चंद्रयान 2: लैडिंग के 2.1 किलोमीटर पहले ही टूट गया इसरो से लैंडर विक्रम का संपर्क

नई दिल्ली. चंद्रयान 2 का विक्रम लैंडर शनिवार की सुबह 1.55 बजे चंद्रमा पर उतरा गया। लेकिन लैंडर विक्रम से 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही इसरो का कनेक्शन टूट गया। भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन ने यह कारनामा किया है। लेकिन चंद्रमा के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने वाला भारत पहला देश है। चंद्रमा पर लैंडर विक्रम की लैंडिंग को लेकर पीएम मोदी काफी उत्साहित थे। उन्होंने सभी देशवासियों से इसे देखने का आग्रह किया किया था।

Asianet News Hindi | Published : Sep 6, 2019 2:45 PM IST / Updated: Sep 07 2019, 02:59 AM IST

नई दिल्ली. चंद्रयान 2 का विक्रम लैंडर शनिवार की सुबह 1.55 बजे चंद्रमा पर उतरा गया। लेकिन लैंडर विक्रम से 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही इसरो का कनेक्शन टूट गया। भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन ने यह कारनामा किया है। लेकिन चंद्रमा के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने वाला भारत पहला देश है। चंद्रमा पर लैंडर विक्रम की लैंडिंग को लेकर पीएम मोदी काफी उत्साहित थे। उन्होंने सभी देशवासियों से इसे देखने का आग्रह किया किया था।

लैंडर का नाम 'विक्रम' और रोवर का नाम 'प्रज्ञान' क्यों?

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- चंद्रयान- 2 के तीन हिस्से हैं। ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। इसके लैंडर का नाम 'विक्रम' रखा गया है। इसके पीछे खास वजह है। दरअसल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर इसका नाम 'विक्रम' रखा गया है। 

- लैंडर का काम है कि रोवर से प्राप्त जानकारी को ऑर्बिटर तक पहुंचाना। फिर ऑर्बिटर उस जानकारी को धरती पर भेजेगा। ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा।  

- वहीं रोवर का नाम 'प्रज्ञान' है। इसे किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं रखा गया है, बल्कि संस्कृत का एक शब्द है, जिसका मतलब 'बुद्धि' होता है। रोवर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह चंद्रमा की सीमा में एक दिन तक काम करेगा। चंद्रमा का एक दिन पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है। 

 

22 जुलाई को किया गया था लॉन्च

- 22 जुलाई को चंद्रयान-2 को भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट से लॉन्च किया गया था। 16 मिनट के बाद ही यह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया। 22 दिनों तक पृथ्वी के चक्कर काटने के बाद 23वें दिन चांद की ओर रवाना हुआ। फिर 30वें दिन चांद की कक्षा में प्रवेश किया। 30 से 42वें दिन तक चांद के चक्कर काटने के बाद 43वें दिन लैंडर-ऑर्बिटर अलग हो गए। 44वें दिन लैंडर की रफ्तार धीमी करने की प्रक्रिया हुई। फिर 48वें दिन नियंत्रित लैंडिंग की प्रक्रिया और 48वें दिन यानी 6-7 सितंबर की रात को करीब दो बजे लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरा गया। 

लैंडर के अंदर ही रोवर है
- लैंडर के अंदर ही रोवर है। जब लैंडर करीब 2 बजे चंद्रमा के सतह पर लैंड किया, तो रोवर को निकलने में 4 घंटे का समय लगेगा। रोवर के साथ 2 पेलोड हैं, जो लैंडिंग की जगह चट्टानों और मिट्टी की जानकारी देंगे। पेलोड से ही जानकारी रोवर तक जाएगी और रोवर से लैंडर के पास।

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