केन्द्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण (जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग के अधिकार क्षेत्र) नियम, 2021 के लिए अधिसूचना जारी की है। यानी अब जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग कितने तक के भुगतान की शिकायतों पर सुनवाई कर सकते हैं, यह तय कर दिया गया है।
नई दिल्ली. उपभोक्ता संरक्षण(Consumer Protection) की दिशा में एक और पहल करते हुए केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण (जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग के अधिकार क्षेत्र) नियम, 2021 के लिए अधिसूचना जारी की है। यानी अब जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग कितने तक के भुगतान की शिकायतों पर सुनवाई कर सकते हैं, यह तय कर दिया गया है।
यह किया गया तय
3 महीने में फैसला करने पर जोर
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 कहता है कि हर शिकायत का जल्दी से जल्दी निस्तारण किया जाएगा और विपक्षी पार्टी को नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर शिकायत पर फैसला करने का प्रयास किया जाएगा। जहां शिकायत के कमोडिटीज के विश्लेषण या जांच की जरूरत न हो और यदि कमोडिटीज के विश्लेषण या जांच की जरूरत होने पर शिकायत के निस्तारण की अवधि 5 महीने होगी।
ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं शिकायतें
उपभोक्ता अपनी शिकायतों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी दर्ज करा सकते हैं। उपभोक्ताओं को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की सुविधा देने के लिए केन्द्र सरकार ने ई-दाखिल पोर्ट बनाया है, जो देश भर के उपभोक्ताओं को सुविधाजनक रूप से संबंधित उपभोक्ता फोरम से संपर्क करने, यात्रा करने और अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए वहां मौजूदगी की जरूरत को समाप्त करने के उद्देश्य से एक झंझट मुक्त, त्वरित और किफायती सुविधा प्रदान करता है।
ई-दाखिल में ई-नोटिस, केस दस्तावेज डाउनलोड लिंक और वीसी सुनवाई लिंक, विपक्षी पार्टी द्वारा लिखित जवाब दाखिल करने, शिकायतकर्ता द्वारा प्रत्युत्त दाखिल करने और एसएमएस/ ईमेल के माध्यम से अलर्ट भेजने जैसी कई खूबियां हैं। वर्तमान में, ई-दाखिल की सुविधा 544 उपभोक्ता आयोगों को उपलब्ध हैं, जिसमें 21 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के राष्ट्रीय आयोग और उपभोक्ता आयोग शामिल हैं। अभी तक, ई-दाखिल पोर्टल के इस्तेमाल से 10,000 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं और 43,000 से ज्यादा उपयोगकर्ताओं ने पोर्टल पर पंजीकरण कराया है।
उपभोक्ता विवादों को निपटाने का एक तेज और सौहार्दपूर्ण तरीका उपलब्ध कराने के लिए, अधिनियम में उपभोक्ता विवादों को दोनों पक्षों की सहमति के साथ मध्यस्थता के लिए भेजने का प्रावधान है। इससे न सिर्फ विवाद में शामिल पक्षों का समय और पैसा बचेगा, बल्कि लंबित मामलों की संख्या कम करने में भी मदद मिलेगी।
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