Arun Yogiraj Interview: चुनौती-स्ट्रैटजी और श्रीराम का आशीर्वाद, 2 महीने ब्लैंक था और फिर...

22 जनवरी को अयोध्या में बड़े धूमधाम से रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। मूर्ति को मैसूरू के 41 वर्षीय मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। हाल ही में एशियानेट न्यूज (Asianet News) के राजेश कालरा ने अरुण योगीराज से बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश।

Arun Yogiraj Exclusive Interview: 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में बड़े धूमधाम से भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। रामलला की मूर्ति को मैसूरू, कर्नाटक के 41 वर्षीय मूर्तिकार अरुण योगीराज ने तराशा है। हाल ही में एशियानेट न्यूज (Asianet News) के राजेश कालरा ने अरुण योगीराज से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने बताया कि रामलला की मूर्ति बनाने में उनके सामने क्या-क्या चुनौतियां आईं और कैसे उन्होंने इनसे पार पाते हुए 500 साल से प्रतीक्षा कर रहे राष्ट्र का सपना पूरा किया। पेश हैं अरुण योगीराज के साथ बातचीत के प्रमुख अंश।

सवाल- आप उन तीन लोगों में से एक हैं, जो रामलला की मूर्ति बनाने के लिए चुने गए। जब आपको पता चला कि आप इसके लिए सिलेक्ट हुए हैं, तो कैसा महसूस हुआ?

Latest Videos

जवाब- हम सभी जानते हैं कि हम पिछले 500 सालों से इसका इंतजार कर रहे थे। मेरे पिता और दादाजी भी भगवान राम की मूर्ति के लिए काम करना चाहते थे। जब मुझे पता चला कि मैं उन तीन लोगों में शामिल हूं, जिन्हें रामलला की मूर्ति बनाने के लिए चुना गया है तो वो मेरी जिंदगी का सबसे खुशनसीब दिन था। मेरा परिवार 250 साल से मूर्तिकला का काम कर रहा है और भगवान ने हमें आशीर्वाद के रूप में ये अवसर दिया, इसके लिए मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं।

सवाल- उस पल के बारे में बताएं जब आपको पता चला कि आप उन तीन लोगों में से एक हैं?

जवाब- हम तीनों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि देश रामलला के दर्शन का इंतजार कर रहा था। दिक्कत ये थी कि हमारे पास हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई रामलला की कोई पुरानी इमेज नहीं थी। साथ ही 5 साल के बाल रूप में रामलला को बनाने के संबंध में भी कुछ दिशा-निर्देश दिए गए थे। हमारे पास एक और चुनौती ये थी कि पैर की उंगलियों से लेकर माथे तक, सभी चीजें 51 इंच में ही बनानी थी। इसके बाद हमने भगवान राम से जुड़ी पुरानी चीजें खंगालना शुरू की। 5 साल के बालक के फीचर्स कैसे होंगे। किसी बच्चे के मुस्कुराने पर चेहरे में क्या बदलाव आते हैं, ये सब समझना होता था। 

सवाल - क्या आपको इस दौरान कोई नर्वसनेस महसूस हुई?

जवाब- शुरुआती दो महीने तक हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। फिर मैंने फैसला किया कि अब वही करूंगा, जो मैं जानता हूं। इसके बाद मैंने पीछे की तरफ आर्च बनाने का फैसला किया, जो एक तरह से सपोर्ट सिस्टम के रूम में काम करता है और इससे मूर्ति का जीवनकाल बढ़ता है। मैंने ये सब करने के बाद कमेटी से बात की और कहा कि मैंने मूर्ति के पीछे का आर्च बना लिया है, लेकिन रामलला के बारे में तय नहीं कर पा रहा हूं। फिर मैंने 3 से 9 साल के बच्चों के बारे में स्टडी की तो उस दौरान शरीर रचना विज्ञान के बारे में पढ़ा। 5 साल के बालक के फीचर्स के साथ ही मुझे मूर्ति को शिल्पशास्त्र के मुताबिक जीवंत बनाना था। हम इसे 'उत्तम पंचतड़ा' कहते हैं। हमें रामलला की उस मूर्ति को गढ़ना था, जो ज्यामितीय माप के साथ ही प्रेम और कौशल का अद्भुत नमूना हो। 7 महीने तक मैं हर पल इसी चिंतन में रहा कि मुझे वो चीज बनानी है, जो पूरे राष्ट्र को जोड़ेगी।

सवाल - क्या आप जानते हैं कि आपके साथ मूर्ति बनाने वाले बाकी 2 लोग कौन हैं?

जवाब - हां, मैं जीएल भट्ट सर को जानता हूं, क्योंकि वो भी कर्नाटक से हैं। लेकिन मैं सत्यनारायण पांडे के बारे में नहीं जानता। हम तीनों को एक ही जगह पर ठहराया गया। लेकिन हमने फैसला किया था मूर्ति के बारे में एक-दूसरे से बातचीत नहीं करेंगे, क्योंकि हमें राष्ट्र को सबसे बेहतर, अलग, वर्सेटाइल और यूनीक चीज देनी थी। हम तीनों दुनियाभर की बातें करते थे, लेकिन मूर्ति को लेकर कोई चर्चा नहीं होती थी। तीनों साथ रहते थे। नाश्ता, लंच सब साथ होता था। लेकिन हमारी कार्यशाला एक-दूसरे से 500 मीटर दूर थी। काम के दौरान कभी न तो एक-दूसरे को देखते थे और ना ही मिलते थे।

सवाल - काम के दौरान आपका डेली रुटीन क्या होता था?

जवाब - मैं एक एथलीट भी हूं, तो सुबह सबसे पहले मैं 1 घंटे वर्कआउट करता था। इस तरह मैं खुद को फिजिकली काम के लिए तैयार करता था। मेरा ये रुटीन 25 साल से इसी तरह चल रहा है। मुझे काम के दौरान योगा सीखने का मौका मिला। शुरुआत के तीन महीने मैंने योगा सीखा। इसके बाद मैं पूजा करता था और फिर पत्थर के साथ अपना 12 घंटे का समय बिताता और बातचीत करता। ये पिछले 25 साल से मेरे डेली रुटीन का हिस्सा है। मैं कोशिश करता हूं कि कम से कम 10-12 घंटे पत्थरों से बात करूं। अगर इससे समय बचता तो मैं शाम को वर्कआउट करता था।

सवाल- रामलला की मूर्ति बनाने के लिए आपको ट्रस्ट से कुछ गाइडलाइंस मिलीं, जैसे मूर्ति 51 इंच और 5 वर्षीय बालक की होगी। इस दौरान आपके सामने सबसे बड़ा चैलेंज क्या था?

जवाब- हमारे लिए सबसे बड़ा चैलेंज 5 साल के रामलला की मूर्ति बनाना था, क्योंकि हमें जिस बालरूप को तराशना था, उसके भीतर रामलला को जीवंत करना था। हमारे सामने 5 साल के बालक के भीतर राम ढूंढने की चुनौती थी। साथ ही एक चैलेंज ये भी था कि मूर्ति बहुत ज्यादा यथार्थवादी भी न हो। मूर्ति ऐसी हो कि लोग उसमें रामलला को ढूंढ सकें। एक तरह से रामलला की मूर्ति बनाना किसी 5 साल के बालक की प्रतिमा नहीं, बल्कि सम्मान और गरिमा का प्रश्न था, इसलिए ये काफी चुनौतीपूर्ण था।

सवाल- रामलला की मूर्ति बनाने के लिए आपने क्या विशेष चीजें कीं?

जवाब- शिल्पशास्त्र में 700 साल पहले एक प्रथा थी, जिसे 'किलपंचरचने' कहते हैं। इसमें सुबह-शाम मूर्ति की पूजा की जाती थी और मूर्तिकार एक तरह से इसके लिए वचनबद्ध था कि वो इसके अलावा कोई दूसरा काम नहीं करेगा। तो इस तरह जब मुझे, रामलला की मूर्ति बनाने का काम मिला तो मैंने भी अगले 9 महीने तक अपनी सारी कॅमर्शियल एक्टिविटीज बंद कर दी। मैंने मूर्ति के अलावा कोई ऑर्डर नहीं लिया। मैंने शिल्पशास्त्र के साथ ही शरीर रचना विज्ञान की भी स्टडी की। मूर्ति बनाने का काम शुरू करने से पहले मैंने पूरे भारत से चीजों को इकट्ठा किया और हर दिन 1000 से ज्यादा तस्वीरें सेव करता था। सोने से पहले मैं रोज उन तस्वीरों को देखता था, ताकि अगले दिन काम से पहले खुद को तैयार कर सकूं। 

सवाल - राम मंदिर ट्रस्ट से जुड़े वे कौन लोग थे, जो आपके कामकाज को देखने नियमित रूप से आते थे?

जवाब - चंपत राय जी नियमित रूप से आते थे और हमारे काम के बारे में पूछते थे। इसके अलावा नृपेन्द्र मिश्रा जी भी स्टूडियो में आते थे और काम की जानकारी लेते थे। वे अक्सर रामलला के बालक रूप और मूर्ति की लंबाई को लेकर सवाल पूछते थे। चंपत जी बेहद शांत रहते थे और वो हमारी मेंटल हेल्थ को लेकर भी फिक्र करते थे। इसके साथ ही वो इस बात का ध्यान रखते थे कि सभी आर्टिस्ट कम्फर्टेबल हैं या नहीं। उन्होंने हमें काम करने की पूरी आजादी दी।

सवाल - तो इसमें आपको व्यक्तिगत रूप से किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?

जवाब - रामलला की मूर्ति बनाने के लिए मेरा सिलेक्शन अप्रैल में हुआ था और मैंने काम जून से शुरू किया। काम शुरू करने के पहले लिखित में कई इंस्ट्रक्शन दिए गए। इस तरह मैंने अपना काम शुरू किया और करीब-करीब 70% पूरा भी कर लिया। इसके बाद मेरे पास नृपेन्द्र मिश्रा जी का फोन आया और उन्होंने मुझे तत्काल दिल्ली बुलाया। उन्होंने कहा कि एक इश्यू है और वो ये कि पत्थर की रिपोर्ट निगेटिव आई है। हर एक पत्थर को 5 से 8 तरह के टेस्ट से गुजरना पड़ता है। तो इस तरह नृपेन्द्र मिश्रा जी ने मुझसे कहा कि 8 में से 1 रिपोर्ट निगेटिव आई है, इसलिए अब नए सिरे से बनाओ। ये बात मुझे अगस्त के आखिर में पता चली और मैंने सितंबर से नई मूर्ति पर दोबारा काम शुरू किया।

सवाल- फाइनली जब रिजल्ट आया तो उसमें आपके द्वारा बनाई मूर्ति सिलेक्ट हो गई। ये दिसंबर महीने के आखिर की बात है। आपको ये खबर कैसे पता चली?

जवाब - मेरे पास 28 दिसंबर को फोन आया और कहा गया कि सभी ट्रस्टी आ रहे हैं और कमेटी मेंबर के सामने आपके काम को दिखाना है। इसके बाद हमारे सामने वो मूर्तियां थीं, जिन्हें पीले रंग के कपड़े से ढंका गया था। थोड़ी देर बाद मैंने जैसे ही मूर्ति में लगे कपड़े को हटाया तो वहां मौजूद सभी ट्रस्टी हाथ जोड़कर खड़े हो गए। मानों रामलला ने स्वयं सबकुछ कह दिया। फिर उसी रात मेरे पास फोन आया तो चंपत राय जी ने मुझसे कहा- अभी मैसूर जाने का फैसला टाल दो, अयोध्या में ही रुको। मैं अब भी श्योर नहीं था कि मेरी बनाई मूर्ति सिलेक्ट हो चुकी है। क्योंकि उन्होंने ये नहीं कहा था कि आपकी बनाई मूर्ति सिलेक्ट हो गई है। 

पूरा इंटरव्यू यहां देखें…

Read more Articles on
Share this article
click me!

Latest Videos

Mahakumbh 2025: महाकुंभ में तैयार हो रही डोम सिटी की पहली झलक आई सामने #Shorts
सचिन तेंदुलकर ने बॉलिंग करती लड़की का वीडियो शेयर किया, बताया भविष्य का जहीर खान #shorts
कौन है 12 साल की सुशीला, सचिन तेंदुलकर ने बताया भविष्य का जहीर खान, मंत्री भी कर रहे सलाम
जयपुर अग्निकांड: एक दिन बाद भी नहीं थमा मौत का सिलसिला, मुर्दाघर में लग रही भीड़
The Order of Mubarak al Kabeer: कुवैत में बजा भारत का डंका, PM मोदी को मिला सबसे बड़ा सम्मान #Shorts