राम मंदिर-बाबरी पर लड़ते-लड़ते बन बैठे पक्के यार, सुनवाई के लिए एक ही रिक्शे पर जाते थे.. ऐसे अमर हुई दोस्ती की कहानी

अक्सर शाम होते वो दोनों साथ बैठते और ताश खेलते थे। खेल चलते समय चाय पी जाती थी, नाश्ता किया जाता था, लेकिन उस दौरान एक भी शब्द मंदिर-मस्जिद को लेकर नहीं बोला जाता था। विचार अपनी जगह थे खेल और दोस्ती अपनी जगह।

नई दिल्ली. अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही हैं। यहां मामला आस्था का है और दो पक्ष दावेदार हैं इसी पर फैसला आना जिसके लिए पांच जजों की पीठ 23 दिनों बाद संभव है कि कोई फैसला दे पाए। 53 सालों से अयोध्या विवाद चल रहा है लेकिन देश भर में  ऐसी हजारों जगह और गांव हैं जहां मंदिर और मस्जिद की नींव एक ही है।

भारत अनेकता में एकता वाला देश हैं यहां गंगा जमुनी तहजीब पाई जाती है। सैकड़ों जगह हैं जहां कई धर्मों के लोग एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं। ऐसी अयोध्या विवाद में दो सच्चे दोस्त रहे हैं जिनकी दोस्ती अमर हो गई। दोनों दोस्त एक ही रिक्शे पर सवार होकर सुनवाई के लिए जाते थे।  अयोध्या मामले से जुड़ी इस दोस्ती के किस्से आज भी चाव से सुने जाते हैं। तो आइए हाशिम अंसारी और परमहंस की मित्रता की कहानी हम आपको सुनाते हैं.....

वैचारिक मतभेद फिर भी बन गए दोस्त

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परमहंस रामचंद्र दास राम मंदिर के पैरोकार थे तो हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद के कट्टर मुद्दई। दोनों के बीच वैचारिक लड़ाई थी। परमहंस चाहते थे अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने तो अंसारी बाबरी मस्जिद निर्माण पर अड़े थे। दोनों की इस बात पर जमकर बहस होती और थी। इस मुद्दे पर दोनों लड़ते-लड़ते कब दोस्त बन गए उनको खुद नहीं पता चला। मामले की सुनवाई के लिए उन दिनों दोनों साथ एक ही रिक्शे पर सवार होकर कचहरी जाते थे। दिनभर की जिरह के बाद हसंते-बोलते एक ही रिक्शे से घर वापस आते थे। करीब 6 दशक तक यूं ही वह अयोध्या भूमि विवाद के कारण लड़ते रहे और साथ ही गुजर-बसर भी करते रहे।

धीरे-धीरे दोस्ती बढ़ी और अमर हो गई-

एक वक्त था कि जब अयोध्या पर देश भर में आंदोलन उफान पर था। ऐसे में दोनों पक्ष के लोगों के बीच लगातार बातचीत करते रहते थे। इसी तरह कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते-काटते और लड़ते लड़ते परमहंस और हाशिम की दोस्ती पक्की हो गई। दोनों के वैटचारिक मतभेद भी पक्के थे लेकिन अब वह साथ रहने खाने लगे। उस दौरान अयोध्या के महंत नारायणाचारी बताते थे कि लोग उन दिनों यह इंतजार किया करते थे कि कब दोनों खाली समय में दन्तधावन कुंड के पास बैठकर गप्पे हांकेंगे।

साथ चाय पीते और खेलते थे ताश-

अक्सर शाम होते वो दोनों साथ बैठते और ताश खेलते थे। खेल चलते समय चाय पी जाती थी, नाश्ता किया जाता था, लेकिन उस दौरान एक भी शब्द मंदिर-मस्जिद को लेकर नहीं बोला जाता था। विचार अपनी जगह थे खेल और दोस्ती अपनी जगह। वह विचारों के लिए अदालत में पैरवी करते थे लेकिन उनकी कोई भी व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। इन दोनों की दोस्ती पर एक शख्स ने किताब तक लिख दी थी। ऐ

जिंदगी भर रहे एक दूसरे के सुख-दुख के साथी

संतोष त्रिपाठी की किताब में दोनों के किस्से मिलते हैं। हाशिम अंसारी अयोध्या के उन कुछ चुनिंदा बचे हुए लोगों में से थे, जो दशकों तक अपने धर्म और बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और कानून के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ते रहे। स्थानीय हिंदू साधु-संतों से उनके रिश्ते कभी खराब नहीं हुए। आस-पड़ोस के हिंदू युवक चचा-चचा कहते हुए उनसे बतियाते रहते। परमहंस के देहांत की सूचना अंसारी को मिली तो वह पूरी रात उनके पास रहे। दूसरे दिन अंतिम संस्कार के बाद ही वह अपने घर गए।

ऐसा नहीं है कि हाशिम सिर्फ परमहंस के ही मित्र थे वह अन्य साधु संतो के भी बराबर मित्र थे। सभी साधु संत हाशिम को बराबर सम्मान देते थे। उनकी तस्वीरें अन्य साधुओं के साथ हसंते बतियाते मिल जाती हैं। नीचे तस्वीर में देखें संत धर्म दास और ह्रदयाल शास्त्री के साथ हाशिम अंसारी।

बच्चे भी निभा रहे दोस्ती का रिश्ता-

हाशिम के बेटे इकबाल अंसारी बताते हैं कि अब्बू (हाशिम) 1949 से मुकदमें की पैरवी शुरू की थी, लेकिन आज तक किसी हिंदू ने उनको एक लफ्ज गलत नहीं कहा। हमारा उनसे भाईचारा है, वो हमको दावत देते हैं। मैं उनके यहां सपरिवार दावत खाने जाता हूं। दिगंबर अखाड़ा के रामचंद्र परमहंस से अब्बू की अंत तक गहरी दोस्ती रही।

 हिंदू भाइयों ने दंगाईयों से बचाया था हाशिम का घर

हाशिम कक्षा दो तक पढ़े थे फिर दर्जी का काम करने लगे। फैजाबाद में उनकी शादी हुई। उनके दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी हैं। वह गरीबी में ही रहे 6 दिसंबर 1992 के बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने उनका घर जला दिया था तब हिंदू भाईयों ने ही उन्हें और उनके परिवार को बचाया था। हाशिम आज इस दुनिया में नहीं है। नीचे तस्वीर में देखें संत भास्कर दास के साथ अंसारी हंसते हुए।

दोनों दोस्त अब इस दुनिया में नहीं- 

परमहंस रामचंद्र का 31 जुलाई 2003 को अयोध्या में निधन हो गया था। वे 1934 से ही अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े थे। दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या में परमहंस रामचन्द्र दास अध्यक्ष रहे, जिसमें श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। दोनों दोस्त आज भले इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी दोस्ती और हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की यह मिसाल हमेशा के लिए अमर हो गई है।

अयोध्या विवाद में भाईचारे की मिसाल 

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद को लेकर सुनवाई के दौरान परमहंस और हाशिम की दोस्ती याद करना लाजिमी है। देश में अगर सामाजिक सोहार्द खराब करने की कोशिश की जाए तो इनकी दोस्ती को याद रखा जा सकता है। यह जज्बा और भाईचारा ही देश में शांति और सोहार्द बनाए रखता है। 

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