यूपी में बुलडोजर के खिलाफ पूर्व न्यायाधीशों ने SC से की हस्तक्षेप की मांग, बोले-संविधान का बना दिया मजाक

सुप्रीम कोर्ट को संबोधित पत्र में कहा गया है कि ऐसे महत्वपूर्ण समय में न्यायपालिका की योग्यता की परीक्षा होती है। न्यायपालिका अतीत में लोगों के अधिकारों के संरक्षक के रूप में विशिष्ट रूप से उभरी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान कार्रवाई के तमाम उदाहरण हैं जिससे लोगों के मन में विश्वास पैदा हुआ है। 

नई दिल्ली। बीजेपी की सस्पेंडेड प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मुहम्मद पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद देश के तमाम हिस्सों में हिंसात्मक प्रदर्शन हो रहे हैं। यूपी सरकार द्वारा मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के घर ढहाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने संविधान का मजाक बनाए जाने का आरोप लगाया है। कई पूर्व जस्टिस व पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप का रिक्वेस्ट किया है।

यूपी प्रशासन कानून का मजाक बना रहा

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सुप्रीम कोर्ट के तीन पूर्व न्यायाधीश सहित 12 एक्स ब्यूरोक्रेट्स ने यूपी के एडमिनिस्ट्रेशन पर संविधान का मजाक बनाने का आरोप लगाया है। लेटर में अदालत से मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ राज्य के अधिकारियों द्वारा हिंसा और दमन के खिलाफ हस्तक्षेप की मांग की है। इन लोगों ने अदालत को बताया है कि कानून के शासन का मजाक बनाते हुए यूपी प्रशासन का प्रदर्शनकारियों के घरों को तोड़ा जाना गलत है, अदालत को स्वत: संज्ञान में लेना चाहिए। 

पत्र में लिखा है कि जिस समन्वित तरीके से पुलिस और विकास अधिकारियों ने कार्रवाई की है, वह स्पष्ट निष्कर्ष पर पहुंचा है कि विध्वंस सामूहिक अतिरिक्त न्यायिक दंड का एक रूप है। पत्र में कहा गया है कि पुलिस हिरासत में युवकों को लाठियों से पीटे जाने, प्रदर्शनकारियों के घरों को बिना किसी नोटिस गिराया जा रहा है। अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों को पुलिस द्वारा पीछा किया जा रहा है। उनके पीटे जाने के वीडियो सोशल मीडिया पर डाले जा रहे हैं। यह सारे सीन्स अंतरात्मा को हिला रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कथित बयानों में कार्रवाई को मंजूरी देने वाले बयान जो एक उदाहरण स्थापित करते हैं ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों को प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहित किया।

यह न्यायापालिका की योग्यता की परीक्षा...

सुप्रीम कोर्ट को संबोधित पत्र में कहा गया है कि ऐसे महत्वपूर्ण समय में न्यायपालिका की योग्यता की परीक्षा होती है। न्यायपालिका अतीत में लोगों के अधिकारों के संरक्षक के रूप में विशिष्ट रूप से उभरी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान कार्रवाई के तमाम उदाहरण हैं जिससे लोगों के मन में विश्वास पैदा हुआ है। लॉकडाउन के दौरान जब प्रवासी श्रमिकों को 2020 के दौरान घर चलने के लिए मजबूर किया गया था या पेगासस स्पाईवेयर का मामला है, हर बार न्यायापालिका नागरिकों के संरक्षके रूप में उभरा।

इन लोगों के हस्ताक्षर हैं पत्र पर...

14 जून को सुप्रीम कोर्ट को लिखे पत्र में हस्ताक्षरकर्ताओं में पूर्व न्यायमूर्ति एपी शाह, पूर्व न्यायाधीश बी सुदर्शन रेड्डी, वी गोपाल गौड़ा, न्यायमूर्ति के चंद्रू, न्यायमूर्ति मोहम्मद अनवर,पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, प्रशांत भूषण, इंदिरा जयसिंह, चंद्र उदय सिंह, श्रीराम पंचू और आनंद ग्रोवर शामिल हैं।

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