दिवाली धमाका: बैन और सख्ती के बावजूद देशवासियों ने फोड़ डाले 6,000 करोड़ के पटाखे, पराली की आग में घिरी AAP

दिल्ली में पटाखों पर 100% बैन और कई राज्यों में सख्त कायदे-कानून के बावजूद देश में पिछले 2 साल की तुलना में पटाखा इंडस्ट्री(Fireworks industry) ने रिकॉर्ड बिक्री की है। दिल्ली को छोड़कर पूरे देश में दीपावली के खुदरा पटाखों की बिक्री करीब 6,000 करोड़ रुपए की हुई है।

Amitabh Budholiya | Published : Oct 30, 2022 5:07 AM IST / Updated: Oct 30 2022, 11:44 AM IST

शिवकाशी(तमिलनाडु). दिल्ली में पटाखों पर 100% बैन और कई राज्यों में सख्त कायदे-कानून के बावजूद देश में पिछले 2 साल की तुलना में पटाखा इंडस्ट्री(Fireworks industry) ने रिकॉर्ड बिक्री की है। दिल्ली को छोड़कर पूरे देश में दीपावली के खुदरा पटाखों की बिक्री(Deepavali retail firecracker sales across the nation) करीब 6,000 करोड़ रुपए की हुई है, जो यहां के पटाखा उद्योग के लिए एक राहतभरी खबर है। व्यापारियों को खुशी है कि इस बार कोई माल नहीं बचा। यानी सब बिक गया। पढ़िए पूरी डिटेल्स...

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कोविड-19 की तुलना में बेहतर रहा मार्केट 
फायरवर्क्स इंडस्ट्री से जुड़े एक कर्मचारी नेता ने कहा कि हालांकि इस साल की बिक्री पिछले दो लॉकडाउन वाले COVID-19 वर्षों की तुलना में अधिक है, लेकिन कुल कमाई के लिहाज से 2022 का कारोबार कमोबेश 2016 और 2019 के करीब ही रहा। तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड अमोर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TANFAMA) के अध्यक्ष गणेशन पंजुराजन ने कहा कि कोरोनावायरस महामारी के प्रकोप के बाद कच्चे माल की कीमत 50 प्रतिशत तक बढ़ गई और आज तक इसमें गिरावट नहीं आई है। उन्होंने मीडिया से कहा, "स्वाभाविक रूप से इसके परिणामस्वरूप उत्पाद की कीमतों में 30 से 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्तमान 6,000 करोड़ रुपये का खुदरा कारोबार केवल एक बॉलपार्क फिगर(चीजें महंगी होने से कमाई का ग्राफ बढ़ा) है और यह मूल्य वृद्धि जैसे पहलुओं को दर्शाता है।"

उन्होंने कहा कि ऐसे सभी फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान वर्ष का कारोबार कमोबेश मूल्य के मामले में 2016 से 2019 तक दीपावली सीजन के दौरान देखे गए कारोबार के समान है। तब की अवधि के दौरान प्रत्येक वर्ष की बिक्री लगभग 4,000 रुपये से 5,000 करोड़ रुपये के बीच थी। TANFAMA प्रमुख ने कहा कि 2020 और 2021 में, इन दो वर्षों में से प्रत्येक के लिए कुल खुदरा बिक्री क्रमशः पूर्ववर्ती वर्षों के औसत से कम थी। बिना बिके सामान के बारे में पूछे जाने पर, सोनी फायरवर्क्स के निदेशक गणेशन ने कहा, "हममें से किसी के पास कोई इन्वेंट्री नहीं बची है।" यानी पटाखे नहीं बचे हैं।

महाराष्ट्र में सबसे अधिक माल बिका
यह पूछे जाने पर कि किस राज्य ने तुलनात्मक रूप से अधिक स्टॉक उठाया? उन्होंने कहा कि टॉपर महाराष्ट्र था, उसके बाद उत्तर प्रदेश-बिहार क्षेत्र और गुजरात थे। "निश्चित रूप से, मुंबई और शेष महाराष्ट्र ने कुल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा खरीदा।" 

कुल मिलाकर, उन्होंने कहा कि देश भर में लोग दो COVID वर्षों के अंतराल के बाद पटाखों पर खर्च करने के लिए आगे आए। गणेशन ने कहा, "हमने उन सभी ग्रीन पटाखों का निर्माण किया था, जो सुप्रीम कोर्ट और सरकारी अधिकारियों के दिशानिर्देशों के अनुसार थे।"

चूंकि बेरियम नाइट्रेट के उपयोग की अनुमति नहीं है, इसलिए उद्योग ने अन्य अनुमत वस्तुओं जैसे स्ट्रोंटियम नाइट्रेट और अन्य ऑक्सीकरण एजेंटों पर स्विच किया है। "हालांकि, स्ट्रोंटियम जैसी चीजों के संबंध में हमारे पास एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इनकी बहुत कम शेल्फ-लाइफ होती है। यानी जल्द खराब हो जाते हैं। वहीं, इन्हें बनाने में भी अधिक श्रम लगता है।

शिवकाशी है पटाखा हब
तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले का शिवकाशी क्षेत्र आतिशबाजी उद्योग का राष्ट्रीय केंद्र है। अय्यन फायरवर्क्स के प्रबंध निदेशक जी अबीरुबेन ने कहा कि इस साल बिक्री तेज थी और उत्पादन और बिक्री आउट-एंड-आउट हरे पटाखे थे, जिसके कारण प्रदूषण फैलाने वाले उत्सर्जन में 35 प्रतिशत की कमी आई है। लोगों की पसंद और चलन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि लोग 'शॉट्स' किस्म की आतिशबाजी की ओर बढ़ रहे हैं, जो चमचमाते रंगों और रोमांचकारी ध्वनियों के शानदार प्रदर्शन के साथ आसमान को रोशन करती हैं। लोग आतिशबाजी की हल्की-सी आवाज वाली किस्म को चुन रहे हैं। फूलदान, जमीन चक्र, पटाखे और रॉकेट अन्य ऐसी किस्मों के पटाखे रहे, जिनकी अच्छी बिक्री देखी गई। इन्वेंट्री के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि अच्छी बिक्री को देखते हुए उनकी इकाई में कोई स्टॉक नहीं है। प्रतिबंध लगाने वाली दिल्ली को छोड़कर लगभग हर जगह से अच्छी मांग थी।

अब यह भी जानिए
वर्षों पहले ज्वाइंट क्रैकर्स की अनुमानित हिस्सेदारी 1,000 करोड़ रुपये से अधिक थी। 2018 में बेरियम नाइट्रेट के उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बाद इसका उत्पादन रोक दिया गया था। बता दें कि ज्वाइंट-क्रैकर्स 'WALA' क्रैकर्स के नाम से मशहूर हैं। हालांकि कई तरह के प्रतिबंध के बाद ज्वाइंट क्रैकर्स के प्रॉडक्शन में कमी आई है। अबीरुबेन के दादा अय्या नादर(Ayya Nadar) ग्रांडफादर कहलाते हैं, जिन्होंने लगभग एक सदी पहले शिवकाशी में पहली पटाखा प्रॉडक्शन यूनिट शुरू की थी। उद्योग के सूत्रों ने कहा कि ग्रे मार्केट की बिक्री की मात्रा का पता नहीं लगाया जा सकता है। क्योंकि पटाखों की वास्तविक कीमतें कई वजहों से घटती-बढ़ती रहती हैं। दरअसल, कई रिटेलर्स कम कीमतों पर पटाखे बेचकर और अधिक ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। यानी बिक्री बढ़ाकर स्टॉक जल्द खत्म कर लेते हैं। विरुधुनगर जिले में और उसके आसपास लगभग 8 लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका के लिए आतिशबाजी उद्योग पर निर्भर हैं। कहां-कहां था बैन या सख्ती, पढ़ने के लिए क्लिक करें

एयर पॉल्युशन को लेकर घिरी AAP सरकार
दिल्ली पर पटाखों पर बैन लगवाकर अरविंद केजरीवाल सरकार ने दावा किया था कि राजधानी में पॉल्युशन कम हुआ है, लेकिन हकीकत कुछ और है। एक लेखक साकेत(saket) ने एक अखबार की कटिंग twitter पर शेयर करके लिखा-AAP शासित पंजाब से कृषि आग(यानी पराली की आग) 33% अधिक अधिक यानी 10,214 तक पहुंच गई। कृपया मुझे बताएं कि क्या आपने देखा है कि इस पर भगवंत मान  और अरविंद केजरीवाल को ग्रिल(मतलब उन पर सवाल) किया जा रहा हो? क्या दिवाली से पहले यह कोई बड़ी डील नहीं थी?

बता दें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि आज सुबह 9.10 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 367 रहा। सीपीसीबी के आंकड़ों में कहा गया है कि दिल्ली के निगरानी स्टेशनों ने एनएसआईटी द्वारका में 411, जहांगीरपुरी 407, विवेक विहार 423, वजीरपुर 412 और आनंद विहार 468 के साथ एक्यूआई को गंभीर श्रेणी में दिखाया। शून्य से 50 के बीच एक्यूआई अच्छा, 51 और 100 संतोषजनक, 101 और 200 मध्यम, 201 और 300 खराब, 301 और 400 बहुत खराब, और 401 और 500 गंभीर माना जाता है।

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