दिल्ली हाई कोर्ट ने बैलेट पेपर और ईवीएम से चुनाव चिह्न हटाने की जनहित याचिका खारिज की

Published : Apr 18, 2022, 04:19 PM ISTUpdated : Apr 18, 2022, 04:21 PM IST
दिल्ली हाई कोर्ट ने बैलेट पेपर और ईवीएम से चुनाव चिह्न हटाने की जनहित याचिका खारिज की

सार

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें नगरपालिका चुनावों के लिए बैलेट पेपर और ईवीएम से चुनाव चिह्न हटाने की मांग की गई थी। यह याचिका अलका गहलोत द्वारा लगाई गई थी।

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने सोमवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया। पीआईएल में दिल्ली में होने वाले नगरपालिका चुनावों में बैलेट पेपर और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से चुनाव चिह्न हटाने के लिए राज्य चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी। इससे पहले कोर्ट ने मामले में प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया था।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने सोमवार को याचिका खारिज करने का फैसला किया। याचिका में कहा गया है कि उम्मीदवार की तस्वीरों की उपस्थिति में चुनाव चिह्न की आवश्यकता नहीं है। एक आरक्षित चुनाव चिह्न की उपस्थिति अल्ट्रा-वायरस है। यह भारत के संविधान और दिल्ली नगर निगम (डीएमसी), अधिनियम 1957 में निहित कानून के प्रावधान हैं। आरक्षित चुनाव चिह्न की उपस्थिति निगम में भ्रष्टाचार का मूल कारण है।

अलका गहलोत लगाई थी याचिका
याचिकाकर्ता अलका गहलोत 2017 में हुए पिछले नगरपालिका चुनाव की पूर्व-प्रतियोगी थीं। इससे पहले उन्होंने 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उस याचिका को अदालत ने एक निर्देश के साथ निपटा दिया था। कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को याचिकाकर्ता की शिकायत पर विचार करने का निर्देश दिया था। 

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अधिवक्ता एचएस गहलोत ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया और कहा कि डीएमसी अधिनियम 1957 में यह प्रावधान है कि पार्षदों को विभिन्न वार्डों से वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुना जाता है। इसमें राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को कोई वरीयता नहीं दी जाती है। इसलिए राज्य चुनाव आयोग को एक उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए चुनाव करना चाहिए, न कि किसी पार्टी का। मतपत्र पर आरक्षित चिह्न की उपस्थिति मौलिक अधिकारों और लोगों के अन्य संवैधानिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है।

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याचिका में आगे कहा गया है कि एनसीआर योजना बोर्ड अधिनियम, 1985 के उल्लंघन के चलते दिल्ली की आबादी तेजी से बढ़ रही है। नगरपालिका सरकार जिम्मेदारी से नहीं बच सकती क्योंकि अधिकांश पार्षद संपत्ति के सौदे में लिप्त हैं या उनके साथ सांठगांठ है। अनियोजित विकास के परिणामस्वरूप दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक हो गई है।

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