
Delhi Blast Latest Update: 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए ब्लास्ट केस में एक बड़ा खुलासा हुआ है। जांच में सामने आया है कि इस आतंकी मॉड्यूल ने पुलिस से बचने के लिए 'डेड ड्रॉप' ईमेल (Dead Drop Emails) तकनीकी का इस्तेमाल किया। यह बेहद हाई-टेक और ट्रेस न होने वाली तकनीकी मानी जाती है। यह वही सिस्टम है जिसका इस्तेमाल जासूसी नेटवर्क और अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों में होता है।
जांच में सामने आया कि गिरफ्तार डॉक्टर मुझम्मिल शकील, उमर मोहम्मद और शाहिद सईद एक ही ईमेल आईडी में लॉगिन करते थे। वे एक-दूसरे को संदेश भेजने की बजाय सिर्फ ड्राफ्ट फोल्डर में अपनी प्लानिंग लिखते थे। दूसरा व्यक्ति उसी ड्राफ्ट को पढ़ लेता था और ड्राफ्ट को बिना भेजे या तो डिलीट कर देता था या उसमें नया अपडेट डाल देता था। इस तकनीक में ईमेल कभी भेजा ही नहीं जाता था, जिससे डिजिटल ट्रेल लगभग खत्म हो जाता है और पुलिस या किसी भी सुरक्षा एजेंसी के लिए उनकी लोकेशन या बातचीत को ट्रैक करना बेहद मुश्किल हो जाता है।
जांच एजेंसियों ने पाया कि ये संदिग्ध केवल ईमेल तक सीमित नहीं थे। उन्होंने थ्रेमा (Threema), टेलीग्राम (Telegram) और ऐसे कई एन्क्रिप्टेड ऐप्स का इस्तेमाल किया, जहां चैट का रिकॉर्ड जल्दी मिट जाता है या ट्रेस नहीं होता। इन ऐप्स ने उनकी पहचान और गतिविधियों को सुरक्षित रखा और जांच एजेंसियों को पूरी तरह चकमा दिया।
जांच में यह भी साफ हो चुका है कि धमाके के समय i20 कार चला रहा व्यक्ति उमर मोहम्मद ही था। शुरुआती इनपुट के मुताबिक, अपने साथियों की गिरफ्तारी की जानकारी मिलते ही वह घबराहट में आ गया और इसी पैनिक में उसने धमाका करने का कदम उठाया। एजेंसियों को शक है कि उसकी घबराहट ने पूरी साजिश को असमय उजागर कर दिया।
दिल्ली धमाके से पहले डॉक्टर मुझम्मिल और शाहिद सईद को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इन गिरफ्तारियों के बाद चलाए गए ऑपरेशन में लगभग 3,000 किलो विस्फोटक, IED बनाने के लिए जरूरी केमिकल, एक राइफल, कारतूस और कई संदिग्ध सामग्री मिली। इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक यह संकेत देता है कि मॉड्यूल का मकसद सिर्फ एक धमाका नहीं, बल्कि कई शहरों में एक साथ हमले करना था।
सूत्रों के मुताबिक, इन आतंकवादियों की बैठकों का मुख्य ठिकाना अल-फलाह यूनिवर्सिटी का एक कमरा था, जहां से हर साजिश को अंजाम तक पहुंचाने की प्लानिंग होती थी। यहां धमाके की तारीख, लोकेशन, कार की मूवमेंट, विस्फोटक की मात्रा और सबकुछ तय किया जाता था। एजेंसियों को यह भी शक है कि इस मॉड्यूल का कनेक्शन पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद संगठन से हो सकता है, क्योंकि तरीके बिल्कुल वही हैं जो उन नेटवर्क में इस्तेमाल होते हैं।
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