कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मिले सजा-ए-मौत, NIA की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट ने भेजा नोटिस

टेरर फंडिंग केस में निचली अदालत ने अलगाववादी नेता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसको चैलेंज करते हुए नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी ने हाईकोर्ट का रूख किया था।

Dheerendra Gopal | Published : May 29, 2023 10:45 AM IST / Updated: May 29 2023, 04:35 PM IST

Yasin Malik Terror funding case: कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक के टेरर फंडिंग मामले में एनआईए ने मौत की सजा के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करने के लिए नोटिस जारी की है। टेरर फंडिंग केस में निचली अदालत ने अलगाववादी नेता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसको चैलेंज करते हुए नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी ने हाईकोर्ट का रूख किया था। यासीन मलिक फिलहाल जेल में है। NIA की हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच ने की है। इस मामले में 9 अगस्त को कोर्ट अगली सुनवाई का डेट तय किया है।

24 मई 2022 को लोअर कोर्ट ने मौत की सजा के लिए एनआईए की याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक को कठोर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी के तहत विभिन्न अपराधों का दोषी ठहराया। लोअर कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाते हुए कहा कि मलिक द्वारा किए गए अपराध भारत के विचार के दिल पर चोट करते हैं। इसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर को भारत संघ से बलपूर्वक अलग करना था। ट्रायल कोर्ट ने कहा कि यह अपराध अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और नामित आतंकवादियों की सहायता से किया गया था। अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की आड़ में किया गया था।

इसलिए सजा-ए-मौत नहीं किया...

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि मामला दुलर्भतम नहीं था जो मौत की सजा का वारंट करेगा। कोर्ट ने आजीवन कारावास दो अपराधों के लिए किया जो आईपीसी की धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और यूएपीए की धारा 17 (आतंकवादी अधिनियम के लिए धन जुटाना) के अंतर्गत आते हैं। कोर्ट ने मलिक को आईपीसी की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश), 121-ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश) और धारा 15 (आतंकवाद), 18 (आतंकवाद की साजिश), और यूएपीए के 20 (आतंकवादी संगठन का सदस्य होने के नाते) के तहत 10-10 साल की जेल की सजा सुनाई थी। । जबकि यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी कृत्य), 38 (आतंकवाद की सदस्यता से संबंधित अपराध) और 39 (आतंकवाद को समर्थन) के तहत प्रत्येक को पांच साल की जेल की सजा सुनाई।

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