भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल ने अपने लेख में कहा है कि कांग्रेसी बेरोजगारी के नाम पर आतंकी गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हुड़दंगी सांसदों के निलंबन को विपक्ष लोकतंत्र की हत्या बता रहा है।
नई दिल्ली (लेखक-प्रेम शुक्ल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा)। संसद में एक समूह ने सुरक्षा भेद कर सदन में हंगामा खड़ा करने का प्रयास किया । जूते में गैस छिपकर भेदिए सदन तक पहुंचे उनका मकसद हंगामा खड़ा करना था किंतु संसद की सुरक्षा में जिस तरह की चूक हुई उससे स्वाभाविक तौर पर सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा। संसद के भीतर और बाहर हुड़दंग करने वालों की गिरफ्तारी हुई। उन पर दिल्ली पुलिस ने यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
संसद की भीतरी सुरक्षा के लिए सुरक्षा इकाई लोकसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट करती है। स्वाभाविक तौर पर लोकसभा अध्यक्ष ने मामले की जांच के लिए गृह मंत्रालय को निर्देश दिया और गृह मंत्रालय ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर मामले की जांच शुरू की। इस घटना से इंडी एलायंस के साथियों को संसद में हंगामा खड़ा करने का मौका मिल गया। संसद में हंगामा खड़ा करने वाले 92 सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने निलंबित कर दिया। 11 सांसदों के खिलाफ विशेषाधिकार समिति के पास जांच की सिफारिश कर दी गई।
हुड़दंगी सांसदों के निलंबन को लोकतंत्र की हत्या बता रहा विपक्ष
हंगामे के दौरान कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का बयान आया कि देश में व्याप्त महंगाई और बेरोजगारी के कारण त्रस्त युवकों ने संसद में हंगामा किया। एक तरफ कांग्रेस के सांसद अपने बगल बच्चा दलों के सांसदों के साथ सुरक्षा में हुई चूक को किसी बड़े आतंकी अंजाम की दस्तक बता रहे हैं। दूसरी तरफ उन्हीं के नेता इसे बेरोजगारी से उपजी हताशा का परिणाम करार दे रहे हैं। हुड़दंगी सांसदों के निलंबन को लोकतंत्र की हत्या बताया जा रहा है। जबकि कुछ दिन पहले ही लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति के समक्ष सर्वदलीय बैठक में तय हुआ था कि संसद में अगर कोई भी सदस्य प्लेकार्ड ले आता है तो यह सदन की गरिमा के विरुद्ध माना जाएगा और उक्त संसद को निलंबित करार दिया जाएगा।
विपक्षी दल के सांसद न केवल प्लेकार्ड लेकर सदन में प्रदर्शन कर रहे थे बल्कि उनमें से कई वेल में मौजूद थे और कुछ तो अध्यक्ष के आसान तक पहुंचने का प्रयास कर रहे थे। स्वाभाविक तौर पर उनके खिलाफ की गई कार्रवाई संसदीय प्रक्रिया के अनुरूप है। जो लोग प्रचारित कर रहे हैं कि यह सत्ताधारी दल की तानाशाही है वह इस तथ्य को सुविधा के अनुरूप बिसार दे रहे हैं कि 1989 में इसी संसद में ठक्कर आयोग की रिपोर्ट को लेकर जब विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया था तब तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के प्रस्ताव पर 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। यदि राजीव गांधी सरकार की तत्कालीन निलंबन की कार्रवाई संसदीय परंपरा के अनुरूप थी तो आज की यह कार्रवाई तानाशाही कैसे? इस सवाल का जवाब देने के लिए ना तो कोई कांग्रेसी तैयार है और ना ही उनके बगल बच्चे।
राहुल गांधी के बेरोजगारी के दावे में नहीं है दम
अब दूसरा बिंदु है राहुल गांधी के बेरोजगारी और महंगाई वाले बयान के पड़ताल का। जो राहुल गांधी इस समय बेरोजगारी का बाजा आए दिन बजा रहे हैं क्या उनके दावे में दम है? नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) की 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 1991 के उदारीकरण के बाद 2013 तक 22 वर्षों की अवधि में देश में कुल 6.1 करोड़ रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए। इस अवधि में रोजगार के अवसर 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र में थे।
इन 22 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी का शासन काल सिर्फ 6 वर्षों का था। जिसमें आर्थिक वृद्धि दर और रोजगार सृजन की गति कांग्रेस और उसके साथी दलों के 16 वर्ष के शासनकाल से बेहतर रहा। जबकि बीते नौ वर्षों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में रोजगार सृजन की गति ऐतिहासिक रही।
4.86 करोड़ नए EPF खाते खुले
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया का एक हालिया शोध बता रहा है कि वित्त वर्ष 2020 से वित्त वर्ष 2023 के बीच में एम्पलाइज प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन (ईपीएफओ) के नए खातेदारों की संख्या 4.86 करोड़ है। स्वाभाविक है कि कोई भी नियोक्ता अपने कर्मचारी का एंप्लॉयमेंट प्रोविडेंट फंड खाता तभी खोलेगा जिसे उसने अपने यहां नौकरी दी होगी। यदि 3 वर्षों के कार्यकाल में 4.86 करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में रोजगार का अवसर पाते हैं तो असंगठित क्षेत्र में रोजगार का अवसर पाने वालों की संख्या इसकी 9 गुनी होगी। सिर्फ महिला ईपीएफओ खातेदारों की संख्या पर भी नजर घुमा ली जाए तो राहुल गांधी का झूठा दावा बेनकाब होता है।
2019-20 में 15.94 लाख खाता 2020-21 में 13.98 लाख खाता 2021-22 में 26.19 खाता और 2022-23 में 28.69 लाख खाते सिर्फ महिलाओं के खुले हैं। कांग्रेस के शासनकाल में सृजित कुल रोजगार की तुलना में सिर्फ महिलाओं के रोजगार के आंकड़े भी बेहतर हैं। नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सरकारी नौकरियों के लिए रोजगार मेलों की शुरुआत की। 22 अक्टूबर 2022 से प्रारंभ इन रोजगार मेलों के माध्यम से प्रधानमंत्री ने 10 लाख सरकारी नियुक्तियों के पत्र सौंपने का लक्ष्य निर्धारित किया। अब तक रोजगार मेलों के माध्यम से 8 लाख सरकारी नियुक्ति पत्र बांटे जा चुके हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के अनुसार अगले तीन महीना में 10 लाख सरकारी नौकरियों के नियुक्त पत्र को बांटने का लक्ष्य पूरा हो जाएगा।
40.82 करोड़ लोगों को मिला कर्ज
नौकरियों के अलावा प्रधानमंत्री ने स्वरोजगार योजना पर भी बल दिया है। 2015 में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना प्रारंभ की गई जिसके तहत रोजगार सृजन की दृष्टि से नॉन कॉरपोरेट और नॉन फार्म सेक्टर में सूक्ष्म उद्यमिता के लिए 10 लख रुपए तक का कर्ज सरकार उपलब्ध कराती है। अब तक सरकार 40.82 करोड़ लोगों को 23.2 ट्रिलियन का ऋण प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत मंजूर कर चुकी है। इसमें से 27 करोड़ महिलाओं को कर्ज आवंटित हुआ है। कुल राशि में से आधा कर्ज अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े समाज के उद्यमियों को उपलब्ध कराया गया है।
आंकड़ों के अनुसार कर्ज लेने वाले लोगों में 21 फीसदी नए उद्यमी हैं। यदि सिर्फ 21 फीसदी को भी स्वरोजगार के तहत पहली बार रोजगार की श्रेणी में रखा जाए तब भी 8 करोड़ से ज्यादा लोगों को बीते वर्ष में रोजगार प्राप्त हुआ है। 2016 में इस देश में कुल स्टार्टअप्स की संख्या 450 की थी। डिपार्टमेंट का प्रमोशन आफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) के अनुसार 2023 में स्टार्टअप्स की संख्या 1 लाख से ऊपर पहुंच चुकी है। क्या ये स्टार्टअप कोई रोजगार नहीं सृजित कर रहे?
देश में खड़े हुए 111 यूनिकॉर्न
2016-17 से लेकर 3 अक्टूबर 2023 के बीच में देश में 111 यूनिकॉर्न खड़े हुए हैं। यूनिकॉर्न उसे कंपनी को कहते हैं जिसका मूल्यांकन एक बिलियन डॉलर से ज्यादा होता है। 111 यूनिकॉर्न का मूल्यांकन 349. 67 बिलियन डॉलर का है। 2021 में 45 नए यूनिकॉर्न खड़े हुए जिनका मूल्यांकन 102 बिलियन डॉलर का है। वर्ष 2022 में 22 यूनिकॉर्न खड़े हुए जिनका मूल्यांकन 29.2 मिलियन डॉलर का बताया जाता है। साफ है कि नए उद्योगों से भी रोजगार सृजित हुआ है। ये प्रामाणिक आंकड़े बता रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में कांग्रेसी शासनकाल की तुलना में कई गुना रोजगार का सृजन हुआ है। फिर कांग्रेसी बेरोजगारी के नाम पर आतंकी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का कुकर्म क्यों कर रहे हैं?
कुल मिलाकर कांग्रेस के ना तो तानाशाही के आरोपों में कोई दम है ना ही बेरोजगारी से उपजे असंतोष के राहुल गांधी के दावे में कोई सार। जहां तक महंगाई की बात रही तो आंकड़े गवाह हैं कि डॉ. मनमोहन सिंह के 10 वर्षों के कार्यकाल में मुद्रास्फ़ीत की औसत दर 10 फ़ीसदी के पार रही। जबकि करोना जैसी महामारी के बावजूद नरेंद्र मोदी के 10 वर्षों के कार्यकाल में मुद्रास्फ़ीत की औसत दर 5 फ़ीसदी के आसपास ही रही। संदेश साफ है कि कांग्रेस के कार्यकाल में मोदी के कार्यकाल की तुलना में महंगाई दोगुनी थी। फिर महंगाई के नाम पर कांग्रेसियों के मचाक उड़ाने का क्या औचित्य है?