दिल्ली दंगे : शरजील इमाम की याचिका पर सरकार को नोटिस, देशद्रोह के आरोप तय करने के खिलाफ पहुंचा हाईकोर्ट

Delhi Riots : इमाम पर आरोप है कि उसने दिल्ली में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के विरोध में भड़काऊ भाषण दिए। इसे लेकर उसके खिलाफ आरोप तय किए गए हैं। शरजील ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

Asianet News Hindi | Published : Mar 11, 2022 6:48 AM IST

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi high court) ने शुक्रवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र शारजील इमाम द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। इस याचिका में शरजील ने विशेष अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें शरजील के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत देशद्रोह जैसे अपराधों के आरोप लगाए गए थे। 

सुनवाई में अधिक समय का हवाला देकर मांगी जमानत
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस एके मेंदीरत्ता की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए राज्य को दो हफ्ते का समय दिया। इमाम की ओर से पेश अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर ने कोर्ट से शरजील की जमानत की मांग करते हुए कहा कि हमारी अपील पर सुनवाई में समय लगेगा। इसलिए शरजील को जमानत दी जानी चाहिए। इस पर विशेष लोक अभियोजक ने दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखने के लिए समय मांगा। मामले की अगली सुनवाई 26 मई को होगी। 

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CAA, NRC के विरोध में दिया था भड़काऊ भाषण
इमाम पर आरोप है कि उसने दिल्ली में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के विरोध में भड़काऊ भाषण दिए। इसे लेकर उसके खिलाफ आरोप तय किए गए हैं। शरजील ने इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विशेष अदालत ने शरजील के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 ए के साथ-साथ धारा 152 ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), धारा 153 बी (पूर्वाग्रही आरोप) के तहत उसके खिलाफ UAPA कानून के तहतय आरोप तय करने का फैसला किया था। 

इमाम ने कहा- कोर्ट ने भाषण सही तरह से नहीं पढ़ा
इमाम की ओर से तर्क दिया गया कि कोर्ट भाषणों और पैम्फलेट को उनके सही परिप्रेक्ष्य और संपूर्णता में पढ़ने में विफल रहा है। इसलिए, यह गलत तरीके से निष्कर्ष निकाला कि वे सांप्रदायिक भाषण थे और सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाते थे। यही नहीं उसने अपने भाषणों को दो वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला होने से इंकार किया। 

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