Report: क्या वक्फ कानून में कांग्रेस ने दी थी जमीन हड़पने की छूट?

केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड क़ानून में बदलाव के प्रस्ताव का कांग्रेस समेत कई अल्पसंख्यक संगठन विरोध कर रहे हैं। आखिर यह वक्फ बोर्ड क़ानून कब और क्यों बना? क्या वाकई इस क़ानून के ज़रिए कांग्रेस ने ज़मीन हड़पने की छूट दे दी थी?

Sushil Tiwari | Published : Aug 13, 2024 5:02 AM IST

शशिशेखर पी, सुवर्ण न्यूज़

देश में किसी की भी ज़मीन या इमारत पर अपना हक़ जताने का अधिकार यहाँ के वक्फ बोर्ड के पास था। यह अधिकार वक्फ बोर्ड को 1995 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने दिया था। 2013 में यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड को और अधिकार दे दिए। इसके तहत वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को अपना बताकर उसे वक्फ संपत्ति के रूप में रजिस्टर करवा सकता था। ग़ौर करने वाली बात यह है कि ऐसा कोई क़ानून किसी भी कट्टर मुस्लिम देश में नहीं है। माना जाता है कि मुस्लिम वोट बैंक को मज़बूत करने के लिए यह क़ानून लाया गया था। अब मोदी सरकार इस क़ानून को बदलने जा रही है, तो स्वाभाविक है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल इसका विरोध कर रहे हैं।

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जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा वक्फ क़ानून के आगे कुछ भी नहीं था। ज़मीन हड़पने और क़ब्ज़ा करने के लिए वक्फ बोर्ड को क़ानूनी अधिकार दे दिए गए थे। इसका नतीजा क्या हुआ? देशभर में 2006 में जहाँ वक्फ संपत्ति 1 लाख 20 हज़ार एकड़ थी, वहीं 2009 तक यह बढ़कर 4 लाख एकड़ हो गई। मौजूदा अनुमान के मुताबिक़, देश में कुल वक्फ ज़मीन 9 लाख 40 हज़ार एकड़ है। यानी महज़ 18 सालों में 8 लाख एकड़ से ज़्यादा वक्फ संपत्ति बढ़ गई। इस देश में सबसे ज़्यादा ज़मीन अगर किसी गैर-सरकारी संस्था के पास है, तो वह वक्फ बोर्ड है। देशभर में सेना के पास कुल 18 लाख एकड़ ज़मीन है। पूरे देश में फैले रेलवे के पास 12 लाख एकड़ संपत्ति है। वहीं सरकार के सीधे नियंत्रण से बाहर वक्फ बोर्ड के पास 9.4 लाख एकड़ ज़मीन है। यह तो बस ज़मीन का आँकड़ा है। अगर इमारतों की बात करें, तो उनकी गिनती ही नहीं है।

वक्फ बोर्ड की संपत्ति शेयर बाज़ार से भी तेज़ी से बढ़ रही है, इसकी वजह 1995 में कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया वक्फ क़ानून है। 1954 में लागू हुए वक्फ क़ानून में 1995 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने संशोधन किया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए मौक़ा देने का आरोप उन पर लगा था। उस आरोप से मुक्त होने के लिए उन्होंने मुसलमानों को वक्फ क़ानून के ज़रिए विशेष अधिकार दे दिए।

1995 के वक्फ क़ानून की धारा 40(3) के तहत वक्फ बोर्ड को विशेष दर्जा दिया गया। अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई भी संपत्ति उसकी है, तो उसके ऊपर बिना किसी दस्तावेज़ के भी हक़ जताया जा सकता है। अपनी बताई गई ज़मीन को किसी और को बिकने से रोकने के लिए नोटिस देने का अधिकार भी उसे दे दिया गया। अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई भी संपत्ति या ज़मीन उसकी है, तो इस क़ानून के तहत उसे वक्फ संपत्ति के रूप में रजिस्टर करवाने का अधिकार दे दिया गया। धारा 54 के तहत वक्फ बोर्ड के सीईओ को संपत्ति की जाँच शुरू करने और वक्फ ट्रिब्यूनल के ज़रिए उसके क़ब्ज़ेदार को वहाँ से बेदख़ल करने का अधिकार दे दिया गया। वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल में ही क़ानूनी लड़ाई लड़नी होती है। बिना किसी दस्तावेज़ के भी हक़ जताने का अधिकार वक्फ बोर्ड को दे दिया गया था। लेकिन ज़मीन का मालिक अगर यह साबित करना चाहता है कि यह उसकी संपत्ति है, तो उसे दस्तावेज़ दिखाने होंगे, ऐसा इस क़ानून की धारा 85 कहती है। इसी क़ानून की धारा 3 के तहत संपत्ति पर क़ब्ज़ा करने के मामले को देश की किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। सरकार द्वारा ज़मीन के अधिग्रहण को अदालत में चुनौती देने का अधिकार तो है, लेकिन वक्फ के नाम पर ज़मीन हड़पने को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

इस क़ानून का दुरुपयोग कैसे होता है, इसके लिए कुछ उदाहरण देखते हैं। 2022 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 7 गाँवों की संपत्ति पर वक्फ बोर्ड ने अपना हक़ जताया था। तिरुचेंदुरई गाँव में स्थित 1,500 साल पुराने सुंदरेश्वर मंदिर की 400 एकड़ ज़मीन को तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने अपना बताया था। विडंबना यह है कि जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था, तब सऊदी अरब में इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था। 2021 में सूरत के नगर निगम कार्यालय को गुजरात के वक्फ बोर्ड ने अपना बताया था। 2022 में गुजरात के तट पर स्थित 2 छोटे द्वीपों पर वक्फ बोर्ड ने अपना हक़ जताया था। 2023 के जनवरी में तमिलनाडु के रानीपेट में 50 एकड़ कृषि भूमि को वहाँ के वक्फ बोर्ड ने अपना बताते हुए नोटिस जारी कर दिया था। 2024 के मई महीने में महाराष्ट्र के कोल्हापुर के एक गाँव में स्थित प्राचीन महादेव मंदिर की संपत्ति को वहाँ के वक्फ बोर्ड ने अपना बताया था। इतना ही नहीं, मुमताज़ के लिए शाहजहाँ द्वारा बनवाए गए ताज महल को उत्तर प्रदेश के सुन्नी वक्फ बोर्ड ने वक्फ संपत्ति बताया था। इस तरह की हज़ारों संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड ने अपना हक़ जताया है और उन पर क़ब्ज़ा किया है।

अगर इसी तरह का प्रावधान हिंदू धार्मिक क़ानून में होता, तो क्या होता? उसे धर्मनिरपेक्षता विरोधी क़ानून और सांप्रदायिक क़ानून कहा जाता। संविधान की रक्षा का ठेका लेने वाले लोग इस बारे में चूँ तक नहीं करते। अब जब मोदी सरकार इस क़ानून में 40 से ज़्यादा संशोधन करने जा रही है, तो फिर से संविधान की आड़ में इसका विरोध किया जा रहा है।
अब मूल मुद्दे पर आते हैं। वक्फ संपत्ति क्या होती है? इस्लाम के अनुसार, वक्फ संपत्ति का मतलब होता है, अल्लाह की संपत्ति। मुसलमानों द्वारा धार्मिक, शैक्षणिक और दान के उद्देश्य से अल्लाह को समर्पित की गई संपत्ति को वक्फ संपत्ति कहते हैं। इस्लाम के अनुसार, एक बार अल्लाह को समर्पित कर दी गई संपत्ति हमेशा के लिए अल्लाह की हो जाती है। इन संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार राज्य वक्फ बोर्ड के पास होता है। वक्फ संपत्ति का इस्तेमाल मुसलमानों की समस्याओं के समाधान, ग़रीबों के कल्याण, समाज सेवा और धार्मिक कार्यों के लिए किया जाना चाहिए।

क्या वाकई वक्फ संपत्ति का इस्तेमाल ग़रीब मुसलमानों के कल्याण और धार्मिक कार्यों के लिए हो रहा है? अगर देखें, तो सभी राज्यों के वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। इसके लिए कर्नाटक का एक उदाहरण काफ़ी है। बी.एस. येदियुरप्पा की सरकार के दौरान 2012 में वक्फ घोटाले की जाँच के लिए अब्दुल रहमान कमेटी बनाई गई थी। उस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राज्य में 29 हज़ार एकड़ वक्फ ज़मीन पर मुस्लिम नेताओं ने क़ब्ज़ा कर लिया है। क़ब्ज़ा करने वालों में ज़्यादातर कांग्रेस के नेता थे। 12 साल पहले इस घोटाले की रक़म 2.3 लाख करोड़ रुपए थी। इस तरह के घोटाले हर राज्य में हुए हैं। जो लोग यह उपदेश देते हैं कि एक बार अल्लाह को समर्पित कर दी गई वक्फ संपत्ति कभी नहीं बदलती, उन्हें एक बार यह ज़रूर देखना चाहिए। वक्फ संपत्ति से होने वाली आय का इस्तेमाल ग़रीब मुसलमानों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए था। लेकिन इसका फ़ायदा मुस्लिम नेताओं, रसूख़दार लोगों और अमीरों को ही मिला।

2006 में मनमोहन सिंह सरकार ने मुसलमानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का पता लगाने के लिए जस्टिस सच्चर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। देशभर में अध्ययन करने के बाद 2007 में सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति दलितों से भी बदतर है। सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में वक्फ बोर्ड के प्रशासन में सुधार, वक्फ बोर्ड के प्रशासन में गैर-मुस्लिम विशेषज्ञों को शामिल करने, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को वक्फ बोर्ड का प्रबंधन सौंपने, वक्फ बोर्ड के वित्तीय लेन-देन का हर साल ऑडिट कराने, वक्फ संपत्ति से जुड़े विवादों का निपटारा अदालत में करने और वक्फ संपत्ति से होने वाली आय का इस्तेमाल ग़रीब मुसलमानों के कल्याण के लिए करने की सिफ़ारिश की थी।

अब केंद्र सरकार वक्फ क़ानून में 40 से ज़्यादा संशोधन करने जा रही है। संपत्ति के रजिस्ट्रेशन और किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए वक्फ बोर्ड को मिले विशेष अधिकार पर रोक लगाई जा रही है। अब कोई भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना हक़ नहीं जता पाएगा। वक्फ संपत्ति, उसके प्रबंधन और प्रशासन से जुड़े कुछ सुधारात्मक क़दम उठाए जा रहे हैं। वक्फ संपत्ति के मूल्यांकन के लिए संशोधित क़ानून में प्रावधान किया गया है। वक्फ संपत्ति से जुड़े सभी दस्तावेज़ डीसी कार्यालय में जमा कराने होंगे। वक्फ संपत्ति से जुड़े विवादों को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी। इसके अलावा, वक्फ बोर्ड के प्रशासन में महिलाओं को अनिवार्य रूप से जगह देने का प्रावधान किया गया है। 2007 में सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जो सिफ़ारिशें की थीं, उनमें से ज़्यादातर सिफ़ारिशों को इस संशोधित क़ानून में शामिल किया गया है।

ऐसा क़ानून 29 सालों से भारत में लागू है। कांग्रेस और I.N.D.I.A गठबंधन का कहना है कि इसे किसी भी कीमत पर नहीं बदला जाना चाहिए। सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी क़ानून को देश की किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती, यह अपने आप में असंवैधानिक है। 1991 में कांग्रेस ने पूजा स्थल क़ानून लाकर यह तय कर दिया था कि 1947 से पहले धार्मिक स्थलों पर जो भी परंपराएँ थीं, वही आगे भी जारी रहेंगी। 1995 में उसी कांग्रेस सरकार ने वक्फ क़ानून के ज़रिए यह व्यवस्था कर दी कि किसी की भी संपत्ति हो, अगर वक्फ बोर्ड उसे अपना बताता है, तो बिना किसी दस्तावेज़ के ही उस पर क़ब्ज़ा किया जा सकता है। अगर वक्फ क़ानून संविधान सम्मत है, तो सभी धर्मों को ऐसा ही अधिकार दे दिया जाए। तुष्टीकरण की राजनीति का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा?

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