और घबराहट और भर दी जब इतने प्रसिद्व और बड़े आदमी नही बच पाया तो मैं कैसे बचूंगी।
करीब आधी रात को हमेशा मुंह बहुत सूखता था जिसके लिए कई बार विटामिन सी की टेबलेट मुंह में डाले ही सो जाती थी। पर उस रात बहुत डर लग रहा था पानी पिया और सोने की कोशिश की। बहुत सी बातें सोचने लगी दोस्तों की याद आई, क्या क्या करना था सब एक फिल्म की तरह चल रहा था तभी मन में सिर्फ एक सवाल खुद से किया इतने जल्दी नहीं जाना ऐसे डर कर नही। मैं एक फाइटर हूं और मुझे इस बीमारी से लड़ना है और ठीक होकर अपने स्तर पर मदद भी करनी है ।
क्यों कि अब मुझे जीना है
फिर किसी तरह हम रेस्पिरेट्री सिस्टम के जानकार डॉ का पता चला बहन और पति दोनो मेरी और अपनी रिपोर्ट लेकर उनके पास गए । मेरी रिपोर्ट देखकर उन्होंने भी मुझे हॉस्पिटल में भर्ती करने को कहा। पर सौरभ (पति) उन्होंने बताया कि मैं पैनिक हो जाती हूं हॉस्पिटल के नाम से तो प्लीज आप दवाइयां लिख दीजिये हम घर मे व्यवस्था कर लेंगे। डॉ ने दवाइयां दे दी और वहां मैंने घर पर बोल दिया मुझे हॉस्पिटल नहीं जाना। मैं पूरा ध्यान रखूंगी ,दवाई समय पर खाऊंगी , गर्म पानी का गारगल 2 बार करूंगी और 4 बार भाप लूंगी और ऑक्सीजन को लेवल को सामान्य करने के लिए प्रोन के तरीके भी अपनाऊंगी क्योंकि मुझे अब जीना है ।
यही से शुरू हुई एक अनियंत्रित मधुमेह और मॉडरेट रूप से इन्फेक्टेड मरीज के ठीक होने की कहानी।
मनोबल को तोड़ने का प्रयास पूरी तरह से कोरोना ने तन को तोड़कर और मन को आहत करके किया। रात को एंग्जायटी अटैक आते जिसमे लगता मुझे घबराहट हो रही है और मेरा ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा है हालांकि चेक करने पर सब ठीक होता पर ये पैनिक अटैक होते और आधी रात के बाद नींद ही आंखों से गायब हो जाती।
नींद का आना कम हो गया। खाना कम हो गया अपनी और कमजोरी ने शरीर में घर कर लिया। जिससे मानसिक रूप से भी कुछ वक्त तक कमजोरी ही रही। और यही मानसिक डर कोरोना का भोजन बन इसे ताकत देता है क्योंकि डर से इम्युनिटी पर असर पड़ता है। 4 से 5 दिन इसी तरह रात में डर के गुजरे लेकिन इस डर के साथ अलोम विलोम , खूब सारा गुनगुना पानी, खाने में खूब सारा प्रोटीन ये करना शुरू कर दिया।
मुझे यकीन है इस बीमारी ने जितना हमसे हमारे अपनों को छीना है उतना ही हमें खुद से मिलाया भी है। अपनों ने इस दौरान मेरा पूरा साथ दिया। उन्हीं का साथ मेरे लिए ठीक होने की ताकत बना। मैंने धीरे धीरे कोरोना को मात देने में अपने कदम बढ़ाए। कुछ दिन बाद जब दोबारा जांच कराई, तो मेरी रिपोर्ट नॉर्मल आ चुकी थी। अब मैं ठीक थी।