Vaccine Update : -भारत की पहली स्वदेशी mRNA वैक्सीन का ट्रायल, फरवरी तक बूस्टर डोज के लिए हो सकती है उपलब्ध

mRNA Vacine Update : देश की पहली mRNA वैक्सीन का फरवरी में इंसानों पर ट्रायल शुरू हो सकता है। पुणे स्थित जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने mRNA वैक्सीन के दूसरे चरण के आंकड़े जमा कर दिए हैं और तीसरे चरण के पूरे डेटा फाइल कर लिए हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jan 17, 2022 10:09 AM IST

नई दिल्ली। देश की पहली मैसेंजर mRNA वैक्सीन का फरवरी में इंसानों पर ट्रायल शुरू हो सकता है। पुणे स्थित जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने mRNA वैक्सीन के दूसरे चरण के आंकड़े जमा कर दिए हैं और तीसरे चरण के पूरे डेटा फाइल कर लिए हैं। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) की सबजेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (SEC) जल्द ही आंकड़ों की समीक्षा कर सकती है। बताया जा रहा है कि जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स ने ओमीक्रोन वैरिएंट (Omicron Variant) के लिए भी mRNA वैक्सीन बनाई है। इसका ट्रायल जल्द ही शुरू किया जाएगा। एमआरएनए वैक्सीन बूस्टर के तौर पर बेहतर विकल्प हो सकती है।

सितंबर 2021 में ट्रायल की दी थी जानकारी 
इससे पहले सितंबर 2021 में कंपनी ने अपनी वैक्सीन के ट्रायल के बारे में जानकारी दी थी। भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने जेनोवा द्वारा अगस्त में विकसित भारत के पहले mRNA- आधारित COVID-19 वैक्सीन, HGCO19 के लिए दूसरे और तीसरे चरण के रिसर्च प्रोटोकॉल को मंजूरी दी थी।  

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बूस्टर डोज के लिए बेहतर विकल्प होगी 
बताया जा रहा है कि एमआरएनए वैक्सीन बूस्टर डोज के तौर पर पहली पसंद होगी। बता दें कि अमेरिकी कंपनी फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन एमआरएनए तकनीक पर ही आधारित है। फाइजर का इस्तेमाल कई देशों में बूस्टर डोज के तौर पर हो रहा है। इसलिए जेनोवा की वैक्सीन आती है तो देश में बूस्टर डोज का यह सबसे बेहतर विकल्प होगा। देश में अब तक 156 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। यही नहीं करीब 50 लाख लोगों को प्रिकॉशनरी डोज (बूस्टर डोज) भी मिल चुका है। 
 
क्या है mRNA वैक्सीन
mRNA वैक्सीन न्यूक्लिक एसिड वैक्सीनों की श्रेणी में आती है। इसमें इंसानों की कोशिकाओं के लिए ऐसे इंफॉर्मेशन फीड किए जाते हैं, जिससे कोशिका ऐसे प्रोटीनों का निर्माण करें जो वायरस की कॉपी हो और शरीर उसे पहचान ले। दूसरे वैक्सीन में वायरस के ही हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि एमआरएनए में असली वायरस का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। कोवैक्सीन में कोरोना के मूल वायरस का इस्तेमाल किया गया है, जबकि कोविशील्ड चिंपैंजी के एडिनो वायरस से बना है।

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