Sri Lanka Explainer: डिप्लोमेट वेणु राजामणि ने कहा- श्रीलंका में पावर वैक्यूम भरना जरूरी, भारत ने भरपूर मदद...

इस वक्त श्रीलंका (Sri Lanka) सबसे बुरे राजनैतिक और आर्थिक हालातों का सामना कर रहा है। हाल ही में प्रेसीडेंट गोटाबाया राजपक्षे (Gotabaya Rajapakshe) ने देश छोड़ दिया और उनकी जगह रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Vikramsinghe) कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए हैं।

Manoj Kumar | Published : Jul 17, 2022 2:19 PM IST / Updated: Jul 18 2022, 09:58 AM IST

कोचीन. इस वक्त श्रीलंका सबसे बुरे राजनैतिक और आर्थिक हालातों का सामना कर रहा है। हाल ही में प्रेसीडेंट गोटाबाया राजपक्षे ने देश छोड़ दिया और उनकी जगह रानिल विक्रमसिंघे कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए हैं। एशियानेट न्यूज के संवाद कार्यक्रम में हमारे साथ राजनयिक वेणु राजामणि हैं, जिन्हें दक्षिण-एशिया की इन डेप्थ नालेज है। वे श्रीलंका की वास्तविक हालात की अच्छी जानकारी रखते हैं। एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान वेणु राजामणि ने श्रीलंका के हालात पर खुलकर बात की। उन्होंने भारत में चल रही शंकाओं को भी दूर किया। जानें वेणु राजामणि ने क्या-क्या कहा...

श्रीलंका में क्या होना चाहिए
राजनयिक वेणु राजामणि ने कहा कि जहां तक श्रीलंका की वर्तमान स्थिति की बात है तो वहां बड़ी चुनौतियां हैं। सबसे पहली और बड़ी चुनौती है कि वहां एक स्थिर सरकार बने। अभी वहां पर राजनैतिक शून्य जैसे हालात हैं। आप जानते ही हैं कि गोटाबाया राजपक्षे देश छोड़ चुके हैं और रानिल विक्रमसिंघे पर भी इस्तीफा देने का जबरदस्त दबाव है। विरोध प्रदर्शन करने वालों की मांग है कि दोनों नेता पहले इस्तीफा दें। अध्यक्ष ने कहा कि नए राष्ट्रपति का चुनाव संसद द्वारा किया जाएगा। अभी हम यह देखना चाहते हैं कि कौन नेता उभरकर सामने आता है। अभी तो चुने गए लोग अपने बीच से एक प्रेसीडेंट का चयन करेंगे जबकि वास्तविक हालात तब सुधरेंगे जब लोकतांत्रिक तरीके से जनता सभी सांसदों का चुनाव करेगी।

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क्यों हो रहा श्रीलंका में विरोध-प्रदर्शन
वेणु राजामणि ने कहा कि अगर हम जनता के विरोध को देखते हैं तो पता चलता है कि यह विरोध प्रदर्शन किसी एक पार्टी के खिलाफ नहीं है बल्कि यह पूरे पालिटिकल सिस्टम, सभी पालिटिकल पार्टीज के खिलाफ है। इस तरह का जबरदस्त प्रदर्शन पहले कभी नहीं देखा गया था। अब यह देखना है कि अंतरिम सरकार किस तरह की बनती है। यदि रानिल विक्रमसिंघे को फिर से सभी सांसदों ने चुना तो मुझे लगता है यह विरोध प्रदर्शन जारी रह सकता है। इस वक्त सभी यह चाहते हैं कि एक अंतरिम सरकार बने फिर हम आईएमएफ से बातचीत करें, दुनिया के अन्य देशों से बात करें ताकि श्रीलंका को बेलआउट पैकेज मिल सके और स्थिति में सुधार हो।

आईएमएफ है एकमात्र विकल्प
डिप्लोमेट वेणु राजामणि ने कहा कि जहां तक आईएमएफ की बात है तो उनके पास प्रोफेशनल्स की पूरी टीम है। वे बेहद व्यवस्थित तरीके से काम करते हैं। उनके पास वर्ल्ड इकानमी के किसी भी संकट से निबटने के लिए बेहतरीन मैनेजमेंट टीम है। उनका काम वर्ल्ड बैंक से बिल्कुल जुदा है। वर्ल्ड बैंक देशों की मदद दीर्घकालीन योजनाओं के लिए करता है। जबकि आईएमएफ इसी तरह के संकट से निबटने के लिए बना है। यह दुनिया भर में इस तरह के संकट को दूर करने के लिए काम करता है। भारत में भी आईएमएफ ने काम किया है। 1995 से लेकर अब तक श्रीलंका 13 बार आईएमएफ की मदद ले चुका है। यह पहली बार नहीं है वे आईएमएफ से मदद चाहते हैं। 

कैसे बदल सकता है श्रीलंका
वेणु राजामणि ने कहा कि आईएमएफ के ट्रेंड प्रोफेशनल आएंगे और यहां के हालात को देखते हुए पूंजी लगाएंगे। फिर वे कुछ स्टेप्स बताएंगे जिन्हें धीरे-धीरे फालो करना होगा। उसी हिसाब से वे थोड़ा-थोड़ा धन मुहैया कराएंगे। ऐसा नहीं है कि वे एक बार में सारी पूंजी लगा देंगे और इकोनामी में सुधार हो जाएगा। वे बहुत करीब से हालात को मानिटर करेंगे और काम करेंगे ताकि देश में स्थिरता लाई जा सके। आईएमएफ यहां के वित्तीय घाटे, कर्ज और विदेशी मुद्रा भंडार के धीरे-धीरे सही करने का काम करेंगे। जरूरत इस बात की होगी कि सरकार उन सुधारों को लागू करे।

भारत,चीन और श्रीलंका
वेणु राजामणि ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि वर्तमान हालात के समय आईएमएफ के अलावा भी कोई विकल्प है। चीन भी ढेर सारी पूंजी लेकर आया था कि वे संकट से उबार लेंगे लेकिन वैसा नहीं हो पाया। भारत ने भी पिछले 1 साल में काफी मदद की है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो श्रीलंका के सबसे करीब है और मदद कर रहा है। वहां जो कुछ भी हो रहा है, उसका असर यहां भी पड़ेगा। हम यह चाहते हैं कि श्रीलंका में स्थायित्व हो। श्रीलंका के लोगों के साथ भारत के पारंपरिक, सांस्कृतिक संबंध हैं और काफी गहरे हैं। भारत ने जितना भी हो सका, मदद की है लेकिन समस्या काफी बड़ी है। वहीं चीन ने भी कोई खास उत्साह नहीं दिखाया है। उनका कहना है कि वे भी इंटरनेशनल कम्युनिटी और आईएमएफ के साथ आएंगे और जो भी हो सकेगा मदद करेंगे। इसलिए श्रीलंका के लिए आईएमएफ ही एकमात्र संस्था है जो सोल्यूशन दे सकता है।

श्रीलंका संकट के लिए चीन जिम्मेदार नहीं
वेणु ने कहा कि जहां तक भारत की बात है तो चीन के प्रति हमारा नजरिया कुछ इसी तरह का है। हम चीन को बहुत नकारात्मक तरीके से देखते हैं और कई मामलों में डरते भी हैं। चूंकि श्रीलंका हमारे पड़ोस में तो हम कभी यह नहीं चाहेंगे कि वहां चीन का प्रभाव ज्यादा बढ़े लेकिन उसी समय चीन को लोन देने से भी नहीं रोक सकते। हां हम यही चाहते हैं कि श्रीलंका की हालत ऐसी न हो कि वह पूरी तरह से चीन के हाथों में चला जाए। लेकिन यह मानना होगा मौजूदा हालात में चीन की उतनी भूमिका नहीं है, जितनी बताई जा रही है। चीन ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि वे आईएमएफ के साथ ही श्रीलंका की मदद करेंगे और उनकी कोई मंशा नहीं है कि वे अकेले यहां के हालात को संभाल लेंगे।

भारत नहीं होगा ज्यादा प्रभावित
वेणु राजामणि ने कहा कि दक्षिण एशिया से ज्यादातर देश तेल आयातक देश हैं। यूक्रेन युद्ध की वजह से सभी देश प्रभावित हुए हैं। हमारे पास तो भरपूर खाद्यान्न है। हम दुनिया के कई देशों को खाद्यान्न निर्यात भी कर रहे हैं लेकिन हमारे कई पड़ोसी ऐसे भी हैं जिन्हें खाद्यान्न का आयात करना पड़ता है। जिसकी वजह से खाद्यान्न की कीमतें बढ़ रही हैं। साथ ही अन्य आइटम के दाम भी बढ़े हैं, इनका असर आम जनता पर पड़ता है। हम अलग दुनिया में रहते हैं और हमारा वातावरण भी दूसरे तरह का है। कई लोग साइलेंट क्राइसिस की बात करते हैं। कई लोग यूक्रेन युद्ध के बाद से ग्लोबल रेसेशन की बात कर रहे हैं।

बाजार से निकाला रुपया
एस ने इंट्रेस्ट रेट बढ़ा दिया है। जिसकी वजह से बाजार से पूंजी निकाली गई है। डालर की कीमत बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है। बाजार से जब पूंजी निकाली जाती है तो इस तरह के हालात दिखने लगते हैं। जैसे-जैसे हमारा रेवन्यू बढ़ेगा,वैसे ही आधारभूत ढांचे का भी विकास होगा। इस बैलेंस को बनाए रखना देशों के लिए हमेशा मुश्किल होता है। हम दुनिया के कई देशों से बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि हमारे पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है। हालांकि इसके बावजूद हमें काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। अपने खर्च को कम करना जरूरी है। यह हमेशा फायदेमंद होता है कि आप अपना खर्च करें, बजाय कि लोन लेकर काम चलाएं। हमें श्रीलंका जैसे हालात से डरने की जरूरत नहीं है लेकिन अर्थव्यस्था को चलाने के लिए सावधानी की जरूरत है।

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