यौन उत्पीड़न हुआ तो पुरुष भी कर पाएंगे न्याय की गुहार, केंद्र सरकार करने जा रही ये बदलाव

भारत सरकार पुरुषों और ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ यौन अपराधों के मामले दर्ज करने के लिए जल्द ही भारतीय न्याय संहिता (BNS) में सुधार कर सकती है।

 

नई दिल्ली। देश में सोमवार से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए। राज्य भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के कुछ प्रावधानों में संशोधन ला सकते हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार जल्द ही भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में संशोधन कर सकती है।

यह बदलाव पुरुषों और ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ यौन अपराधों पर एक छूटी हुई धारा को शामिल करने के लिए किया जाएगा। इसके बाद पुरुष और ट्रांसजेंडर भी यौन उत्पीड़न किए जाने पर न्याय की गुहार लगा सकेंगे। उपयुक्त धारा के तहत उनके मामले में केस दर्ज किया जाएगा। अभी पुलिस अधिकारियों से कहा गया है कि अगर पुरुषों और ट्रांसजेंडर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत आती है तो BNS के तहत अन्य संबद्ध धाराओं जैसे गलत तरीके से बंधक बनाना और शारीरिक चोट पहुंचाना के तहत केस दर्ज किया जाए।

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1 जुलाई से संज्ञेय अपराधों को CrPC की धारा 154 के बजाय BNSS की धारा 173 के तहत दर्ज किया जा रहा है। हालांकि, नए कानूनों के साथ-साथ IPC और CRPC भी साथ-साथ चलेंगे। क्योंकि कई मामले अभी भी कोर्ट में लंबित हैं। कुछ अपराध जो 1 जुलाई से पहले हुए लेकिन बाद में रिपोर्ट किए गए, उन्हें आईपीसी के तहत दर्ज करना होगा।

अब FIR अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क सिस्टम (CCTNS) के माध्यम से दर्ज किए जाते हैं। यह प्रोग्राम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तहत काम करता है। अब लोगों को पुलिस स्टेशन जाए बिना ई-एफआईआर दर्ज करने में मदद मिलेगी। जीरो FIR भी दर्ज की जा सकेगी। जिस जगह घटना घटी वह किस पुलिस थाना के क्षेत्र में है इसकी परवाह किए बिना केस दर्ज किए जाएंगे। CCTNS के सॉफ्टवेयर को अपग्रेड किया गया है ताकि FIR अंग्रेजी और हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं में भी दर्ज किया जा सके। जब आईपीसी के तहत मामले दर्ज किए जा रहे थे तब भी पुलिस के पास तमिल, मराठी, गुजराती और अन्य भाषाओं में मामले दर्ज करने का प्रावधान था।

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घर में तलाशी के दौरान पुलिस को बनाना होगा वीडियो

BNSS में अनिवार्य किया गया है कि पुलिस सभी आपराधिक मामलों में तलाशी या जब्ती के दौरान ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग कराए। पुलिस को जब्त कि गए सामानो की लिस्ट और गवाहों के साइन के वीडियो भी बनाने होंगे। जिस अपराध में सात साल या उससे अधिक की सजा होती है उसमें फोरेंसिक जांच अनिवार्य रूप से कराना है। वीडियो रिकॉर्डिंग को बिना किसी देरी के इलेक्ट्रॉनिक रूप से कोर्ट में पेश करना होगा।

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