जिंदगी में कोई संघर्ष न आए, ये असंभव है...लेकिन हमें हथियार नहीं डालना है, यह याद रखें

जिंदगी संघर्षों से लड़कर ही अपने लिए खुशियां ढूंढ़ पाती है। बात चाहे दूसरी मुसीबतों की हो या कोरोना संकट की; इनसे वही जीता, जिसने हार नहीं मानी। यकीनन ही कोरोना की दूसरी लहर बेहद खतरनाक साबित हुई, फिर भी लोग लड़े...हार नहीं मानी और संक्रमण को हराकर दुबारा सामान्य जिंदगी में लौटे। पढ़ते हैं एक ऐसे ही शख्स की कहानी, जिसका हौसला देखकर डॉक्टर भी मुस्करा दिए थे।

भोपाल(मध्य प्रदेश). आप मानें या न मानें, लेकिन मैं मानता हूं कि कोरोना एक ऐसा संक्रमण है, जो किसी के शरीर में एक बार घुस जाए, तो अपना तांडव दिखाकर ही रहता है। खासकर, ऐसे लोगों को यह धराशायी कर देता है, जो मानसिक और शारीरिक तौर पर कमजोर हैं। जो लड़ना नहीं जानते या लड़ना ही नहीं चाहते। जो लोग इस बीमारी से नहीं गुजरे, उन्हें यह कुछ भी नहीं लगता। वे हंसते हैं, कोरोना गाइडलाइन का मजाक उड़ाते हैं। लेकिन कोरोना एक बार शरीर में घुसता है, तो तो फिर देखिए कैसे आपको अहसास करवाता है कि अपने शरीर में कौन-कौन पार्ट कमजोर हैं, आपकी कौन सी बीमारी आपके लिए जानलेवा है। यह अहसास मुझे हो चुका है, इसलिए मैं ऐसा कह पा रहा हूं। वर्ना मैं भी कोरोना को चाइनीज सुतली बम ही मानता था। 

Asianetnews Hindi के लिए प्रभंजन भदौरिया ने भोपाल में जर्नलिस्ट शशि शेखर से बात की। शशि शेखर एक खेल पत्रकार हैं। लाजिमी है कि अपनी फिटनेस का थोड़ा-बहुत ध्यान रखते हैं। यही वजह रही कि वे गंभीर हालत में पहुंचने पर भी कोरोना को हराकर सामान्य जिंदगी में लौट आए।

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कोरोना का लक्षण और मेरी लापरवाही 
12 अप्रैल को रात करीब 10 ऑफिस में काम करते समय गले में हल्की खरास महसूस हुई। करीब रात 12 बजे तब लगा कि मेरे शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ रहा है। ऑफिस में देर रात काम करते हैं, लिहाजा रात करीब 2 बजे थकावट महसूस होने लगी। आंखें जलने लगीं। घर पहुंचते ही बिस्तर पर लेट गया। श्रीमतीजी को बताया कि तबीयत ठीक नहीं लग रही है। अगले दिन सुबह 4 बजे अचानक श्रीमतीजी मुझे जगाने लगी और बोलीं आपका बदन बहुत तप रहा है। मैं उठा, लेकिन भारी थकावट लग रही थी। एक पैरासिटामॉल टेबलेट खा लिया। थोड़ी देर बाद ठीक महसूस करने लगा, तो सो गया। कुछ देर बाद उठा, तो तबीयत ठीक लग रही थी। लेकिन 11 बजे के करीब ऑफिस से फोन आया कि मीटिंग है और तुम्हें आना है। मैंने कहा तबीयत ठीक नहीं लग रही है, बुखार है और अगर मैं अभी आया तो शाम में दफ्तर काम पर नही आ सकूंगा। मेरे बॉस ने थोड़ी देर बाद फोन किया और बोले कि तुम अभी आराम करो और मैं कुछ दवाई के नाम भेज रहा हूं, मंगवाकर खा लेना। दवाई लेने मैं स्वयं गया। दवाई खा ली। शाम को दफ्तर पहुंचने के बाद बॉस ने बताया वो सभी दवाई कोरोना लक्षण वालों के लिए है, तुम कोर्स पूरा कर लेना।

लेकिन लगातार बिगड़ती गई तबीयत
दवाएं लेने के बावजूद तबीयत और बिगड़ती चली जा रही थी। मुंह स्वाद जा चुका था। कुछ भी खाया नहीं जा रहा था। सिर्फ बिस्किट के सहारे थे। जब घबराहट होने लगी, तब डाक्टर के पास गया। उन्होंने पुरानी सारी दवाई बंद कर दीं और नई दवाएं दीं। इसके बाद ठीक महसूस करने लगे। लेकिन खांसी और तेज चलने लगी
थी। मुंह का स्वाद भी वापस नहीं आया था। 17 अप्रैल को जब बहुत तेज खांसी के बाद कफ निकलने लगा, तो फिर डाक्टर के पास गया। 18 अप्रैल को डाक्टर ने कोरोना टेस्ट करवाने को कहा।

एंटीजन रिपोर्ट देखकर जब मैं खुश हुआ
एंटीजन टेस्ट में रिपोर्ट निगेटिव आई। मैं और पत्नी काफी खुश हुए, लेकिन कफ वाली खांसी अपने चरम पर थी। अब सांस लेने में तकलीफ होने लगी। आखिरकार 22 अप्रैल को फिर डाक्टर के पास गया। हालात काफी खराब हो चली थी। करीब पांच-छह दिन कुछ नहीं खाने के कारण कमजोरी ऐसी थी कि ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। डाक्टर ने सिटी स्कैन करवाने को कहा। उसमें मुझे सिवियर कोरोना पॉजिटिव बताया गया। 

फिर शुरू हुई कोरोना से जंग
एंटीजन टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव होने होने के बाद  बेफिक्र रहने का खामियाजा यह हुआ कि कोरोना ने मेरे फेफड़े में अच्छी खासी पकड़ बना ली थी। लगभग 60 प्रतिशत। परिणाम यह हुआ कि मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था। मुंह का स्वाद जाने के कारण 7-8 दिन से खाना नहीं खाया था, तो कमजोरी बढ़ती जा रही थी। डाक्टर ने अस्पताल में भर्ती होने को कहा। लेकिन अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे थे। मेरे बड़े भाई जैसे मित्र रामकृष्ण यदुवंशी और बॉस मृगेन्द्र सिंह के अथक प्रयास से आरकेडीएफ मेडिकल कालेज में ऑक्सीजन बेड मिल पाया। रातभर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहा और सुबह 6 बजे अपने आप को थोड़ा ठीक महसूस करने लगा।

लोगों से हौसला मिला
गांव से मां, भैया, दीदी और परिवार के कई लोगों का फोन आया। सबसे अच्छे से बात करने से उत्साह बढ़ता रहा। लेकिन मैं अपने आप को ठीक महसूस नहीं कर रहा था। दिनभर डाक्टर सिर्फ आक्सीजन पर रहने को कहते, लेकिन किसी तरह का इंजेक्शन नहीं लगा। शाम होते-होते मैं अपने आप को और बेहतर महसूस करने लगा। रात में डॉक्टर आए और बोले, शेखर जी आपने तो कमाल कर दिया। डॉक्टर बोले, इतनी तेजी से मैंने किसी को रिकवर होते नहीं देखा। चमत्कार हो गया। आपकी इम्यूनिटी अच्छी थी और आपका खान-पान भी ठीक रहा होगा.. लेकिन अभी आपको कम से कम एक सप्ताह रुकना होगा, जरूरी दवाई लेनी होंगी।

ट्रीटमेंट पूरा जरूरी
खांसी तेज थी, कफ भी सीने में जकड़ा हुआ था। इन सब पर भी काबू पाना था, इसलिए मैंने अस्पताल में ही रुकना मुनासिब समझा। आखिरकार आठवें दिन यानी 30 अप्रैल को अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ। लेकिन घर आने पर पता चला हमारे पत्रकार मित्र रोहित सरदाना नहीं रहे। मन में फिर डर बैठ गया। रोहित मेरे ही उम्र का था और मेरे कई मित्रों के साथ ईटीवी हैदराबाद में काम कर चुका था। लेकिन परिवार के बीच होने के कारण डर जाता रहा। उसके बाद डाक्टर से मिलने गए। डाक्टर ने देखते ही कहा आने आपने जल्दी रिकवरी की इसके लिए आपको बधाई। अब आप सारी चिंताएं छोड़ दिजिए और मेरी दवाई खाते रहिए। घर जाइए और खूब प्रोटीन युक्त भोजन किजिए। डॉक्टर की सलाह के बाद लगभग 40 दिन तक ऑफिस से छुट्टी के बाद 25 मई को काम पर लौटा। अब बेहतर महसूस कर रहा हूं... इस दौरान बहुत से अग्रज और मित्रों ने मनोबल बढ़ाया, उन सब का दिल से शुक्रिया...।

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें मॉस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोड़ेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona

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