Explained: क्या है Katchatheevu द्वीप मामला, इंदीरा गांधी से क्या है नाता, श्रीलंका को कैसे मिला?

कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu island) कांग्रेस ने श्रीलंका को सौंप दिया था। इस मुद्दे को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और डीएमके पर हमला बोला है।

 

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के बीच देश में कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu island) को लेकर विवाद चल रहा है। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कच्चाथीवू द्वीप पर आई नई जानकारियों ने DMK के डबल स्टैंडर्ड को पूरी तरह बेनकाब कर दिया है।

एक्स पर किए गए पोस्ट में नरेंद्र मोदी ने कहा कि DMK ने तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया। कांग्रेस और डीएमके पारिवारिक ईकाईं हैं। वे सिर्फ अपने बेटे-बेटियों को आगे बढ़ाने के बारे में सोचते हैं। वे किसी और की चिंता नहीं करते। कच्चाथीवू पर उनकी संवेदनहीनता ने विशेष रूप से हमारे गरीब मछुआरों और मछुआरा महिलाओं के हितों को नुकसान पहुंचाया है।"

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कांग्रेस सरकार ने 1974 में कच्चाथीवू श्रीलंका को सौंपा

कच्चाथीवू हिंद महासागर में स्थित द्वीप है। यहां तमिलनाडु के मछुआरे मछली पकड़ने जाते हैं। वे जैसे ही द्वीप पर पहुंचने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करते हैं, उन्हें श्रीलंकाई नौसेना द्वारा हिरासत में ले लिया जाता है। रविवार को पीएम मोदी ने कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को सौंपने के लिए कांग्रेस पर हमला किया। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर देश की अखंडता और हितों को "कमजोर" करने का भी आरोप लगाया था। पीएम मोदी ने ये बातें सूचना के अधिकार के तहत रिपोर्ट सामने आने के बाद की हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 1974 में कच्चाथीवू श्रीलंका को सौंप दिया था।

 

 

नरेंद्र मोदी बोले- कांग्रेस और डीएमके का पाप मछुआरा भाई-बहनों को भुगतना पड़ रहा

नरेंद्र मोदी ने मेरठ की रैली में कहा, "कांग्रेस और इंडी अलायंस देश की अखंडता और देश की एकता को तोड़ते रहे हैं। आज ही कांग्रेस का एक और देश विरोधी कारनामा सामने आया है। तमिलनाडु में भारत के समुद्री तट से कुछ दूर श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच में समुद्र में एक टापू कच्चाथीवू है। ये द्वीप सुरक्षा की दृष्टि से बहुत अहम है। देश आजाद हुआ तब ये हमारे पास था। ये हमारे भारत का अभिन्न अंग रहा है। कांग्रेस ने 4-5 दशक पहले कह दिया कि ये द्वीप तो गैर जरूरी है। यहां तो कुछ होता ही नहीं है। उसने मां भारती का एक अंग काट दिया। देश कांग्रेस के रवैये की कीमत आजतक चुका रहा है। भारत के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। उनकी नाव पर कब्जा कर लिया जाता है। कांग्रेस और डीएमके जैसे दलों के पाप का परिणाम आज देश के हमारे मछुआरा भाई-बहनों को भी भुगतना पड़ रहा है।"

सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कच्चाथीवू द्वीप विवाद पर डीएमके और कांग्रेस पर निशाना साधा। जयशंकर ने कहा, "पिछले 20 वर्षों में 6,184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है। 1,175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को जब्त कर लिया गया। पिछले पांच वर्षों में कच्चातिवू मुद्दा और मछुआरों का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है।"

कच्चाथीवू द्वीप कहां है?

कच्चाथीवु भारत और श्रीलंका के बीच पाल्क जलडमरूमध्य में 285 एकड़ का एक निर्जन द्वीप है। इसकी लंबाई 1.6 किलोमीटर है। सबसे चौड़े जगह पर इसकी चौड़ाई 300 मीटर से थोड़ा अधिक है। यह भारत के समुद्र तट से करीब 33 किलोमीटर दूर है। यह श्रीलंका के जाफना से करीब 62 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है। यह श्रीलंका के डेल्फ्ट द्वीप से 24 किमी दूर है।

कच्चाथीवु द्वीप पर एकमात्र संरचना 20वीं सदी का कैथोलिक चर्च। इसका नाम सेंट एंथोनी चर्च है। वार्षिक उत्सव के दौरान यहां भारत और श्रीलंका के ईसाई पुजारी आते हैं। 2023 में उत्सव के समय 2500 भारतीय रामेश्वरम से कच्चाथीवू गए थे। कच्चाथीवू में स्थायी रूप से इंसान का रहना मुश्किल है। यहां पीने के पानी का स्रोत नहीं है।

क्या है कच्चाथीवु द्वीप का इतिहास?

भूगर्भिक कालक्रम के अनुसार कच्चाथीवु द्वीप अपेक्षाकृत नया है। यह 14वीं शताब्दी के ज्वालामुखी विस्फोट में समुद्र से निकला था। प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में इस पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का नियंत्रण था। 17वीं शताब्दी में इसका नियंत्रण रामनाद जमींदारी के हाथ में चला गया। यह रामनाथपुरम से लगभग 55 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। अंग्रेजों के राज के दौरान यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। उस समय भारत और श्रीलंका दोनों पर ब्रिटिश राज था। 1921 में भारत और श्रीलंका ने मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए कच्चाथीवू पर दावा किया था। इस दौरान कराए गए एक सर्वे में कच्चातिवु को श्रीलंका का बताया गया। भारत के एक ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल ने रामनाद साम्राज्य द्वारा द्वीप के स्वामित्व का हवाला देते हुए इसे चुनौती दी थी। इसके बाद से द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों का दावा था। आजादी के बाद 1974 तक द्वीप भारत का हिस्सा था।

1974 में इंदिरा सरकार ने किया था समझौता

1974 में इंदिरा गांधी ने भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को हमेशा के लिए सुलझाने का प्रयास किया था। भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौते के हिस्से के रूप में इंदिरा गांधी ने कच्चाथीवु श्रीलंका को सौंप दिया था। उस समय इंदिरा गांधी ने सोचा था कि द्वीप का कोई रणनीतिक महत्व नहीं है। द्वीप देने से श्रीलंका के साथ भारत के संबंध और गहरे हो जायेंगे।

समझौते के अनुसार भारतीय मछुआरों को कच्चाथीवू तक जाने की अनुमति थी। समझौते से मछली पकड़ने के अधिकार का मुद्दा सुलझ नहीं सका। श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों के कच्चाथीवू तक पहुंचने के अधिकार को "आराम करने, जाल सुखाने और बिना वीजा के कैथोलिक मंदिर की यात्रा" तक सीमित बताया।

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1976 में भारत में आपातकाल की अवधि के दौरान एक और समझौता हुआ। इसमें किसी भी देश को दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोका गया। इससे कच्चाथीवू के पास मछली पकड़ने के अधिकार के संबंध में अनिश्चितता बनी रही, क्योंकि कच्चातिवू दोनों देशों के ईईजेड के बिल्कुल किनारे पर स्थित है।

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