
नई दिल्ली। जेल में बंद दिल्ली दंगों (Delhi riots accused umar khalid news) के आरोपी उमर खालिद की जमानत की अर्जी पर गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत में सुनवाई हुई। खालिद के वकील ने कहा कि अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ बोलने का मतलब यह नहीं हो जाता कि अल्पसंख्यक सांप्रदायिक हैं। खालिद ने दिल्ली दंगों से जुड़े एक गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के मामले में जमानत की मांग की।
वॉट्सऐप ग्रुप पर चुप्पी को भी माना जा रहा खिलाफ
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने कुछ वॉट्सऐप ग्रुपों पर उनके मुवक्किल (उमर खालिद) की चुप्पी को अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन इन वॉट्सऐप ग्रुप पर उमर खालिद की कोई सक्रियता नहीं रही है। यह पहला मौका है जब किसी की चुप्पी को उसके खिलाफ माना जा रहा है।
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मुझे मूक अपराधी बना दिया गया
पेस ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने 2016 के जेएनयू देशद्रोह मामले में उनकी संलिप्तता का उल्लेख किया है और अपराध दिखाने के लिए दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप वॉट्सऐप ग्रुप पर खालिद की चुप्पी का उल्लेख किया है। 2016 के जेएनयू देशद्रोह मामले का जिक्र करते हुए वरिष्ठ वकील ने कहा - अगर मैं 2016 से अपराधी हूं और मैंने चुप्पी का यह नया विचार विकसित किया है, तो मैं एक मूक अपराधी हूं.. तो क्या आपने अन्य वॉट्सऐप ग्रुपों से तुलना की है?
मुद्दों को उठाने वाले को सांप्रदायिक नहीं कह सकते
पेस ने कहा कि सीएए (CAA)और एनआरसी (NRC)को भेदभावपूर्ण कहना मुझे सांप्रदायिक नहीं बनाता है। उन्होंने खालिद की पीएचडी थीसिस का जिक्र किया, जो झारखंड के आदिवासियों पर बताई गई थी। उन्होंने कहा- व्यक्ति किसी मुद्दे को उठाता है... उसे सांप्रदायिक नहीं कह सकते, क्योंकि वह लोगों के एक वर्ग के बारे में लिखता है। जिन अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है उनके लिए बोलना उन्हें सांप्रदायिक नहीं बनाता है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का बहुत सारे लोगों ने विरोध किया। रामचंद्र गुहा, टीएम कृष्णा और कई लोगों ने इस कानून के खिलाफ बात की है।
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