कांग्रेस को INDIA ब्लॉक में सीटें पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। सहयोगी पार्टियों ने ही उसे पीछे धकेल रखा है। बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु तक यह स्थिति देखने को मिल रही है।
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 चल रहा है। 543 सीटों के लिए हो रहे इस चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी दलों के ब्लॉक INDIA के बीच है। कांग्रेस INDIA ब्लॉक की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन स्थिति यह है कि इसे बिहार से लेकर तमिलनाडु और महाराष्ट्र तक कई राज्यों में सहयोगी दल ही पीछे धकेल रहे हैं। सीट-शेयरिंग में अपने लिए सीटें पाने के लिए कांग्रेस को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है।
कांग्रेस की स्थिति यह है कि उसके पास सहयोगी दलों द्वारा पीछे धकेले जाने के खिलाफ बहुत कम विकल्प हैं। वह कुछ राज्यों में छोटी खिलाड़ी है तो कुछ में क्षेत्रीय दलों पर बहुत अधिक निर्भर है। हाल के दिनों में बिहार में यह साफ-साफ दिखा है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। यहां राजद ने अपने हिसाब से फैसला किया। लालू यादव ने कांग्रेस को मात्र 9 सीटें दी। इसपर भी कांग्रेस को उसकी पसंद की सीटें नहीं मिली। लालू ने पूर्णिया जैसी कांग्रेस की पसंद की सीटों के लिए पहले ही अपने उम्मीदवारों को टिकट दे दिया था।
लालू यादव ने कांग्रेस को नहीं दी पसंद की सीटें
कांग्रेस सुपौल सीट भी चाहती थी, लेकिन लालू ने नहीं दिया। अपनी पार्टी जाप (जन अधिकार पार्टी) का कांग्रेस में विलय के बाद पप्पू यादव पूर्णिया से चुनाव लड़ना चाहते थे। पूर्णिया सीट नहीं मिलने की स्थिति में वे सुपौल सीट से मैदान में उतरना चाहते थे। सुपौल से पप्पू यादव की पत्नी और कांग्रेस नेता रंजीत रंजन 2004 और 2014 में सांसद चुनी गईं थी। उन्होंने यहां से 2019 में चुनाव लड़ा था।
कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार बेगूसराय से चुनाव लड़ना चाहते थे। वह 2019 में यहां से मैदान में उतरे थे, लेकिन यह सीट सीपीआई को दे दी गई। राजद ने कांग्रेस को औरंगाबाद सीट भी देने से इनकार कर दिया। कांग्रेस यहां से पूर्व गवर्नर और सीनियर नेता निखिल कुमार को टिकट देन चाहती थी।
तमिलनाडु में कांग्रेस को बदलनी पड़ी सीटें
तमिलनाडु की बड़ी क्षेत्रीय पार्टी DMK INDIA का हिस्सा है। 2019 के चुनाव में भी राज्य में कांग्रेस का गठबंधन डीएमके के साथ था। इस बार डीएमके ने कांग्रेस को उन तीन सीटों को छोड़ने के लिए विवश किया जहां उसे 2019 के चुनाव में जीत मिली थी। सूत्रों के अनुसार डीएमके शुरू में कांग्रेस के 4-5 सीटों को बदलना चाहती थी जहां पिछले चुनाव में उसे जीत मिली थी। काफी बातचीत के बाद कांग्रेस तिरुनेलवेली, कुड्डालोर और मयिलादुथुराई सीटों के बदले थेनी, अरानी और तिरुचिरापल्ली सीटें छोड़ने के लिए तैयार हुई। इनमें से अरानी और तिरुचिरापल्ली में कांग्रेस को 2019 में जीत मिली थी।
डीएमके द्वारा अरानी सीट लेने के चलते कांग्रेस को अपने मौजूदा सांसद एम के विष्णु प्रसाद को कुड्डालोर से टिकट देना पड़ा। कांग्रेस अपने बड़े नेता सु थिरुनावुक्कारासर को तिरुचिरापल्ली से मैदान में नहीं उतार सकती। यह सीट अब एमडीएमके के पास चला गया है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस पर दबाव था कि या तो करूर सीट की अदला-बदली की जाए, या अपने उम्मीदवार- मौजूदा सांसद और टीम राहुल के सदस्य जोथी मणि को बदल दिया जाए, लेकिन पार्टी नहीं मानी।
महाराष्ट्र में कांग्रेस को रही परेशानी
महाराष्ट्र में कांग्रेस शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ सीट-शेयरिंग को लेकर परेशानी में है। कांग्रेस ने कम से कम चार सीटें (सांगली, भिवंडी, मुंबई दक्षिण मध्य और मुंबई उत्तर पश्चिम) मांगी हैं, लेकिन क्षेत्रीय साझेदार तैयार नहीं हैं।
शिवसेना (यूबीटी) ने पहले ही सांगली और मुंबई साउथ सेंट्रल के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। तमिलनाडु और बिहार के विपरीत, कांग्रेस महाराष्ट्र में कमजोर स्थिति में नहीं है। इसके बाद भी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व INDIA ब्लॉक को एकजुट रखने के लिए क्षेत्रीय सहयोगियों को नाराज करने से सावधान है।
यूपी ने सपा ने कांग्रेस को किया किनारे
80 सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ है। राज्य में सपा ने कांग्रेस को किनारे कर दिया है। उसने सीटों के बंटवारे का फैसला होने से पहले ही एकतरफा घोषणा कर दिया कि कांग्रेस 11 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके बाद सपा ने कई ऐसी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जो कांग्रेस चाह रही थी। बाद में आरएलडी के इंडिया ब्लॉक छोड़ने के बाद कांग्रेस को ऑफर किए गए सीटों की संख्या बढ़ाकर 17 किया गया। कांग्रेस ने फर्रुखाबाद, भदोही, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती और जालौन सीटों की मांग की थी, लेकिन उसे ये सीटें नहीं मिली है। इनमें से कुछ जगह कांग्रेस ने 2009 में जीत हासिल की थी।