राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए I.N.D.I.A. अलायंस के दलों को भी निमंत्रण मिला था। इसके चलते अलायंस में शामिल पार्टियों को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ। इस अवसर पर देशभर में जश्न मनाया गया। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर बनवाया गया है। मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पहल की थी। इन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। कार्यक्रम गैर राजनीतिक था। इसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया, विपक्षी दलों के नेताओं और मुस्लिम नेताओं को आमंत्रित किया गया था। राम मंदिर निर्माण के खिलाफ केस लड़ने वाले को भी बुलाया गया था। मोदी विरोधी और हिंदू विरोधी पार्टियों को भी आमंत्रित किया गया, जिससे वे बड़ी दुविधा में फंस गए थे। उनके सामने सवाल था कि समारोह में शामिल होना है या नहीं। इसके चलते विपक्षी दलों के I.N.D.I अलायंस को भारी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। क्यों? इसका जवाब जानने के लिए आइए राम जन्मभूमि आंदोलन के बारे में संक्षेप में जानते हैं।
300 साल से अधिक समय से चल रहा था राम मंदिर के लिए आंदोलन
जिस जगह भगवान राम का जन्म हुआ वहां भव्य राम मंदिर बने इसके लिए 300 साल से अधिक समय से हिंदू समाज कोशिश कर रहा था। हिंदू समुदाय ने युद्ध के माध्यम से, मराठा शासन के दौरान कूटनीति के माध्यम से और बाद में कानूनी तरीकों से भगवान राम के जन्मस्थान को पाने के लिए कड़ी मेहनत की।
1980 में राम जन्मभूमि आंदोलन एक जन आंदोलन के रूप में उभड़ा। बीजेपी, शिवसेना और जयललिता के नेतृत्व में ADMK, सिर्फ तीन पार्टियों ने इस आंदोलन का समर्थन किया। बाकी के सभी दलों ने वोट बैंक की राजनीति के लिए राम मंदिर आंदोलन का कड़ा विरोध किया। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का शासन था। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने यह कहते हुए आंदोलन को दबाने के लिए सभी प्रयास किए कि 'राम मंदिर आंदोलन धर्मनिरपेक्षता को नष्ट कर देगा'। खासकर नरसिम्हा राव सरकार ने चालें चलीं और आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की। जिस बाबरी मस्जिद में मुसलमान प्रार्थना नहीं करते थे धर्मनिरपेक्षतावादियों ने उसे धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बना दिया।
धर्मनिरपेक्ष दलों और शासकों ने उन हिंदुओं की वैध मांग को खारिज कर दिया जो राम मंदिर का निर्माण करना चाहते थे। इसके चलते बाबरी मस्जिद नामक इमारत को ध्वस्त किया गया। बीजेपी की हिंदूवादी राजनीति इससे विकसित हुई। 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो हिंदू विरोध धर्मनिरपेक्षता की राजनीति की शैली बन गई। इसी पृष्ठभूमि में I.N.D.I गठबंधन का गठन किया गया था। इसका एकमात्र उद्देश्य आने वाले 2024 के चुनावों में मोदी को हराना था।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने की शर्मनाक दुविधा
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए विपक्षी दलों को ऐसे समय में निमंत्रण मिला जब 2024 का लोकसभा चुनाव होने जा रहा है। I.N.D.I अलायंस की पार्टियां निमंत्रण मिलने से परेशानी में पड़ गईं। पूरा हिंदू समाज जिस मंदिर का सदियों से इंतजार कर रहा था वह बन गया था। प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही थी, लेकिन विपक्षी दलों के लिए इस कार्यक्रम में शामिल होना आसान नहीं था। वे मिलकर कोई फैसला नहीं कर सके। गठबंधन के प्रत्येक सदस्य को खुद फैसला लेने के लिए मजबूर किया गया। अल्पसंख्यक वोटों के अलावा, वामपंथियों (जिनकी कोई धार्मिक आस्था नहीं है) ने खुले तौर पर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया। कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। उन्हें डर था कि अगर समारोह में गए तो धर्मनिरपेक्षता पर असर पड़ेगा। केरल मुस्लिम लीग ने कांग्रेस से पूछा था कि क्या उनमें वामपंथियों की तरह निमंत्रण को अस्वीकार करने की हिम्मत है। राहुल गांधी 2024 के चुनाव में सिर्फ वायनाड लोकसभा सीट से जीत सकते हैं। यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। भाजपा को उत्तरी राज्यों में हिंदुओं के अनुकूल पार्टी माना जाता है, लेकिन लोग कांग्रेस को हिंदू विरोधी पार्टी नहीं मानते हैं। आज भी कांग्रेस को अधिकतर हिंदुओं का वोट मिलता है। इनमें से बहुत से लोग राम मंदिर का समर्थन करते हैं। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होकर कांग्रेस बीजेपी के आरोप "हिंदू विरोधी पार्टी" से सहमत दिखती है। समारोह में शामिल नहीं होने के फैसले से कांग्रेस के राम जन्मभूमि आंदोलन के विरोध का इतिहास उजागर हो गया।
यूपी में I.N.D.I गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी की हालत ज्यादा शर्मनाक थी। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में इस पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का कड़ा विरोध किया था। 1990 में रामभक्तों पर गोलीबारी की गई थी। इसके चलते बड़ी संख्या में कार सेवक मारे गए थे। हिंदू वोट पाने के लिए मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश ने कहा था, "हमें भाजपा के हिंदुत्व का सामना करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की जरूरत है।" अखिलेश को डर था कि अगर वह समारोह में शामिल होते हैं तो उन्हें मुस्लिम वोट नहीं मिलेंगे। वहीं, वह यह भी सोच रहे थे कि समारोह में शामिल नहीं हुए तो उनकी पार्टी को हिंदू विरोधी करार दिया जाएगा। इसके साथ ही भाजपा को मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी के इशारे पर कार सेवकों पर की गई गोलीबारी को याद दिलाने का मौका भी मिल जाएगा। इसलिए, अखिलेश समारोह में नहीं गए, लेकिन कहा कि वह बाद में मंदिर जाएंगे।
राजद (Rashtriya Janata Dal) नेता लालू प्रसाद यादव ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा राम मंदिर के लिए निकाली गई यात्रा को रोका था। राजद सरकार ने आडवाणी को गिरफ्तार किया था। प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण मिलने पर उनकी पार्टी को भी समाजवादी पार्टी से कम शर्मिंदगी नहीं हुई। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन भी निमंत्रण मिलने के बाद भी समारोह में शामिल नहीं हुए। खबर है कि उनकी पत्नी दुर्गा स्टालिन जल्द ही अयोध्या जा सकती हैं। अगर ऐसा हुआ तो इसका राजनीतिक असर क्या होगा, इस पर भी बहस हो रही है।
निष्कर्ष के रूप में कहें तो भगवान श्री राम की कृपा से वे सभी लोग बड़ी शर्मिंदगी में पड़ गए हैं जिन्होंने राम मंदिर बनाने का विरोध किया था। इन पार्टियों द्वारा लिए गए फैसलों के नतीजे आने वाले हफ्तों में पता चलेंगे।
नोट: यह लेख मूल रूप से तुगलक तमिल साप्ताहिक पत्रिका में छपा था। इसका अंग्रेजी में अनुवाद तुगलक डिजिटल द्वारा www.gurumurthy.net के लिए किया गया था। इसे एशियानेट न्यूज नेटवर्क में दोबारा प्रकाशित किया गया है।