दक्षिण एशियाई देशों को कर्ज के जाल में फंसा शिकार बना रहा ड्रैगन, श्रीलंका से भी लिया कोलंबो पोर्ट, भारत सतर्क

कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट 2014 में लांच किया गया था। इसके लिए चीन ने 15 बिलियन डाॅलर की फंडिंग की थी। सबसे बड़े बिजनेस और ट्रेड सिटी के रूप में विकसित हुआ यह शहर करीब 269 हेक्टेयर में फैला है।

नई दिल्ली। पड़ोसी मुल्क श्रीलंका द्वारा कोलंबो पोर्ट सिटी को चीन को लीज पर दिए जाने के बाद भारत सुरक्षा को लेकर और सतर्क हो गया है। दरअसल, कोलंबो पोर्ट से भारत के सदर्न कोस्ट की दूरी बेहद कम होने के वजह से क्रिटिकल सिक्योरिटी इशु का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, श्रीलंकन सरकार के इस फैसले को लेकर वहां भी काफी विरोध हो रहा है क्योंकि चीन के पोर्ट को लीज पर लेने के बाद कई स्थानीय कानून वहां निष्प्रभावी हो जाएगा जिसकी वजह से लोकल्स को भी दिक्कतें आ सकती है। लेकिन राजपक्षे सरकार ने सारे आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह फैसला देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा और इससे विदेशी निवेश भी भरपूर हो सकेगा। 

2014 में चीन ने 15 बिलियन डाॅलर की फंडिंग की थी

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कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट 2014 में लांच किया गया था। इसके लिए चीन ने 15 बिलियन डाॅलर की फंडिंग की थी। सबसे बड़े बिजनेस और ट्रेड सिटी के रूप में विकसित हुआ यह शहर करीब 269 हेक्टेयर में फैला है। 

फंड वापस करने में अक्षम होने पर चीन को दिया लीज पर

दावा किया जा रहा है कि श्रीलंका सरकार ने जो 15 बिलियन डाॅलर फंड चीनी सरकार से लिया था, उसके चुकाने में अक्षम होने पर इस पोर्ट को 99 साल के लिए लीज पर दिया जा रहा है। सेंटर फाॅर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रेटजी के प्रेसिडेंट जयदेव रानाडे बताते हैं कि यह समझौता साफ बता रहा है कि चीन के कर्जे से श्रीलंका उबर नहीं पा रहा है या यूं कहिए वह कर्ज या ब्याज चुकाने में अक्षम है। कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट काफी सोच-समझ और बातचीत के बाद फाइनल हुआ है। यह भी साफ है कि चीन का प्रभाव श्रीलंका में बढ़ रहा है। 

हमबन्टोटा जिले का एक पोर्ट भी चीन ने लिया

साल 2017 में चीन ने श्रीलंका में एक और पोर्ट लीज पर लिया था। हमबंटोटा जिले में स्थित यह पोर्ट कोलंबा से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर है। चीन ने दोनों पोर्ट पर कई इंफ्रास्ट्रक्चरल प्रोजेक्ट के लिए समझौता किया है। 

भारत-श्रीलंका के बीच संबंधों में उतार-चढ़ा रहा

भारत में चीन मामलों के एक्सपर्ट कमलेश कुमार बताते हैं कि लिट्टे के खात्मा के बाद भारत और श्रीलंका के बीच राजनीतिक संबंधों में पिछले 15 सालों में काफी उतार-चढ़ाव रहे हैं। राष्ट्रपति राजपक्षे भारत को लेकर यह सोचते हैं कि श्रीलंका में लिट्टे की गतिविधियों में भारत मददगार रहा है। इसी का फायदा उठाकर श्रीलंका और भारत के संबंधों को कम करते हुए चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाया। कुमार कहते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे का झुकाव चीन की ओर रहा है। उनके कार्यकाल में ही कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट को चीन को दिया गया था। हालांकि, श्रीलंका की एम.सीरीसेना सरकार ने इस प्रोजेक्ट को होल्ड पर रख दिया था। लेकिन जी.राजपक्षे की सरकार बनने के बाद इस प्रोजेक्ट ने तेजी पकड़ ली। 

भारत की सरकार बनाए हुए है नजर

सरकारी सूत्र बताते हैं कि अगर यह सिर्फ कमर्शियल वेंचर है तो कोई बहुत परेशान होने वाली बात नहीं है लेकिन अगर कुछ और तत्व इसमें सम्मिलित हैं तो निसंदेह चिंताजनक है। लेकिन फिलहाल भारत ने अधिकारिक रूप से श्रीलंका से इस पर कोई बात नहीं की है। अभी जरूरत भी नहीं है। 

श्रीलंकार सरकार का दावा दो लाख नौकरियां मिलेंगी

श्रीलंकार सरकार में कैपिटल मार्केट मंत्री अजीथ काबराल का कहना है कि प्रोजेक्ट यहां 15 बिलियन डाॅलर का इन्वेस्टमेंट लेकर आया है। इससे करीब दो लाख रोजगार पैदा होंगे। इधर के साल में श्रीलंकार में करीब 8 बिलियन डाॅलर के लोन से विभिन्न डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट चल रहे हैं। 

चीन कर्ज देकर छोटे देशों को फंसाने की नीति में हो रहा कामयाब

चीन दक्षिण एशिया में छोटे देशों को कर्ज देकर अपना शिकार बना रहा है। भारी भरकम कर्ज देकर चुकाने में अक्षम देश उससे उसकी शर्ताें पर समझौता कर रहे हैं। चीन के कर्ज के जाल में पाकिस्तान, मालदीव, नेपाल, बांग्लादेश फंसे हुए हैं। पाकिस्तान और श्रीलंका तो रणनीतिक मोर्चाें पर समझौता करने पर मजबूर हुए हैं। 
 

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