इसरो के वैज्ञानिकों ने मिशन चंद्रयान-2 की असफलता से सीख लेकर चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) को सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतार दिया है। इसके साथ ही भारत पहला देश बन गया है जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा है।
नई दिल्ली। चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की सफल लैंडिंग के साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। इस अवसर पर ISRO ने ट्वीट किया, “चंद्रयान-3 मिशन: 'भारत, मैं अपनी मंजिल तक पहुंच गया और आप भी!"
बुधवार शाम 6:04 बजे विक्रम लैंडर के चांद के सतह पर उतरे ही भारत ने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने के लिए लगी रेस को जीत लिया। चंद्रयान के लॉन्च होने के बाद रूस ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने के लिए Luna-25 लॉन्च किया था। इसे 21 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरना था, लेकिन फेल हो गया था। बुधवार शाम को जैसे ही विक्रम लैंडर ने चंद्रमा की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग की बेंगलुरु स्थित इसरो के मिशन कंट्रोल रूम में जश्न शुरू हो गया।
चंद्रयान-1 से हुई थी इसरो के मिशन मून की शुरुआत
इसरो के मिशन मून की शुरुआत चंद्रयान-1 से हुई थी। चंद्रयान-1 में इसरो ने चंद्रमा के चक्कर लगाने के लिए उपग्रह भेजा था। इसने चांद पर पानी की खोज की थी। इसके बाद इसरो ने 2019 में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा था। चंद्रयान-2 का लैंडर सफल लैंडिंग नहीं कर पाया था। इसके बाद मिशन चंद्रयान-3 की शुरुआत हुई थी।
चंद्रमा पर बसाई जा सकेगी मानव बस्ती
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारत का पहुंचना बेहद अहम है। माना जाता है कि इस हिस्से में पर्याप्त मात्रा में बर्फ है। इससे पानी, ऑक्सीजन और इंधन निकाला जा सकता है। इसके इस्तेमाल से चंद्रमा पर इंसान का रहना संभव होगा। यहां मानव बस्ती बसाई जा सकेगी। इसे आगे के अंतरिक्ष अभियान के लिए बेस भी बनाया जा सकता है।
चंद्रयान-2 की असफलता से सीख लेकर इसरो ने किए थे सुधार
इसरो ने चंद्रयान-2 की असफलता से सीख लेते हुए चंद्रयान-3 में कई सुधार किए थे। चंद्रयान-2 से मिली अहम जानकारी भी चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग में काम आई। मिशन चंद्रयान-2 आंशिक रूप से असफल रहा था। इसका लैंडर चांद की सतह पर नहीं उतर पाया था। आखिरी वक्त में लैंडर अनियंत्रित होकर क्रैश कर गया था। दूसरी ओर चंद्रयान-2 लगातार चंद्रमा के चक्कर लगाता रहा और इसके बारे में जानकारी जुटाता रहा।
चंद्रयान-3 की सफलता में नारी शक्ति का है अहम रोल
इसरो के मिशन चंद्रयान-3 की सफलता में नारी शक्ति का अहम रोल है। चंद्रयान-3 मिशन के लिए इसरो की करीब 54 महिला वैज्ञानिकों ने काम किया। इन महिला वैज्ञानिकों ने एसोसिएट व डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर और प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में विभिन्न केंद्रों में कई सिस्टम पर काम किया।
चंद्रयान-3 की सफलता पर दुनियाभर से मिली बधाई
चंद्रयान तीन की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो और देश के लोगों को बधाई दी। ब्रिक्स के 15वें शिखर सम्मेलन में शामिल होने दक्षिण अफ्रीका गए नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा इसरो से जुड़े। उन्होंने इसे अद्भुत पल बताया। पीएम ने कहा कि यह ऐतिहासिक पल विकसित भारत का बिगुल बजा रहा है। चंद्रयान-3 की कामयाबी पर दुनियाभर से भारत को बधाई मिली है।
चंद्रयान-3 की लैंडिंग के वक्त बेहद अहम थे 15 मिनट
चंद्रयान-3 की लैंडिंग चार चरणों में हुई। इसके आखिरी के 15 मिनट बेहद अहम थे। इसे आतंक के 15 मिनट कहा गया था। पहला फेज था रफ ब्रेकिंग था। इसमें विक्रम लैंडर की रफ्तार 1600 मीटर प्रति सेकंड थी। इस दौरान सभी इंजन चालू हुए और लैंडर की स्पीड कम हुई। इस दौरान लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतर रहा था।
चंद्रमा की सतह से करीब 7.43 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का Attitude होल्डिंग फेज शुरू हुआ। इस दौरान लैंडर सीधा हुआ और लैंडिंग के लिए आगे बढ़ा। इस फेज में लैंडर को धरती से गाइडेंस मिलना बंद हो गया था। इसके बाद फाइन ब्रेकिंग फेज शुरू हुआ। इसमें लैंडर 800 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच गया। टर्मिनल डिसेंट फेज में विक्रम लैंडर ने चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की। इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ ने बताया कि लैंडिंग के वक्त विक्रम लैंडर की गति 2 मीटर प्रति सेकंड थी। इससे भविष्य के अभियानों के लिए बड़ी उम्मीद मिली है।
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