Exclusive Interview: यूनिवर्स में कहां है आर्गेनिक कंटेंट, किसान कैसे बचाएंगे मिट्टी, सद्गुरू ने दिए सटीक जवाब

सद्गुरू (Sadhguru) ने मिट्टी बचाने के लिए दुनिया भर की यात्रा की। 100 दिनों तक उन्होंने सेव स्वायल का संदेश लेकर दुनियाभर में पहुंचे, जहां लोगों ने खूब उत्साह दिखाया।
 

Manoj Kumar | Published : Jul 3, 2022 8:09 AM IST / Updated: Jul 03 2022, 01:51 PM IST

नई दिल्ली. सद्गुरू ने 100 दिनों की मिट्टी बचाने (Save soil) की यात्रा का पहला पड़ाव हाल में में पूरा किया है। सद्गुरू जिन्हें दुनिया भर मे लोग जानते हैं। वे पर्यावरण के लिए लगातार काम करते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने ईशा फाउंडेशन के माध्यम से सेव स्वायल यात्रा निकाली। 100 दिन की इस यात्रा में सद्गुरू ने यूपोरियन देशों के साथ सेंट्र्ल एशिया, मिडिल इस्ट के कई देशों की यात्रा की। मिट्टी बचाने के अभियान के जनक सद्गुरू हमारे साथ हैं। एशियानेट न्यूज के अनूप बालचंद्रन से हुई सद्गुरू की बातचीत के मुख्य अंश...

कैसा रहा दुनिया भर का रिस्पांस
मिट्टी को बचाने के विश्वव्यापी अभियान सफलतापूर्वक पड़ाव तक पहुंचा। यात्रा के अनुभव के बारे में सद्गुरू ने बताया कि यह जर्नी बहुत ही सफल रही क्योंकि दुनियाभर के लोगों ने इसमें रूचि दिखाई। पूरे वर्ल्ड के लोगों ने शानदार रिस्पांस दिया है। दुनिया के 74 देशों ने मिट्टी बचाने की पालिसी बनाने की घोषणा की है। मिट्टी बचाने के लिए हमने ये पूरा हैंडबुक तैयार किया है। ऐसा ही हमने दुनिया के 193 देशों के साथ भी शेयर किया है। हम हर देश के हिसाब से, वहां कि मिट्टी, इकोनामी और एग्रीकल्चर के हिसाब से पालिसी बनाई है। अगर आप विज्ञान की भी बात करें तो कुछ रातों में ही एग्रीकल्चरल कंडीशन नहीं बदल सकते। इसी तरह हमने 193 यूनिक डाक्यूमेंट तैयार किए हैं। इनमें से 74 देशों ने हमारी पालिसी को स्वीकार किया है। बाकी के देश भी इसका परीक्षण कर रहे हैं और जल्द ही इसे अपनाने पर सहमति देंगे। 

अरब कंट्रीज में ज्यादा उत्साह
जहां तक यात्रा का सवाल है तो हमने मार्च में यह जर्नी लंदन से शुरू की थी। उस समय बहुत ज्यादा ठंड थी। कई जगहों पर गए जहां ज्यादा धूप मिली। इसके बाद हमें सेंट्रल एशिया पहुंचे। वहां भी आश्चर्यजनक रिस्पांस मिला। कोई भी देश ऐसा नहीं मिला, जहां हमें किसी तरह की समस्या हुई हो। हम चाहे शहरी एरिया में पहुंचे या ग्रामीण एरिया में सभी जगह हमें लोगों का खूब समर्थन मिला। हम जहां भी पहुंचते सबसे बड़ी जगह को बुक करते थे लेकिन फिर भी लोगों की संख्या उससे कहीं ज्यादा हो जाती थी। सभी देशों की सरकारों ने भी हमारी मदद की। हमने कई स्टेट हेड से बात की, मिले। यह सिर्फ यूरोप में नहीं हो सका क्योंकि वहां युद्ध चल रहा है और रिफ्यूजी समस्या है। हमने कई देशों के कृषि मंत्रियों से मुलाकात की, कई पर्यावरण मंत्रियों से भी मिले और मिट्टी बचाने के डाक्यूमेंट सौंपे। सभी का पाजिटिव रिस्पांस रहा। मिडिल ईस्ट में खासकर अरब कंट्रीज में इसे लेकर ज्यादा उत्साह दिखा और लगभग सभी खाड़ी देशों ने हमारे साथ पालिसी पर सहमति जताई। 

कितने लोगों तक पहुंचा मैसेज
यूएई में हमें सबसे ज्यादा रिस्पांस मिला। भारतीय लोग भी हैं वहां लेकिन वहां की सरकार, वहां की रायल फैमिली सभी ने मिट्टी बचाने के इस अभियान को बेहद संजीदगी से लिया। सभी ने इसे समझा। दिक्कत ये है कि अब से 3-4 महीने पहले तक कोई इस बात पर ध्यान ही नहीं दे रहा था कि दुनिया में मिट्टी की बड़ी समस्या होने जा रही है। जब हमने देशों को ये यूनिक डाक्यूमेंट सौंपे तब उन्हें सच्चाई का एहसास हुआ। जैसे-जैसे मिट्टी बचाने की गंभीरता समझ आई, सब इसके समर्थन में आने लगे। अफ्रीकी देशों से लेकर भारत तक हमें समर्थन मिलता रहा। हमारा सोशल मीडिया मीटर बताता है कि हमने 3.91 बिलियन लोगों तक पहुंच बनाई।

क्या है मिट्टी की पहचान 
आप इसे ऐसे समझिए कि बिना मिट्टी के हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। हम जो सांस ले रहे हैं, वह भी मिट्टी की बदौलत है। जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे, तब तक आक्सीजन नहीं मिलेगा। आने वाला समय और कठिन होने वाला है। बिना मिट्टी बचाए आप क्लाइमेट चेंज या ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बात नहीं कर सकते हैं। पहले मैं इस विषय पर बात करता था तो लोग नहीं समझते थे। जैसे अभी आप यहां बैठे हैं, मानसून आने वाला है, मौसम कूल है। आप यहां की मिट्टी छूकर देखिए, बगल में फसल लगी है, वहां कि मिट्टी टच कीजिए। फिर किसी पेड़ के पास की मिट्टी छूकर देखिए, आपको तापमान में 10 से 12 डिग्री सेल्सियस का अंतर मिलेगा। प्लेन जमीन, खेती की जमीन, जंगल की जमीन सभी का अलग-अलग रेशियो है। यही तो क्लाइमेट चेंज है। पूरी दुनिया में 50 फीसदी से ज्यादा जमीन पर प्लाउड है। 18 से 20 फीसदी जमीन पर कभी-कभी जुताई होती है। औसतन 71 फीसदी जमीन पर खेती होती है। इसके बाद पठारी, पहाड़ी सभी तरह की जमीन है।

कैसे बना सकते हैं संतुलन
यदि आप एग्रीकल्चरल लैंड की बात करेंगे तो मैं कहूंगा कि वह जमीन जहां रोजाना लोगों के हाथ पहुंचते हैं। यानि उस जमीन पर मनुष्यों द्वारा काम किया जाता है। आप रेन फारेस्ट की बात करते हैं, यह सही है कि रेन फारेस्ट से पर्यावरण को फायदा होगा लेकिन रेन फारेस्ट ऐसी जगह है, जहां जाने की जरूरत नहीं है। रेन फारेस्ट सदियों को खुद से ही मैनेज करते रहे हैं और आगे भी यह चलता रहेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों को क्या चाहिए। लोगों को लकड़ियां चाहिए, शहद चाहिए, कई तरह की जड़ी-बूटियां, फल चाहिए। क्योंकि जंगल में यह सब मिलता है। लेकिन हमें अपनी जमीन पर यह उपजाना होगा और जंगलों को अकेला छोड़ना होगा। जंगलों का शोषण करना बंद होना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि जो भी चाहिए उसके लिए जंगल की तरफ न जाएं, वह अपनी खेती के जमीन में पैदा करें। हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए 75 प्रतिशत जंगल को तबाह कर रहे हैं। हम सभी को संतुलन बनाने की जरूरत है। 

कितना होगा बदलाव 
कैंपेन को लेकर सद्गुरू ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इसका बहुत सकारात्क प्रभाव पड़ेगा। बड़े देशों के तो अपने नियम होते हैं लेकिन दुनिया के 130-32 छोटे देशों को इस पर ध्यान देना होगा। यह कई तरह के बदलाव भी लाएगा। सद्गुरू ने कहा कि हमने केवल कावेरी बेसिन तक हमने मोटर बाइक रैली निकाली है। मैं बेंलगुरू में रहता हूं तो लोग मेरी मोटरसाइलिंग के  बारे में जानते हैं। लोग मेरे साथ जुड़ जाते हैं। मैं मोटर साइकिलिंग का पहले से ही शौक रहा है। आज 30-32 साल भी मैं मोटर साइकिल चला रहा हूं। बीच में कोरोना का समय आ गया जिसमें बात हुई कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होना चाहिए। तो मुझे लगा कि राइडिंग शुरू कर दूं, जिससे लोगों के काफी दूरी बनी रहेगी। 

इस कैंपेन की बात करें तो हम कई देशों में गए। कई देशों में हमसे कहा गया कि सद्गुरू इसके लिए कौन आगे आएगा। दुनिया में किसको मिट्टी बचाने की पड़ी है। कौन सोचता है कि मिट्टी भी बचानी पड़ेगी। कई पत्रकारों ने भी यूरोपिय देशों में कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। तब हमने कहा कि लोग इसके लिए तैयार हो रहे हैं या नहीं, सवाल ये नहीं है। प्रश्न यह है कि समस्या क्या है। क्या आप उस समस्या को समझ रहे हैं। हम समस्या को एड्रेस कर रहे हैं और पूरी उम्मीद है लोग इसे समझेंगे और रिस्पांस करेंगे। यह अभियान भी इसीलिए है कि लोगों को ऐसा मंच मिले जहां वे अपना प्यार और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकें।

कैंपेन से क्या हासिल हुआ
कैंपेन के मिले फीडबैक के बारे में सद्गुरू ने कहा कि मैं जो बताना चाहता हूं वो ये है कि हर पर्यावरण की मिट्टी अलग है। आप उदाहरण के लिए समझिए कि जैसे कोयला है तो कोयला इंडस्ट्री आपके खिलाफ है। आयल है आयल इंडस्ट्री आपके खिलाफ है। आटो मोबाइल है तो आटो मोबाइल इंडस्ट्री आपके खिलाफ है। यह इंड्स्ट्रीज एक रात में सामने नहीं आई हैं। यह कोई अपराध भी नहीं है क्योंकि यह बिजनेस है। आप यह नहीं कर सकते हैं कि सब कुछ बंद कर दिया जाए। आपको फैसिलिटी चाहिए, लाइट्स चाहिए, सब कुछ चाहिए भी तो कैसे कह सकते हैं सभी इंडस्ट्रीज को बंद कर दिया जाए। आपको यह सब बंद ही करना है तो सबसे पहले आपको अपने घर को बिना बिजली के चलाना सीखना होगा। इंडस्ट्री को बिना बिजली के चलाना होगा। आप सिर्फ मैनुअल एक्टिविटी के लिए रेडी हैं। जवाब होगा कि नहीं, कोई तैयार नहीं होगा। 

क्या करना होगा लोगों को 
यदि आपको उर्जा चाहिए तो कुछ न कुछ जलाना होगा। हां हम सब एक काम कर सकते हैं वह है ट्रांसफार्मेशन का। इस पर कोई सवाल नहीं है कि सभी इंडस्ट्रीज को ट्रांसफार्म करने की जरूरत है। इसके लिए आपको इंडस्ट्रीज को मौका देना होगा कि वे खुद को ज्यादा इको बनाएं, प्रकृति को बचाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करें। ऐसे नहीं है कि आप सड़क पर नारा लगाते हुए निकलें और यह सब झट से हो जाए। यह कोई रास्ता भी नहीं है। हमने दुनिया भर में कई कांफ्रेंस और कन्वेंशन किए, जहां लोगों ने कहा कि वे और भी ज्यादा कांफ्रेस करना चाहते हैं ताकि सही रास्ता मिले। लोगों ने कहा कि इस समस्या का समाधान खोजना है तो हमें कांफेंस करना होगा। आप उदाहरण के लिए समझें कि हम कोयला इंडस्ट्रीज को कम करने की बात करते हैं लेकिन युद्ध जैसी घटना सामने आ जाती है। आज आप देखिए जर्मनी पहले से ज्यादा कोयला फूंक रहा है। क्योंकि जरूरत है। हां यह बात है कि कोई भी मिट्टी को बचाने के हमारे अभियान के खिलाफ नहीं है। सभी चाहते हैं कि मिट्टी की आर्गेनिक गुणवत्ता बनी रहे। हमें यही करने की जरूरत है।

कैसे घटेगी उर्वरक की निर्भरता
कई सारे साइंटिस्ट यह कहते हैं कि लगातार खेती करने की वजह से मिट्टी की फर्टिलिटि कम होती जा रही है। इस पर सद्गुरू ने कहा कि इसमें यह समझने की जरूरत है कि जब आप किसी मिट्टी से एक ही फसल बार-बार पैदा करेंगे और यह सिलसिला 20-25 साल तक चल जाएगा तो वह मिट्टी खत्म हो जाएगी। मैं क्या कहता हूं कि आप साल में 6 फसल पैदा किजिए और सब कुछ खेत में ही छोड़ दीजिए। इसका मतलब कि आप पूरा का पूरा आर्गेनिक कंटेंट मिट्टी में वापस डाल रहे हैं। सब्जियों की खेती भी बेहतर विकल्प है। खाली खेत यानि कि मिट्टी को सीधे सूरज की रोशनी देना मतबल मिट्टी का मर्डर करना है। क्योंकि जो भी आर्गेनिक चीजें हैं वह मिट्टी में 10 से 12 इंच तक ही होती हैं। जब आप गर्मियों में खेत की जुताई करके उसे सूरज की रोशनी लेने के लिए खुला छोड़ देते हैं तो समझिए कि यह मिट्टी की हत्या करने जैसा ही है। इससे आर्गेनिक चीजें खत्म हो जाती है। आप यह समझें कि फसल और पशुओं से ज्यादा आर्गेनिक कुछ भी नहीं है। प्लांट लाइफ और एनिमल लाइफ के अलावा इस पूरे यूनिवर्स में कहीं भी आर्गेनिक कंटेंट नहीं है। जब तक हमारी जमीन पर फसल और पशु हैं, तबी तक वह ठीक है। अन्यथा मिट्टी को खत्म होते देर नहीं लगती।

कैसे बचेगी हमारी मिट्टी
सद्गुरू ने कहा कि सबसे पहले मैं कहना चाहूंगा कि सरकार को इंसेटिव बेस्ड पालिसी बनानी होगी। बिना इंसेटिव बेस्ड पालिसी बनाए यह काम नहीं करने वाला है। आपको किसान के पास जाना होगा और समझाना होगा कि प्वाइंट क्या है। देश में आर्गेनिक कंटेंट की बात करें तो यह मात्र 5.6 प्रतिशत है। किसानों को आप कहिए कि आप इतना फसल उगाएंगे तो हम आपको इतनी रकम देंगे। यह रणनीति खूब काम करेगी। कई लोग किसानों के पास नहीं जाना चाहते क्योंकि न तो वे प्राब्लम को समझ रहे हैं और न ही उन्हें यह समस्या सुलझानी है। हमें गरीब किसानों को इंसेटिव देना होगा क्योंकि वे किसी तरह से अपनी जिंदगी का गुजारा कर रहे हैं। उन्हें इसकी दरकार है।

किसानों को खेती करने दें
सद्गुरू ने कहा कि हम किसी पर दबाव नहीं डाल सकते कि आपको यही खेती करनी है। हम जानते हैं कि लोग नेचुरल फार्मिंग के माध्यम से मिट्टी की सेहत को सुधारना चाहते हैं। हमें यह सब छोड़कर सिर्फ एक सवाल का जवाब ढूंढना चाहिए। सवाल यह है कि हम मिट्टी में आर्गेनिक कंटेंट को बढ़ाना चाहते हैं तो वह कैसे संभव होगा। यह तभी संभव होगा जब मिट्टी में हम प्लांट लाइफ और एनिमल लाइफ को बढ़ाएंगे। आप तमाम तरह की सब्सिडी दे रहे हैं लेकिन उसका कुछ परिणाम नहीं निकल रहा। इसकी जगह हमें यह करना चाहिए कि आप किसान को कहें कि यदि आप मिट्टी में हमें 3 प्रतिशत आर्गेनिक कंटेट देते हैं तो हम आपको इतना रुपया इंसेंटिव देंगे। 

बढ़ानी होगी न्यूट्रिशंस की मात्रा
हम जो भी अन्न पैदा कर रहे हैं आर्गेनिक कंटेट की कमी के कारण उसमें न्यूट्रिशन की कमी हो रही है। हमारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रिशन चाहिए होता है। अब आप समझें कि हम जो खा रहे हैं, उसमे न्यूट्रिशंस कम हैं। हमें शरीर की जरूरत के लिए ज्यादा न्यूट्रिशंस चाहिए। इसके लिए लोग ज्यादा से ज्यादा खाना खाते हैं। क्योंकि शरीर न्यूट्रिशंस की डिमांड करता है लोग भोजन से उसकी पूर्ति करते हैं। जब फसलों में न्यूट्रिशंस की मात्रा बढ़ेगी तो लोग भोजन कम करेंगे क्योंकि उनके शरीर के न्यूट्रिशन की पूर्ति हो रही है। जब अन्न की खपत कम होती तो यह देश ही नहीं पूरी दुनिया के लिए राहत की बात होगी। यह पूरी मानवता के लिए फायदेमंद होगा। 

आर्गनिक के नाम पर बना रहे मूर्ख
आर्गेनिक खेती के सवाल पर सद्गुरू ने कहा कि जहां तक मैं समझता हूं यह शहरी आबादी द्वारा गढ़ा गया सिद्धांत है जो फार्मिंग के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। आप किसान को मत समझाइए कि उसे कैसे खेती करनी है। आर्गेनिक खेती का मतलब है कोई खाद नहीं, कोई केमिकल नहीं, कोई पेस्टीसाइड नहीं लेकिन यदि आप ऐसी करेंगे तो दुनिया भर में अन्न की पैदावार बेहद कम हो जाएगी। इससे समस्या बढ़ सकती है। मैं यह कह रहा हूं कि जब आप मिट्टी में आर्गेनिक कंटेट बढ़ा देते हैं तो पेस्टिसाइड और केमिकल की जरूरत धीरे-धीरे कम हो जाएगी। यह इसी तरह से काम करेगा। 

आप अचानक ऐसे नहीं कह सकते हैं कि मुझे फर्टिलाइजर पसंद नहीं है, इसलिए हटाओ इसे। आप और हम जानते हैं कि हम सभी जिंदा हैं तो इन्हीं की बदौलत हैं। सच तो यह है कि शहर के लोग फैसला कर रहे हैं कि किसान कैसे खेती करें। आप यह किसानों पर छोड़ दीजिए कि किसान किस तरह से खेती करें। यहां की जमीन से दूसरे जगह की जमीन में अंतर होता है, लोग इस बात को नहीं समझते हैं। यहां की मिट्टी काली है लेकिन यह पूरी मिट्टी एक जैसी नहीं है। आप किसान को खेती करना न सिखाएं। उन्हें इंसेंटिव देकर खेत में आर्गेनिक कंटेट को बढ़ाने का काम करें। किसान को खेती कैसे करनी है किसान पर छोड़ दें। अभी मैं हाल ही में कुरूनूल गया था, वहां एक सज्जन आम लेकर आए और कहा कि सद्गुरू यह आर्गेनिक मैंगो है। मैंने उनसे कहा कि नहीं मुझे अनआर्गेनिक मैंगो चाहिए, क्या आप ला सकते हैं। उनके पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि ऐसी कोई चीज दुनिया में है ही नहीं। आर्गेनिक के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है। 

रैली फार रिवर के बारे में 
सद्गुरू ने कहा कि हमने नदियों को बचाने के लिए 6-7 पेज की पालिसी बनाई है। देश के ज्यादातर राज्यों ने उस पालिसी पर काम भी करना शुरू कर दिया है। सरकारों ने 30 से ज्यादा रिवर बेसिन योजनाएं बनाई हैं और 90 हजार करोड़ से ज्यादा का निवेश किया जा रहा है। कई योजनाएं हैं जिन पर काम चल रहा है। बहुत से लोग दुनिया में हैं जिन्होंने कोई गलती नहीं की है क्योंकि उन्होंने कोई काम ही नहीं किया। हम काम कर रहे हैं जो सकारात्म रिजल्ट से ही आगे बढ़ रहे हैं। मिट्टी बचाने का अभियान भी यही है। सरकार भी यह समझ रही है कि मिट्टी बचाने की कितनी जरूरत है। 

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