क्या है 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ', जिसकी अयोध्या विवाद के फैसले में हो सकती है अहम भूमिका

अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि है जिसके तीन पक्षकार हैं- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला। इसी को तीनों के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश देने वाली सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। 

नई दिल्ली. अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। जिस पर बुधवार 16 अक्टूबर को फैसला आ सकता है। फिलहाल कोर्ट में 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर चर्चा हो रही है। पिछले कई सालों से विवादित अयोध्या मामले पर देश भर की नजरें टिकी हुई हैं ऐसे में ये 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' क्या  है इसके बारे में भी बात करना जरूरी है।

देश के सबसे चर्चित मामलों में एक अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पहले ही कह चुके हैं कि यह सुनवाई आखिरी हो सकती है। ऐसे में 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर भी चर्चा होगी जिसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया जाएगा। आइए जानते हैं कि 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' क्या है और इससे अयोध्या विवाद के फैसले पर क्या असर पड़ेगा।  

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  क्या है 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ'- 

दरअसल, 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' का प्रावधान सिविल सूट वाले मामलों के लिए होता है। खासकर मालिकाना हक वाले मामलों में इस कानून का इस्तेमाल किया जाता है। वकील विष्णु जैन के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट संविधान के आर्टिकल 142 और सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार को प्रयोग में लाया जाता है। 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' का मतलब हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है अगर वो नहीं मिलती है तो उसे क्या मिलेगा?

दूसरे पक्ष को मिलता है सांत्वना पुरस्कार

अयोध्या मामला पूरे अदालती और न्यायिक इतिहास में रेयरेस्ट और रेयर मामलों में से एक माना जाता है। पिछले करीब 134 साल बाद दोनों पक्षों को उम्मीद जगी है कि इस मामले में फैसला आ जाएगा। इसमें विवाद का असली यानी मूल ट्रायल हाई कोर्ट में हुआ और पहली अपील सुप्रीम कोर्ट सुन रहा है। लिहाजा मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब ये हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है अगर वो नहीं मिलती तो विकल्प के तौर पर उसे कुछ और दिया जाएगा 

यानी दूसरे शब्दों में कहें तो सांत्वना पुरस्कार जैसा कुछ। इसका सीधा मतलब यही है कि एक चीज दो दावेदार हों तो दूसरे पक्ष को उस चीज को न देकर समझौते के तौर पर कुछ और दे दिया जाए जिसमें वह राजी हो।

'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' को आप ऐसे भी समझ सकते हैं मान लीजिए दो दावेदारों के विवाद वाली भूमि का मालिकाना हक किसी एक पक्ष को दिए जाने पर दूसरे पक्ष को समझौते के तौर कुछ और या कहीं और हिस्सा दिया जाए। अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि है जिसके तीन पक्षकार हैं- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला। इसी को तीनों के बीच बराबर बराबर बांटने का आदेश देने वाली सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। 

आखिर सुनवाई में क्या हो रहा है- 

कोर्ट ने जब मोल्डिंग ऑफ रिलीफ कानून की बात की तो मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने 1992 की बाबरी ढांचे की मांग कर डाली। उन्होंने कहा अगर मोल्डिंग की बात है तो हमें 6 दिसंबर 1992 से पहले की बाबरी मस्जिद चाहिए, इसके बाद हिंदू पक्षकारों राम जन्मस्थान की मांग पर अड़ गए। फिलहाल अयोध्या विवाद की सुनवाई आखिरी चरण में है। बहरहाल देखना यह है कि फैसला 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' के तहत होता है तो क्या होगा? और किसके हिस्से में क्या आएगा?

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