गिरनार के जंगल में मिली दुर्लभ प्रजाति की मकड़ी, 15वीं सदी के संत-कवि नरसिंह मेहता रखा गया नाम

गुजरात के जूनागढ़ स्थित 'भक्त कवि नरसिंह महेता यूनिवर्सिटी' की एक PHD की शोधकर्ता(researcher) छात्रा ने गिरनार वन्य जीव अभ्यारण्य(Girnar Wildlife Sanctuary) से एक दुर्लभ प्रजाति की मकड़ी खोजी है। इसका नाम 15वीं सदी के महान संत-कवि नरसिंह मेहता के नाम पर रखा गया है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 12, 2022 5:16 AM IST / Updated: Feb 12 2022, 11:11 AM IST

जूनागढ़, गुजरात. गुजरात के गिरनार वन्य जीव अभ्यारण्य जीव अभ्यारण्य(Girnar Wildlife Sanctuary) से एक दुर्लभ प्रजाति की मकड़ी खोजी गई है। इसका नाम 15वीं सदी के महान संत-कवि नरसिंह मेहता के नाम पर रखा गया है। इस मकड़ी की खोज संत के नाम पर जूनागढ़ में स्थापित 'भक्त कविनरसिंह महेता यूनिवर्सिटी' की एक PHD की शोधकर्ता(researcher) छात्रा ने की है। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. जतिन रावल ने न्यूज एजेंसी ANI को बताया कि यह मकड़ी विश्व सूची में एक और अतिरिक्त है, जिसमें वर्तमान में लगभग 49,000 प्रजातियां हैं।

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वैष्णव जन तो तेने..के लिए जाना जाता है
संत-कवि नरसिंह मेहता को  प्रसिद्ध कविता ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये’ के कारण भी घर-घर जाना जाता है। यह वही कविता है, जिसे महात्मा गांधी गाया करते थे। इसी कविता के कारण गांधीजी के जीवन में बड़ा बदलाव आया था। सुधारक कवि नरसिंह मेहता जूनागढ़ के रहने वाले थे। रावल ने कहा कि इसी वजह से  मकड़ी की इस प्रजाति का नाम कवि नरसिंह मेहता के नाम पर रखा है।

बता दें कि एक शोध पत्र, जिसमें नई मकड़ी प्रजातियों का वर्णन किया गया था, हाल में “एक नई प्रजाति और भारत से 1820 में पल्पिमानस ड्यूफोर में एक नया संयोजन (अरानेई: पल्पिमानिडे)” शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। इसे रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर, भारथिअर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर(Research and Development Centre, Bharathiar University, Coimbatore) के ध्रुव प्रजापति, गीर फाउंडेशन की नम्रता हुन, गांधीनगर) और जतिन रावल ने लिखा था। पेपर आर्थ्रोपोडा सिलेक्टा पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

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415 प्रजातियों की मकड़ियां मिलीं
उल्लेखनीय है कि 2017 में प्रकाशित ‘स्पाइडर्स ऑफ गुजरात: ए प्रिलिमिनरी चेकलिस्ट’ नामक एक शोध पत्र के अनुसार, अब तक 169 प्रजातियों के तहत 415 मकड़ी प्रजातियां और गुजरात से 40 परिवारों की जानकारी सामने आई है। कुल 39 प्रजातियां गुजरात के लिए स्थानिक यानी लोकल हैं। यानी ये प्रजातियां सिर्फ गुजरात में मिलती हैं। जबकि 150 प्रजातियां भारत में और 26 दक्षिण एशिया में पाई जाती हैं।

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दुनिया में मकड़ियों की दुनिया
मकड़ी आर्थ्रोपोडा संघ का एक प्राणी है। यह एक प्रकार का कीट है। इसका शरीर शिरोवक्ष (सिफेलोथोरेक्स) और उदर में बंटा रहता है।   पृथ्वी पर सन्धिपाद की लगभग दो तिहाई जातियां हैं, इसमें कीट भी सम्मिलित हैं। इनका शरीर सिर, वक्ष और उदर में बंटा रहता है। इनके शरीर के चारों ओर एक खोल जैसी रचना मिलती है। इनकी लगभग 40 हजार प्रजातियों की पहचान हो चुकी है। इनके पेट में एक थैली होती है, जिससे एक चिपचिपा पदार्थ निकलता है, जिससे यह जाल बुनता है। यह मांसाहारी जन्तु है। जाल में कीड़े-मकोड़ों को फंसाकर खाता है।

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