ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा ने कहा कि ओलंपिक मूवमेंट से देश के हर बच्चे को लाभ लेना है। इससे एक बेहतर समाज का निर्माण करने में मदद मिलेगी।
नई दिल्ली। इंटरनेशनल डे ऑफ स्पोर्ट्स फॉर डेवलपमेंट एंड पीस (IDSDP) 6 अप्रैल को मनाया गया। इस अवसर पर IOC (International Olympic Committee) ने बताया कि कैसे एथलीट्स और ओलंपिक मूवमेंट से शांतिपूर्ण, स्वस्थ और समावेशी समाज के निर्माण में मदद मिल रही है।
इस अवसर पर ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra) अपने शूटिंग करियर के आखिरी इवेंट को याद कर भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि भारत के हर बच्चे को खेल और ओलंपिक मूवमेंट से लाभ मिलेगा। अभिनव बिंद्रा IOC एथलीट आयोग के सदस्य भी हैं। बिंद्रा ने कहा कि निशानेबाज के रूप में उनके करियर ने उन्हें आजीवन ओलंपिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध बनाया है। वह ओलंपिक मूल्य शिक्षा कार्यक्रम (ओवीईपी) की मदद से इसे भारत में स्कूली बच्चों के साथ शेयर कर रहे हैं।
अपनों से मिले प्यार ने हार पचाना आसान किया
अभिनव बिंद्रा ने कहा, "ओलंपिक गेम्स रियो 2016 में मेरे दो दशक के खेल करियर का अंत हुआ। मैं चौथे स्थान पर रहा था। मैं कांस्य पदक चूक गया था। इसके बाद भी प्रतिद्वंद्वी, टीम के साथी, कोच, दुनिया के सभी हिस्सों के लोगों ने मुझे धन्यवाद और करियर के लिए बधाई दी। मुझे जो सम्मान और प्यार मिला उसने चौथे स्थान पर रहने की नाकामी पचाना मेरे लिए आसान हुआ। मुझे तब एहसास हुआ कि आने वाले दिनों में मैं भले ही निशानेबाज नहीं रहूंगा, लेकिन खेल और ओलंपिक मूल्य मुझे कभी नहीं छोड़ेंगे। निष्पक्ष खेल, ईमानदारी और सत्यनिष्ठा, ये मूल्य दुनिया को हर किसी के लिए एक बेहतर जगह बना सकते हैं।"
ओवीईपी से मिल रहा 50 हजार बच्चों को लाभ
बिंद्रा ने कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक ओलंपियन होने के नाते आपको ओलंपिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होने की जरूरत है। आपको जिनती अधिक हो सके युवाओं की मदद करनी चाहिए ताकि वे अपनी प्रतिभा निखार सकें। इस मिशन को ध्यान में रखते हुए अभिनव बिंद्रा फाउंडेशन ने एक साल पहले आईओसी और ओडिशा सरकार के स्कूल और जन शिक्षा विभाग के साथ साझेदारी में भारत में ओवीईपी लॉन्च किया था। ओडिशा के 90 सरकारी स्कूलों के करीब 50,000 बच्चों को इसका लाभ मिल रहा है। इन स्कूलों में बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी 50 फीसदी बढ़ गई है। बच्चे अधिक संख्या में स्कूल आ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे पास लड़के आए थे। उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते थे कि लड़कियां इतना अच्छा खेल सकती हैं। एक मिक्स्ड जेंडर (टीम में लड़का-लड़की दोनों हो) इंटर-स्कूल ओवीईपी टूर्नामेंट आयोजित किया गया था। इसमें करीब 60 प्रतिशत टीम की कैप्टन लड़कियां थीं। ऐसा भारत में नहीं दिखता। ओवीईपी एक विकलांग छात्र को फुटबॉल मैदान में लेकर आया। आज वह अपने जिले का प्रतिनिधित्व करता है।
दुनिया वैसी ही होगी जैसी हम बनाएंगे
अभिनव बिंद्रा ने कहा, "आपको संदेह हो सकता है कि क्या ओडिशा में दिया जा रहा स्कूल खेल कार्यक्रम ओलंपिक से संबंधित हो सकता है। मेरा मानना है कि भारत में हर बच्चे को खेल और ओलंपिक आंदोलन से कुछ न कुछ हासिल करना है। खेल के माध्यम से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होगा। वे टीम वर्क, भाईचारा और साझेदारी के महत्व को सीख पाएंगे।" उन्होंने कहा कि ओलंपिक हमें सिखाती है कि कोई भी व्यक्ति इतना बड़ा नहीं होता कि ओलंपिक विलेज में फिट न हो सके और कोई इतना छोटा नहीं होता कि उसे मौका न दिया जाए। ओलंपिक हमेशा हमें दिखाते हैं कि हमारी दुनिया वैसी ही होगी जैसी हम उसे बनाएंगे।